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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास श्रमणी शिरोमणि श्री शारदाबाई महासती का नाम इस रूप में इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। श्री शारदाबाई का जन्म वि. सं. 1981 को साणंद (अहमदाबाद) में माता शकरीबहन और पिता वाडीभाई शाह के यहाँ हुआ। खम्भात संप्रदाय के गच्छाधिपति ब्र. श्री रत्नचंद्रजी महाराज के सान्निध्य में इन्होंने, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन सत्र एवं शताधिक स्तोक कंठस्थ किये और 13 वर्ष की अल्पाय में ही जीवन पर्यन्त टेन में सफर न करने का दृढ संकल्प कर लिया। माता-पिता, परिवारीजनों के बहत समझाने डराने धमकाने पर भी आपकी वैराग्य भावना दृढ़ बनी रही तो 16 वर्ष की आयु में 'साणंद' में ही सं. 1996 वैशाख शुक्ला षष्ठी के शुभ दिन पू. रत्नचंद्रजी म. के मुखारविन्द से दीक्षा पाठ पढ़ाकर पूज्या पार्वतीबाई महासतीजी की शिष्या बनाया। आप संयमी जीवन की सभी कलाओं में निष्णात, विनय और विवेक की प्रतिमूर्ति बत्तीस शास्त्रों की गहन ज्ञाता, अध्येता, सरल, गंभीर नीडर वक्ता, विशाल दृष्टि संपन्न, संप्रदाय की खिवैया थीं। आचार्य रत्नचन्द्र जी महाराज तथा श्री गुलाबचंद्रजी म. सा. के कालधर्म के पश्चात् जब खंभात संप्रदाय में एक भी संत नहीं रहा, उस समय आपने वह वहाँ के संघपति श्री कांतिभाई पटेल को उद्बोधित किया, आपकी प्रेरणा से खम्भात से चार भाई दीक्षा लेने को तैयार हुए, आपके पुनीत हस्तों से उनकी दीक्षा विधि संपन्न हुई, आप उनकी दीक्षा प्रदाता गुरूणी बनी। उनके नाम हैं- आचार्य श्री कांतिऋषिजी, श्री सूर्यमुनिजी, वर्तमान आचार्य श्री अरविन्दमुनिजी एवं श्री नवीनमुनिजी। इनके अतिरिक्त 36 बहनों ने आपसे प्रतिबोध पाकर दीक्षा अंगीकार की। आप प्रखर-व्याख्याता थीं, अन्तर्ग्रन्थियों को खोलने वाली आपकी वाणी से कांदावाड़ी मुंबई में एक चातुर्मास में 16 मासखमण एवं 6 से ऊपर उपवास करने वाले दोसौ व्यक्ति थे। आपकी विशेष उल्लेखनीय विशेषता यह है कि आपके प्रवचनों की पुस्तकें 10-10 हजार की संख्या में प्रकाशित होती हैं, तथापि निरन्तर मांग बनी रहती है। आपकी पुस्तकें पढ़कर जैन-जैनेतर हजार से अधिक भाई-बहनों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया है। अनेकों ने व्यसनों का, यहाँ तक की मीसा के तहत कारावास भोगते जैन भाई तक धर्मध्यान में जुड़ गये। आप मात्र दो वर्ष की संयम-पर्याय से प्रारम्भ करके जीवन के अंतिम दिन तक प्रवचन वर्षा करती रहीं आपके प्रवचनों की 14 पुस्तकें हैं-शारदा सुधा, शारदा संजीवनी, शारदा माधुरी, शारदा परिमल, शारदा सौरभ, शारदा सरिता, शारदा ज्योत, शारदा सागर, शारदा शिखर, शारदा दर्शन, शारदा सुवास, शारदा सिद्धि, शारदा रत्न, शारदा शिरोमणि। अंतिम दिन भी एक घंटा प्रवचन, मंगलपाठ, 135 जीवों को अभयदान, 51 अखंड अद्र लोगस्स का कायोत्सर्ग आदि करवाया। अपने 46 वें वर्ष के संयम-पर्याय में लगे दोषों के लिये स्वयं छः महीने दीक्षा छेद का प्रायश्चित् लेकर 'जीव जा रहा है नवकार बोलों' का संकेत देकर आप समाधिपूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। आपका दीक्षा एवं स्वर्गवास एक ही दिन वैशाख शुक्ला छठ बुधवार को था। आपके जीवन को प्रकाशित करने वाली पुस्तक है- दीवादांडी-16 तथा जीवन केम जीवी जाणवु?-17 6.3.3.2 श्री वसुबाई महासतीजी (सं. 2013) आपका जन्म विरमगाम में 'शाह' परिवार में हुआ। 23 वर्ष की अविवाहित अवस्था में सं. 2013 मृगशिर शु. 5 को वीरमगाम में आपने शासनरत्ना श्री शारदाबाई के पास दीक्षा अंगीकार की। आपने उत्तराध्ययन, 216. शारदा स्मृति ग्रंथ, प्रकाशक-श्री वर्ध. स्था. जैन श्रावक संघ, 1 मामलदारवाड़ी, मलाड (वेस्ट), मुंबई, 1988 217. प्रेरिका श्री वसुबाई महासतीजी, प्रकाशक-स्व. लीलाबेन कीर्तिलाल मणिलाल मेहता, मुंबई, 1990 606 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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