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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.5.1.16 श्रीजीवी बाई (सं. 1974 से 2025 के मध्य)
आप धैर्यवान, शीतल स्वभावी व बहुश्रुता साध्वी थीं। अजरामर संप्रदाय के आचार्य श्री रूपचंद्रजी स्वामी, श्री शामजी स्वामी की आज्ञानुवर्तिनी श्री डाहीबाई महासतीजी की आप शिष्या थीं।259
6.5.1.17 श्री प्रभाकुंवरबाई (सं. 1982-2027)
आपका जन्म सरसई ग्राम (सौराष्ट्र) के पोपटाणी कुटुम्ब में श्री कल्याणजीभाई के यहां चैत्र शुक्ला 1 संवत् 1965 में हुआ। मजेवड़ी ग्राम के श्री घेलाभाई के साथ 15 वर्ष की उम्र में विवाह और 16वें वर्ष में वियोग ने आपकी विचार-धारा को वैराग्य की ओर मोड़ दिया। संवत् 1982 वैशाख शुक्ला 3 को लींबड़ी के श्री नानचन्द्रजी महाराज की आज्ञा से श्री देवकुंवरबाई की शिष्या श्री मोतीबाई की शिष्या के रूप में आप दीक्षित हो गईं। आपने अल्प समय में विशद ज्ञान अर्जित किया। अल्प परिग्रह और अल्पकषाय इन दो महान गुणों ने आपको शीघ्र ही महानता की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। उत्तराध्ययन सूत्र के 36 अध्ययन आपके दैनिक स्वाध्याय की चर्या थी। आपकी तीन शिक्षाएँ मुख्य थीं - परिग्रह इकट्ठा करना नहीं, कषाय करना नहीं और संसारियों के संग से दूर रहना। आपका प्रवचन मार्मिक व हृदयवेधी होता था। आपकी छह शिष्याएँ बनी- श्री चंदनाबाई, सरलाबाई, श्री हंसाबाई, श्री इंदुबाई, श्री हसुमतीबाई, श्री तरूलताबाई। 45 वर्ष शुद्ध संयम की आराधना कर वैशाख शुक्ला 11 संवत् 2027 में आप स्वर्गवासिनी हुईं।260 6.5.1.18 आर्या श्री सूरजबाई (सं. 1996-2045)
आप श्री लाड़कंवरबाई की शिष्या प्रखर व्याख्याता साध्वी प्रमुखा श्री रतनबाई की शिष्या थीं। श्री सूरजबाई 'कच्छ की सिंहनी' के रूप में प्रख्यात थीं, ये प्रथम बाल ब्रह्मचारिणी साध्वी इस संप्रदाय में हुईं। आपने अज्ञानता, गरीबी व निरक्षरता के युग में समाज में विशेषकर महिला वर्ग में धार्मिक संस्कारों के बीजारोपण का कार्य किया, आप समाज में साक्षात् देवी तुल्य गिनी जाती थीं। आपका जन्म कच्छ भूमि में समाघोघा शहर में हुआ, पिता श्री देवजीभाई एवं माता श्री जेठीबाई थीं। संवत् 1996 कार्तिक शुक्ला 2 के शुभ दिन श्री गुलाबचन्द्रजी महाराज ने आपको दीक्षा प्रदान की। शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य कर समाघोघा में चैत्र कृष्णा 6 संवत् 2045 में आप समाधि पूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी स्मृति में 'समाघोघा' में 'सूर्या सेनेटोरियम' का निर्माण हुआ है।261 6.5.1.19 आर्या श्री भाणबाई (बीसवीं सदी)
आप कच्छ प्रान्त की तेजस्विनी साध्वी थीं। श्री वेलबाई स्वामी की वाणी से विरक्त होकर श्री रतनबाई के पास दीक्षा अंगीकार की। आप संयमी, सरल एवं तपस्विनी थीं। श्री प्रेमबाई, श्री सूर्यबाई व श्री मणिबाई ये तीन आपकी विदुषी शिष्याएँ थीं, अमदाबाद में आप दिवंगत हुईं।262 259. वही, पृ. 36 260. लेखक-श्री चंद्रकांत जोशी, विजय जीवन नो मरण मृत्यु नु., पृ. 35 261. साध्वी सुलोचना स्मृति ग्रंथ, पृ. 171 262. साध्वी सुलोचना स्मृति ग्रंथ, पृ. 167
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