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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास पास हुई। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से सन् 2003 में “विपाकसूत्रः एक दार्शनिक अध्ययन' विषय लेकर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।207 6.3.2.112 डॉ. श्री स्मृतिजी (2047 से वर्तमान) इनका जन्म संवत् 2026 मई 17 को अम्बाला के श्री तरसेमकुमारजी के यहां हुआ। संवत् 2047 फरवरी 19 को सफीदों मंडी में दीक्षित होकर ये श्री सुधाजी की शिष्या बनीं। स्मृतिजी प्रतिभा संपन्न विदुषी साध्वी हैं। इन्होंने कुरूक्षेत्र से संस्कृत में एम. ए. कर स्वर्णपदक प्राप्त किया, यहीं से डॉ. धर्मचंद जैन के निर्देशन में 'उपासकदशासूत्र में श्रावकाचार' विषय लेकर सन् 1999 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। यह शोध प्रबन्ध दिल्ली से सन् 2004 में प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त 'निरयावलिका सूत्र, सचित्र भगवान महावीर, व महाश्रमणी अभिनंदन ग्रंथ की भी प्रमुख संपादिका हैं। इन्होंने 51, 72 आयंबिल आदि तप भी किये हैं।208 6.3.2.113 डॉ. श्री भावनाजी (सं. 2048 से वर्तमान) __ ये बठिण्डा जिले के आहलुदपुर निवासी श्री सन्तरामजी जैन (नाहटा) की सुपुत्री हैं। इनका जन्म 15 अप्रेल सन् 1971 में हुआ। उपप्रवर्तनी श्री कौशल्यादेवीजी के पास सिरसा (हरियाणा) में संवत् 2048 अप्रेल 1 को दीक्षा अंगीकार की। इन्होंने 'आचार्य आत्मारामजी महाराज व्यक्तित्व और कृतित्व' पर चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से सन् 2001 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।209 6.3.2.114 तपस्विनी श्री शुभजी (सं. 2049 से वर्तमान) जैनधर्म की तपःपूत आत्माओं में श्री शुभजी का नाम भी शीर्षस्थान पर है, जगराओं में जुलाई 1997 से गर्म जल के आधार पर उत्तरोत्तर बढ़ते हुए इन्होंने 265 दिन के उपवास की तथा सन् 2005 लुधियाना में 170 दिन की दीर्घ तपस्या की। इनका जन्म जालन्धर में एक अजैन नैय्यर परिवार में हुआ। बचपन से ही विरक्तात्मा श्री शुभजी ने श्री राजेश्वरजी महाराज की सुशिष्या श्री सुनीताजी के संसर्ग में आकर सन् 1992 में दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के प्रथम वर्ष ही इन्होंने दीर्घ तप की आराधना की और प्रतिवर्ष तप का क्रम उत्तरोत्तर बढ़ाती रहीं। इतनी अल्प दीक्षा-पर्याय में महान तप करने वाली ये सर्वप्रथम साध्वी हैं। तप के साथ-साथ ये कई-कई घण्टे जप में व्यतीत करती हैं।210 6.3.2.115 श्री गीतांजलि जी (सं. 2051-62) पठानकोट में संवत् 2035 को श्री राममूर्तिजी के घर जन्मीं गीतांजलिजी ने अपनी ज्येष्ठ भगिनी डॉ. श्री सुभाषाजी का अनुगमन कर उन्हीं के पास संवत् 2051 फरवरी 4 को जालंधर में दीक्षा अंगीकार की। ये भी 207. वही 208. (क) महाश्रमणी, पृ. 56 (ख) परिचय पत्र के आधार से 209. उपप्रपवर्तिनी श्री कौशल्यादेवी जीवन-दर्शन, पृ. 120 210. भूपेन्द्र जैन, मंत्री जगराओं: जैन प्रकाश 23 मार्च 1998 के अंतिम कवर पृष्ठ पर उद्धत 604 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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