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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.5.1.13 साध्वी प्रमुखा श्री रत्नकुंवरबाई (सं. 1962-2043)
आपका जन्म 'भोरारा' निवासी उमरशीभाई देढ़िया (ओसवाल) के यहां सं. 1944 माघ शुक्ला 5 को हुआ। संवत् 1962 ज्येष्ठ शुक्ला 5 को 'रताड़िया' में पूज्य श्री केशरबाई की शिष्या श्री नाथीबाई के पास आपने दीक्षा ग्रहण की। आप लिंबड़ी संप्रदाय में सर्वाधिक दीर्घायु वाली प्रखर व्याख्याता एवं तीर्थस्वरूपा साध्वी थीं, समाघोघा में आप तीन वर्ष स्थिरवासिनी रहीं वहीं आपकी 100वीं जन्म जयंति का सोत्साह आयोजन प्रारंभ हुआ, अनेक भाई-बहन वर्षीतप की आराधना में संलग्न हुए, वैशाख मास में यह महोत्सव आयोजित होना था, उससे पूर्व सं. 2043 की कार्तिक पूर्णिमा के बाद संलेखना के साथ 99 वर्ष की उम्र में आप स्वर्गवासिनी हो गईं। आपकी स्मृति में 'श्री रत्न स्वाध्याय सदन' का निर्माण तथा 'रत्न सागर शताब्दी ग्रंथ' का विमोचन हुआ।56
6.5.1.14 श्री वेलबाई स्वामी (सं. 1967-2045)
आपका जन्म श्री वीरजीभाई की धर्मपत्नी भमीबहन की कुक्षि से संवत् 1945 गुंदाला ग्राम (कच्छ) में हुआ। 12 वर्ष की वय में श्री चांपशीभाई के साथ आपका विवाह हुआ, आठ वर्ष पश्चात् ही उनका स्वर्गवास हो गया। वासना के भूखे कामी प्रकृति के लोगों द्वारा अनेक विपत्तियां आने पर भी आप धर्म से च्युत नहीं हुईं। आपने अपनी व्युत्पन्न बुद्धि, साहस व धर्म पर अडिग श्रद्धा रखकर उन पर विजय प्राप्त की, अंततः श्री मंगलजी स्वामी की शिष्या श्री डाहीबाई तथाजीवीबाई महासतीजी के पास मांडवी (लींबड़ी) में माघ शु. 10 सं. 1967 में आचार्य श्री देवचन्द्रजी स्वामी के श्रीमुख से प्रव्रज्या अंगीकार करली। आपमें सेवा व समर्पणता की भावना उच्चकोटि की थी, वयोवृद्धा साध्वी श्री डाहीबाई एवं प्रज्ञाचक्षु श्री माणिकबाई की बहुत वर्षों तक सेवा की। आपके चिंतन में विवेक, वाणी में संयम एवं कर्त्तव्य में कुशलता का संगम था। शतायु एवं शत शिष्याओं की गुरूणी होने पर भी आप अत्यंत सरल स्वभावी एवं निरभिमानी थीं। 'रापर' में अंतिम समय तक आप स्थिरवासिनी रहीं। वहीं आश्विन शुक्ला 10 सं. 2045 को स्वर्गवासिनी हुईं।257
6.5.1.15 श्री माणिक्यबाई (1971-2039)
आपका जन्म सं. 1947 'मुन्द्रा' में श्री कुशलचंदभाई दोशी के यहां हुआ। सं. 1971 माघ शुक्ला 11 को 'मानकूवा' ग्राम में श्री जीविबाई स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की। आप परम विदुषी, अजोड़ व्याख्यानी एवं मधुरकंठी थीं। आप प्रज्ञाचक्षु बन गई थीं, कंठमाल की दारूण वेदना को अत्यंत सहनशीलता के साथ वेदन किया। आप अपनी संप्रदाय में प्रथम कोटि की प्रतिभावंत, विदुषी वक्ता थीं। आप वेलबाई स्वामी की शिष्या थीं। अंत में 'रापर' में स्थिरवास किया, लंबी बीमारी में भी औषध व उपचार नहीं किया। सं. 2039 ज्येष्ठ शु. 4 के दिन आपका स्वर्गवास हुआ।58
256. साध्वी सुलोचना स्मृति ग्रंथ, पृ. 42 257. वात्सल्य नी वहेती धारा, लेखिका-श्री उज्जवलकुमारीबाई महासती, प्रका.-अजरामर संघ, लींबड़ी (सौ.) ई. 1996 258. वात्सल्य नी वहेती धारा, पृ. 71
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