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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.5.1.20 श्री प्रेमकुंवरबाई (स्वर्ग. 2038) __ आप नीसर कुल के श्री देशरभाई एवं माता रामबहेन की कन्या थीं। खंगारपर (कच्छ) में आपका जन्म हुआ। मकरा ग्राम निवासी श्री कानजीभाई के साथ विवाह हुआ, किंतु कुछ ही समय में उनसे वियोग हो गया। श्री नाथीबाई के पास मकरा में ही श्री रत्नचन्द्रजी महाराज से दीक्षा अंगीकार की। श्री डाहीबाई श्री लाड़कंवर बाई के सान्निध्य से आपने ज्ञान-ध्यान में खूब उन्नति की। माघ कृष्णा अमावस्या संवत् 2038 में आप स्वर्गवासिनी हुईं। 6.5.1.21 श्री दीवाली बाई (बीसवीं सदी) आपकी माता का नाम कामल बहेन तथा पिता श्री वीरजीभाई गाला थे। आपका जन्म संवत् 1968 में हुआ। बाल्यवय में ही श्री करशनभाई के साथ विवाह हुआ, कुछ ही समय बाद उनका स्वर्गवास हो गया। विरक्त होकर आपने श्री रत्नबाई गुरूणी के पास दीक्षा अंगीकार की। अहिंसा, संयम और तप का पालन करती हुई मृगशिर कृष्णा 3 रविवार को स्वर्गगामिनी हुईं।264 6.5.1.22 श्री दीक्षिताबाई (सं. 2011-42) आप गाला कुटुंब के श्री पंचाणभाई की पुत्री व माता शांत बहन की संस्कारी कन्या थीं। मकरा (कच्छ) में संवत् 1995 को आपका जन्म हुआ। सं. 2011 विरमगाम में आर्या श्री रतनबाई के पास दीक्षा ग्रहण की। संयम व तप में निष्ठा रखती हुईं आपने स्वयं अपने मुख से संथारा धारण कर श्रमणोचित आदर्श उपस्थित किया, फाल्गुन शु. 6 संवत् 2042 को आपने महाप्रयाण किया।265 6.5.1.23 श्री हसुमती बाई (सं. 2015-2035) आप संवत् 1995 वैशाख शु. 8 को धोराजी ग्राम के श्री छगनभाई व दिवाली बहेन की सुपुत्री के रूप में अवतरित हुईं। उल्लेख है कि जन्म के समय बालिका रोई नहीं। अत: नाम 'हसुमती' रखा। आप प्रारंभ से ही संसार से उदासीन थी। 19 वर्ष की वय में पंडित नानचन्द्रजी महाराज की विदुषी शिष्या श्री प्रभाकुंवर बाई के पास जेतपुर में आपने दीक्षा ली, उस समय गोंडल संप्रदाय के आचार्य श्री पुरूषोत्तमजी महाराज तथा लींबड़ी संप्रदाय के आचार्य श्री धनजी स्वामी उपस्थित थे। दीक्षा के पश्चात् छह मास में ही दैवी उपसर्ग से ग्रस्त हो बीमार रहने लगी। अस्वस्थ दशा में आपने 16 उपवास अठाई, तेले आदि कई प्रकार की तपस्याएँ की, कर्म के तीव्र उदय से पवन का स्पर्श भी बिच्छु के डंक सदृश प्रतीत होता था जिह्वा बंद हो गई ऐसी विषम स्थिति में भी आपकी चित्त प्रसन्नता एवं समता भावना अपूर्व थी, आप सतत स्वाध्याय व चिंतन में लीन रहती थीं, जो भी दर्शनार्थी आता उसे पाटी पर लिखकर आध्यात्मिक उपदेश देती थीं, उनका सूत्र था-‘पर थी खस, स्व मां वस, कर्म ने कस, मेळवी ले जस।' ऐसी अनेक आध्यात्मिक शिक्षाएं आप प्रदान करती रहती थीं। संवत् 2035 श्रावण शुक्ला 263. वही, पृ. 168 264. वही, पृ. 173 265. सुलोचना स्मृति ग्रंथ, पृ. 174 1621 Jain Education International For Private seersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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