SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास संघ व समाज का भरपूर उपकार कर स्वर्ग की ओर प्रस्थित हुई। आपके प्रेरणादायक प्रवचनों की 22 पुस्तकें प्रकाशित हैं- ऋषभदत्त देवानंदा अने जमालिकुमार, मृगापुत्र भाग 1-2, आध्यात्मिक व्याख्यान संगह, भाग 1-2, प्रवचन पीयुष भाग 1-2, श्रमण केशी अने गणधर गौतम प्रमादस्थान, प्रवचन-पुष्प, आनंद श्रावक नो अधिकार भाग 1 से 3, अनाथी निर्ग्रन्थ भाग 1-3, तेतलीपुत्र भाग 1-2, माकंदिय पुत्र भाग 1-2, निषधकुमार चरित्र, परदेशी नुं परिवर्तन; इस प्रकार 13 चातुर्मासों में दिये गये प्रवचन, 22 पुस्तकों में वर्णित हैं। तेतलीपुत्र पुस्तक की तो हिंदी गुजराती आदि में हजारों प्रतियां निकल चुकी हैं, तथापि उसकी मांग बनी रहती है। ज्ञानगच्छ के स्वर्गीय श्री राजेन्द्रमुनि पर तो उक्त पुस्तक का इतना प्रभाव पड़ा कि वे दीक्षा के लिये तत्पर बन गये थे। इस प्रकार आपका जीवन अंत तक मुमुक्षु आत्माओं के लिये शरणभूत बना रहा। आपके चारित्रबल की अनेक घटनाएं "विश्रांति नो वडलो' पुस्तक में संयोजित हैं।271 जैन कान्फ्रेंस स्वर्ण जयंति ग्रंथ में भी आपका आदर पूर्वक स्मरण किया गया है। आपकी 145 साध्वियों का परिचय273 अग्रिम पृष्ठों पर अंकित है। 6.5.2.2 श्री मंजुलाबाई (सं. 1998 से वर्तमान) आपके पिता श्री नानालाल माणेकचंद एवं माता जलुबहेन थीं। नागनेश (सौराष्ट्र) में आपका जन्म हुआ, वढवाण में मृगशिर कृ. 11 सं. 1998 में दीक्षित होकर आप चारित्रनिष्ठ श्री लीलावतीबाई की प्रथम शिष्या बनीं। संसार का सौभाग्य छीन जाने के पश्चात् आपने स्वयं को स्व में स्थिर किया। शरीर का सौन्दर्य, तेजस्वी व्यक्तित्व और सुरीला स्वर जन्म से ही आपको मिला, अपनी मधुर व्याख्यान शैली से अनेकों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया। 6.5.2.3 श्री मुक्ताबाई (सं. 1998 से वर्तमान) श्री ठाकरशी करशनजी के घर 'थान' ग्राम में ही आपने जन्म लिया और फाल्गुन कृ. 5 को 'थान' में ही दीक्षा अंगीकार कर श्री लीलावतीबाई की शिष्या बनीं। शरीर से कृश होने पर भी आपका मनोबल बड़ा ही श्रेष्ठ है आपने बेले-बेले वर्षीतप कर आत्मशक्ति का परिचय दिया। आपकी वाणी से कइयों ने संसार का त्याग किया, शास्त्रों को समझाने की शैली भी आपकी अत्युत्तम है। आपके सुमधुर प्रवचन ज्ञाताधर्मकथा अध्ययन 5 पर आधारित 'मुक्तिमाला' पुस्तक में संग्रहित एवं प्रकाशित हैं। 6.5.2.4 श्री जशवंतीबाई (सं. 2001 - स्वर्गस्थ) आपका जन्म ग्राम वढवाण है, पिता मोहनलालजी बेलाणी और माता संतोकबेन की पुत्री थीं। मृगशिर कृ. 11 को वढवाण में ही श्री लीलावतीबाई के पास प्रव्रज्या अंगीकार की। आप शांति व सहनशीलता की मूर्ति थीं, लगभग एकाशन करके स्वाध्याय में लीन रहती थीं। 272. विश्रांति नो वडलो; संपादक-प्रा. मलूकचंद रतिलाल शाह एवं डॉ. हरिशभाई रतिलाल बेंकर, प्रकाशन-श्री संघवी धारशी रवाभाई स्था. जैन संघ, छालियापरा, लींबड़ी (सौ.) ई. 1985 273. दृ. जैन कान्प्रफ्रेस स्वर्ण जयंति ग्रंथ, पृ. 57 274. विश्रांति नो वडलो, पृ. 210-72 624 6247 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy