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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.5.2.5 श्री ताराबाई (सं. 2004 - स्वर्गस्थ ) आप भी वढवाण निवासी श्री मगनलाल माणेकचंद की सुपुत्री थीं। सं. 2004 माघ कृ. 5 को वढवाण में श्री लीलावतीबाई के पास दीक्षित हुईं। संयम पर आरूढ़ होने के लिये आपको अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। आपके स्वभाव की सरलता से आकर्षित होकर कई कन्याओं ने लीलमबाग में प्रवेश किया, आपने कई साध्वियों को आगम- निष्णात बनाया। 6.5.2.6 श्री कमलाबाई (सं. 2005 - स्वर्गस्थ ) आप वढवाण के श्री शांतिलाल चतुरभाई की कन्या हैं। बोटाद में सं. 2005 मृगशिर कृ. 10 को दीक्षा हुई। आप तपस्विनी साध्वी के नाम से सुख्यात हैं। आपने 1 उपवास लेकर 36 उपवास तक क्रमबद्ध तपस्या की है। आठ मासखमण, मोटा पखवाड़ा, कल्याणक तप, सिद्धितप, श्रेणीतप चौबीस तीर्थंकरों की ओली, सर्वतोभद्र तप, उपवास का वर्षीतप, बेले व तेले का वर्षीतप भी कर चुकी हैं। इस प्रकार तप द्वारा कर्म संग्राम में शौर्यता के साथ अग्रसर होती हुई अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की। 6.5.2.7 श्री कंचनबाई (सं. 2007 से वर्तमान) आप वांकानेर में श्री वीरपाल डुंगरशी के घर जन्मी एवं वांकानेर में ही वैशाख शु. 5 सं. 2007 को लीलम चरणों में दीक्षित हुईं। आपने भी जीवन में तप को मुख्यता दी है। एकांतर बेला और तेले - तेले वर्षीतप तथा चोले- चोले पारणा का छहमासी तप किया, अठाई, सोलह आदि किये। फुटकर तपस्याओं के साथ प्रतिदिन एकासना तप भी करती हैं। 6.5.2.8 श्री रमाबाई (सं. 2013 से वर्तमान ) आप राजकोट निवासी गिरधरलाल जादवजी की सुपुत्री हैं। वांकानेर में सं. 2013 पोष कृ. 8 के दिन लीलाबाई स्वामी के पास दीक्षित हुई। आप ज्ञान, दर्शन चारित्र की आराधना के साथ तप की आराधना में भी अग्रसर हैं। आपने मासखमण किये। एकांतर उपवास, छट्ठ-अट्ठम का वर्षीतप तथा फुटकर तपस्याएँ की हैं। 6.5.2.9 श्री हीराबाई (सं. 2014 से वर्तमान ) आप बांकानेर के दामजीभाई उकाभई की कन्या हैं, वांकानेर में ही माघ शु. 10 सं. 2014 में आपकी दीक्षा हुई। आप श्री लीलावतीबाई की भाणेज हैं, इनकी अन्य दो बहनें - रंजनबाई एवं हर्षिताबाई भी दीक्षित हैं। आप सौम्य व गम्भीर स्वभाव की हैं, आवाज मधुर है, अनेक शास्त्र कंठस्थ हैं। 6.5.2.10 श्री प्रज्ञाबाई (सं. 2015 से वर्तमान) आप लींबड़ी के श्री चत्रभुज नानचंदभाई की सुपुत्री हैं। सुरेन्द्रनगर में पोष शु. 13 को आपकी दीक्षा हुई। आप श्री लीलाबाई महासतीजी के बाग की मालिन हैं। उनकी सेक्रेटरी के रूप आपका योगदान अपूर्व है । प्रखर व्याख्याता हैं, तथा प्रत्येक साध्वी की शारीरिक आरोग्यता के प्रति भी सतर्क रहती हैं। Jain Education International 625 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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