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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
पधारती वहीं तप-त्याग-वैराग्य का वातावरण निर्मित हो जाता था। संयम में आप इतनी दृढ़ थीं, कि असाध्य रोग में भी कभी पुरूष डॉक्टर का स्पर्श नहीं होने दिया। जूनागढ़ में सं. 1989 में कुल 48 वर्ष की उम्र में ही शासन की महती प्रभावना कर ये देवलोक की ओर प्रयाण कर गईं।284
6.5.3.7 श्री जवेरबाई महासती (सं. 1975-2019)
__ आप श्री देवचंदभाई व माता नंदुबहन की कन्या रत्न थी। बालवय में ही धर्म साधना की उत्कट लगन और वैराग्य-वासित हृदय होने पर भी परिजनों के आग्रह से परिणय-संबंध में बंधना पड़ा किंतु आपके वैराग्य की छाया पति शांतिलालजी पर ऐसी पड़ी, कि वे बिना किसी को कहे गृह-बंधन से मुक्त होकर अज्ञात स्थान पर चले गये। जवेरीबहन ने भी 22 वर्ष की वय में सरल सौम्यमूर्ति श्री लीरूबाई महासतीजी के पास जामनगर में दीक्षा अंगीकार की। आपकी सत्यता, नीडरता, कवित्व चातुर्य और प्रखर व्याख्यान शैली से प्रभावित होकर 13 कुमारी कन्याओं ने संयम अंगीकार किया। आपकी शिष्याओं में अचरतबाई. जैकंवरबाई. वखतबाई प्रभाबाई. इन्दबाई. हीराबाई, हंसाबाई, दयाबाई, रमाबाई, इंदुबाई, नंदनबाई, ज्योतिबाई आदि ओजस्वी तेजस्वी साध्वियाँ हुईं। अंतिम समय मधुमेह की बीमारी से राजकोट में सं. 2019 मागसिर वदि 8 को 44 वर्ष की उम्र में स्वर्ग सिधारी।285
6.5.3.8 श्री मीठीबाई महासती (सं. 1976-2016)
परम तपस्विनी मीठीबाई महासतीजी का जन्म मेंदरड़ा ग्राम में मावाणी कुल के बेचरभाई व माता पार्वतीबाई के यहां सं. 1934 चैत्र सु. 13 को हुआ। आप बाल्यकाल से ही अत्यंत निर्भीक एवं दयालु प्रकृति की थीं। एकबार __ कुछ लोग नाग को मारने को उद्यत हुए तो मीठीबाई ने उन्हें रोका, मारने वालों ने कहा- "इतनी ही नाग के प्रति
दया है तो रखले अपने घर में।" मीठीबाई ने तुरंत अपने वस्त्रखंड में नाग को लपेटा ओर दूर जंगल में छोड़ आयीं। 16 वर्ष की उम्र में सरधार ग्राम के हरखचंद भाई के साथ लग्न हुआ, उनसे एक पुत्र मलूकचंद भाई और पुत्री जयाबहन का जन्म हुआ। कुछ समय पश्चात् पति का देहावसान हो गया, तो पू. जयचंदजी महाराज की प्रेरणा से पुत्री जयाबहन के साथ शास्त्रवेत्ता पूज्य पुरूषोत्तमजी म. सा. के मुखारविंद से जेतपुर में दीक्षा ग्रहण की और पू. मोटा दुधीबाई की शिष्या बनीं। आपने अपने जीवन में उग्र तप साधना की। 16 वर्ष की उम्र में जब आपने अठाई की तपस्या कर आपका साथ दिया प्रथम अठाई की तो कहा जाता है कि आपके कुटुंब में 32 जनों ने अठाई की तपस्या कर आपका साथ दिया। आपने वर्षीतप 31, 22, 16, 11, अठाई-24, 10, 9 (तीन बार) 7-चार, 6-बारह बार 5-बीस बार, 4, 3,2,1 का तो पार ही नहीं, आयंबिल की कितनी ही ओलियाँ की। आपकी तपस्या में 2218 दिन उपवास के व 1526 दिन पारणे के थे, कुल 3784 दिन की तपस्या की। आपकी संकल्प शक्ति व ढता अटूट थं
टट थी. 105 डिग्री बखार में भी तपस्या नहीं छोडी। मेंदरडा जामजोधपर वेरावल आदि कई स्थानों पर श्राविकाशाला की स्थापना की, कितनों को ही ब्रह्मचर्य व्रत व वर्षीतप करवाये। आपने प्रतिलिपि का कार्य भी किया, सूत्र व रास आदि मिलाकर कुल 56 हस्तलिखित पुस्तकें जेतपुर, जूनागढ़ व मेंदरड़ा संघ को प्रदान की। अंत में संवत् 2016 को जेतपुर में 82 वर्ष की उम्र में आप स्वर्गवासिनी हुईं।286 284. वही, पृ. 43 285. वही, पृ. 62 286. मीठी न्हेक, लेखिका-श्री शान्ताबहेन सिंघवी, प्रकाशक-श्री भरतकुमार खुशालचंद शेठ, उपलेटा, ई. 1962
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