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________________ 6.4.8 श्री हीराबाई (सं. 1994-2035 ) आपका जन्म सौराष्ट्र भूमि में धोराजी ग्राम निवासी ब्रह्मक्षत्रिय श्री डाह्याभाई तथा माता रलियातबहेन के यहाँ सं. 1972 ज्येष्ठ शु. 11 को हुआ। जेतपुर निवासी श्री वनमालीदासभाई से आपका बाल्यवय में पाणिग्रहण हुआ, 3-4 वर्ष में ही पतिवियोग के पश्चात् दरियापुरी संप्रदाय की साध्वी श्री छबलबाई के वैराग्यवर्द्धक प्रवचन से आपमें आत्म-लक्ष्य को प्राप्त करने की धुन जागृत हुई तो एक ही महीने में सामायिक, प्रतिक्रमण, 10 स्तोक तथा आचारांग सूत्र भी सीख लिया और सं. 1994 वैशाख शु. 5 को अमदाबाद सारंगपुर में आप दीक्षित हो गईं। आप अतिशय प्रतिभावंत थीं, आपको 400 बड़ी-बड़ी सज्झाय कंठस्थ थीं, साथ ही कंठ भी सुरीला था, आप जब गातीं थीं तो आपके मधुर स्वर को सुनकर राह पर चलते लोग खड़े हो जाते थे, और एकाग्र मन से सज्झाय श्रवण करते थे। प्रवचनशैली अति सरल व प्रभावक थी, गुजरात, सौराष्ट्र झालावाड़, महाराष्ट्र, मुंबई आदि क्षेत्रों में आपने खूब धर्मप्रभावना की। आप तपस्विनी भी थीं, पोरसी रोज करती थीं, अन्य तपस्या भी की, पर पृथक् उल्लेख नहीं किया है। अंत समय में आपको पूर्वाभास हो गया था, अतः संथारा पूर्वक मुंबई अंधेरी के उपाश्रय में माघ शु. 2 सं. 2035 को कुल 62 वर्ष की उम्र में कालधर्म को प्राप्त हुईं। आपकी 5 शिष्याएँ हैं - श्री मंजुलाबाई, श्री कांताबाई, श्री मधुबाई, श्री ललिताबाई, श्री इन्दिराबाई तथा वीणाबाई, प्रवीणाबाई, भावनाबाई व जागृतिबाई ये 4 प्रशिष्याएँ हैं। 233 6.4.9 श्री जशवंतीबाई (सं. 1995-2053 ) आपका जन्म सूरत निवासी श्री मणिलाल छगनलाल संघवी के यहां श्रीमती शिवा बहन की कुक्षि से आश्विन कृ. 9 सं. 1978 में हुआ। दीक्षा माघ शु. 5 सं. 1995 के शुभ दिन छीपापोल अमदाबाद में हुई, श्री नाथी बाई आपकी गुरूणी थीं। आपने दीक्षा के पश्चात् 11 आगम, 100 स्तोक कितनी ही सज्झाय कथाएँ आदि कंठस्थ कीं, संस्कृत- प्राकृत की भी अच्छी जानकार थीं। प्रतिदिन दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग व नंदीसूत्र का स्वाध्याय चालू रहता था। आप सेवामूर्ति थीं, सतत 14 वर्ष शाहपुर श्री नाथीबाई की सेवा में संलग्न रहीं । विद्या व विनय संपन्नता आपके साहजिक गुण थे, सभी के प्रश्नों का सरल व शांति से समाधान कर संतुष्ट कर देती थीं। आपका विशाल अध्ययन चिंतन व अनुभव आपकी तेजस्वी वाणी से प्रकट होता था। आपकी 4 शिष्याएँ हैं- श्री कुसुमबाई, प्रफुल्लाबाई, नलिनीबाई व उर्वशीबाई । चारों शिष्याओं को योग्य एवं विदुषी बनाकर 78 वर्ष की अवस्था में ज्येष्ठ शु. 11 सं. 2053 को देहातीत अवस्था में समाधिमरण को प्राप्त हुईं। श्री वीरेन्द्रमुनि श्री राजेन्द्रमुनि व श्री रवीन्द्रमुनि आपके द्वारा प्रेरित होकर संयम अनुगामिनी बने | 234 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.4.10 श्री वसुमतीबाई (सं. 1995-2031 ) आप दरियापुरी संप्रदाय की तेजस्विनी प्रभावसंपन्ना साध्वी थीं, आपका जन्म सं. 1963 चैत्र कृ. 1 को हुआ । आपके पिता श्री तलसीभाई पालनपुर राज्य के नवाबी राजा के दीवान थे। वैधव्य के पश्चात् सं. 2031 चैत्र कृ. 11 को वीरमगाम में आपकी दीक्षा श्री सूरजबाई की शिष्या श्री केसरबाई के पास हुई। आप प्रारंभ से ही प्रतिभावंत 233. शिष्याओं द्वारा प्राप्त, सूरत से प्राप्त, गुरूणीमैया हीराबाई म. सा. नु. जीवन कथन 234. वात्सल्यता नी वीरड़ी, संपा. - मेरूभाई झींझुवाड़िया, अमदाबाद, ई. 1998 Jain Education International 612 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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