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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ संगीत, काव्य-लेखन, संपादन आदि कलाओं में कुशल थीं, इन्होंने अंग्रेजी साहित्य तथा जैनधर्म दर्शन में एम.ए. (डबल) किया है। यह होनहार साध्वी अकस्मात् दुर्घटना से ग्रस्त होकर करनाल रोड पर स्वर्गस्थ हो गईं। 6.3.2.116 श्री प्रमिलाजी (सं. 2054 से वर्तमान) प्रमिलाजी का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में श्री चमनलाल जैन, श्रीमती पूरणदेवीजी के यहां संवत् 2003 में हुआ। 11 फरवरी संवत् 2054 को करनाल में उपाध्याय मनोहरमुनिजी के श्रीमुख से दीक्षित होकर श्री कुसुमलताजी की शिष्या बनीं। इन्होंने बी. एस. सी. पास की है, अध्ययन-अध्यापन, लेखन, तपस्या आदि में इनकी अभिरूचि सराहनीय है।212 6.3.2.117 श्री पुष्पांजलिजी (सं. 2056 से वर्तमान) __ ये अंबाला शहर निवासी श्री प्रमोद गोयल की सुपुत्री हैं। संवत् 2039 नवम्बर 28 को जन्म और संवत् 2056 फरवरी 11 को मालेरकोटला में दीक्षित हुईं। ये श्री सुभाषाजी की शिष्या हैं। आगम, स्तोक, स्तोत्र, आदि के साथ सेवा, तपस्या, बाल शिक्षण आदि में इनकी अभिरूचि है।13 6.3.2.118 श्री चित्राजी (सं. 2058 से वर्तमान) इनका जन्म बटाला (पंजाब) में संवत् 2043 को श्री प्रदीपजी शर्मा के यहां हुआ। वरिष्ठ उपाध्याय श्री मनोहरमुनिजी से संवत् 2058 फरवरी 17 को गिद्दड़बाहा में दीक्षा लेकर श्री करूणाजी की ये शिष्या बनीं। ये भी आगम, स्तोक, स्तोत्र की अध्येता व संगीत सेवा तपस्या में अभिरूचि संपन्ना हैं।214 6.3.2.119 श्री आकांक्षाजी (सं. 2058 से वर्तमान) आकांक्षाजी देहरादून के श्री राजेन्द्रप्रसाद द्विवेदी के यहां 5 दिसंबर 1982 को जन्मीं और संवत् 2058 फरवरी 24 को करनाल में उपाध्याय श्री मनोहरमुनिजी महाराज से दीक्षित होकर डॉ. सुभाषा जी की शिष्या बनीं। आगम, स्तोक आदि के अध्ययन के साथ बालकों को सुसंस्कार देने में भी ये अग्रणी है।15 6.3.3 श्री ताराऋषिजी की खंभात ऋषि संप्रदाय व उनका श्रमणी-समुदाय 6.3.3.1 महासती श्री शारदाबाई (सं. 1996-2042) जैन धर्म में ऐसी अनेकों श्रमणियाँ हुई हैं, जिन्होंने अपने तेजस्वी व्यक्तित्व से पुरूषों को मात्र प्रतिबोधित ही नहीं किया वरन् उन्हें स्वयं श्रमणधर्म में दीक्षित कर आचार्य पद के योग्य भी बनाया। खंभात संप्रदाय की 211. कुसुमाभिनन्दनम्, परिशिष्ट भाग 212. वही, परिशिष्ट भाग 213. कुसुमाभिनन्दनम्, परिशिष्ट 214. कुसुमाभिनन्दनम्, परिशिष्ट 215. कुसुमाभिनन्दनम्, परिशिष्ट 605 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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