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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास एकम को सुरेन्द्रनगर में पूर्ण समाधि के साथ आपकी आत्मा दिव्यधाम की ओर प्रस्थित हुई, उससे पूर्व आपने संदेश दिया -'शोक करशो नहीं, मने अपूर्व शांति छे मारो आत्मा अनंत शक्ति नो स्वामी छे अजर छे अमर छे.....।' आपका प्रेरणास्पद जीवन एवं आध्यात्मिक विचार श्री चंद्रकांत जोशी ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है।266 6.5.1.24 श्री सुलोचनाबाई (सं. 2016-50) आपका जन्म संवत् 1997 में उज्जैन (म. प्र.) में भड़ियाद ग्राम (लींबड़ी) निवासी पिता श्री जगजीवन भाई केशवलालजी हकाणी एवं माता ललिताबहन के घर हुआ। आपने पंडित रत्न शतावधानी श्री पूनमचन्द्रजी स्वामी के मुखारविन्द से संवत् 2016 पाल्गुन शुक्ला 2 को वीरमगाम (गुजरात) में दीक्षा अंगीकार की। आपकी गुरूणी श्री सूरजबाई स्वामी थीं। आपने विनय से गुरूकृपा प्राप्त की, दीक्षा के पश्चात् आत्मानुभूति और गुरूजनों की सेवा को अपना जीवन सूत्र बनाया 33 वर्ष तक कच्छ वागड़, लींबड़ी, गोधरा, धंधुका आदि क्षेत्रों में विचरण कर हजारों लोगों का पथ प्रदर्शन किया। नवकार-मंत्र की आप परम उपासिका थीं। आप कला कुशल भी थीं रंगाई, सिलाई, व्याख्यान के पुढे, मुंहपत्ती के पुढे, रजोहरण आदि बनाने में तो निपुण थी ही, साथ ही श्रमणी-जीवन का विशिष्ट आचार-कल्प लोच में भी निपुण थीं, कठिन से कठिन लोच एक घंटे में करना, दिन में 7-8 साध्वियों की लोच अकेले कर देना आपके लिये सहज था। सामाजिक क्षेत्र में आपने अनेकों को सत्पथ पर लगाया, कई दम्पति एवं पिता-पुत्र के पारस्परिक क्लेश मिटाकर प्रेम स्थापित करवाया। आपके चातुर्मास में अनेकों जगह तप व ब्रह्मचर्य ग्रहण करने वालों के कीर्तिमान स्थापित हुए। अजरामर द्विशताब्दी महोत्सव पर आपकी प्रेरणा से 800 वर्षीतप हुए। इस प्रकार जैनशासन की सुरभि को चतुर्दिक प्रसारित कर 53 वर्ष की वय में संवत् 2050 मुंबई में स्वर्गारोहण किया। आपश्री के प्रौढ़ जीवन की झांकी 'साध्वी सुलोचना स्मृति ग्रंथ' में अंकित है।267 6.5.1.25 श्री कुसुमबाई (सं. 2022-51) आपका जन्म कच्छ अंजार निवासी श्री नाथालाल पानाचंद भाई के यहां संवत् 1993 में हुआ। 29 वर्ष की उम्र में श्री वेलबाई, माणिक्यबाई के परिवार की श्री उज्जवलकुमारीजी के पास 'अंजार' में ही फाल्गुन शुक्ला 5 संवत् 2022 को दीक्षा अंगीकार की। आपमें प्रारंभ से ही गुरू-भक्ति, शासन के प्रति अनुरक्ति व विषयों से विरक्ति की प्रवृत्ति रही। दीक्षा के बाद एक मास भी आपने बिना तपस्या के नहीं बिताया। आपके तप की तालिका इस प्रकार है-सर्वतोभद्र तप, लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप, धर्मचक्र, सिद्धितप, चार मासखमण, उपवास-52, 37, 31, 22, 16, 15, 13, 12, 10, 9, 8 उपवास। छ? (बेला), पोला अट्ठम (तेला), अट्ठम, निवि, एकासणा का वर्षीतप एकबार तथा उपवास का वर्षीतप तो कई बार किया। वर्धमान आयंबिल तप की ओली 29, वीशस्थानक के उपवास की ओली, आयंबिल की ओली 9, छ: मासी अट्ठम तप, परदेशी राजा के बेले, 72 पक्ष के एकासने, ढाईसौ पचखाण, साड़े बारा वर्ष एकासने किये। इस प्रकार आत्मलक्षी विविध साधना करके अंत में वलसाड जिले के 'बिलीमोरा' ग्राम में आप 28 दिन के चौविहारी संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। आपका यह अद्भुत संथारा जैन शासन में एक कीर्तिमान बना, अनेक व्रत, प्रत्याख्यान आदि हुए। आपने 29 वर्ष की वय में दीक्षा ली और 29 वर्ष ही संयम का पालन किया।268 266. विजय जीवन ष्टनो मरण मृत्यु नो, प्रकाशक-हसुमतीबाई स्वामी स्मारक ट्रस्ट, लातीबाजार सुरेन्द्रनगर, 1983 ई. 267. संपादक-रत्नसूर्य शिष्या वृन्द, प्रकाशक-श्री स्थानकवासी छः कोटि जैन संघ, समाघोघा (कच्छ), 1994 ई. 268, श्री कुसुमबाई महासतीजी नी जीवन झरमर, प्रकाशक - श्री धनीबेन मेकणभाई धना सत्रा, बीलीमोरा, 1995 ई. 622 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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