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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ श्रीमुख से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री स्वर्णकुमारीजी की शिष्या बनीं। दीक्षा के पश्चात् आपने आगम, स्तोक आदि का गहन अध्ययन कर जैन सिद्धान्त शास्त्री परीक्षा भी उत्तीर्ण की। आपकी प्रेरणा से गुड़गांवा में महासती हुक्मदेवी जैन सिलाई शिक्षण केन्द्र की स्थापना तथा अन्य अनेकों लोकमंगलकारी कार्य हुए। 78 6.3.2.82 श्री विमलाश्रीजी (सं. 2014 से वर्तमान) आपका जन्म कैंथल (हरियाणा) सं. 1997 में श्री हरिरामजी अग्रवाल के यहां श्रीमती मामनीदेवी की कुक्षि से हुआ। आपकी बुआजी श्रीमती मायादेवीजी के सम्पर्क से वैराग्य के बीज अंकुरित हुए और शेरे पंजाब श्री प्रेमचंदजी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर मार्गशीर्ष शु. 14 को आप दीक्षित हुईं। आप अध्यात्मयोगिनी श्री कौशल्यादेवी जी की शिष्या बनीं। आपने पाथर्डी बोर्ड से जैन सिद्धान्ताचार्य, एवं मैसूर विश्व विद्यालय से एम. - ए. की परीक्षा दी। आप स्वभाव से सरल, बुद्धि से प्रखर एवं स्पष्ट वक्ता साध्वी हैं। आपकी दो शिष्याएँ हैं-श्री उर्मिला जी एवं श्री कृपाश्रीजी। उर्मिलाश्रीजी दृढ़ संकल्पी, तपस्विनी तथा सेवाभाविनी साध्वी हैं। इनकी एक शिष्या है-श्री निधिश्रीजी, निधिश्रीजी एवं कृपाश्रीजी दोनों अत्यंत विदुषी प्रखरवक्ता, धर्म प्रभाविका साध्वियाँ हैं। इन दोनों की कई मौलिक कृतियाँ प्रकाशित हैं। जीवन-बोध, जीवन-पाथेय, जीवन डायरी, आपकी राशि आपका समाधान, सुमति माला, सौ बातों की एक बात, जीना आये वह जिंदगी, Solution to Your sunsign, Pseudo persona, Bhaktamar Stotra." 6.3.2.83 डॉ. श्री सरोजश्रीजी (सं. 2014 से वर्तमान) ___ आप देहली चांदनीचौंक निवासी श्री तुरतसिंहजी सुराणा एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मेमबाई की सुपुत्री हैं। 15 वर्ष की उम्र में महासती कौशल्यादेवीजी के तप-त्यागमय जीवन से प्रभावित होकर शेरे पंजाब प्रेमचंदजी महाराज से दीक्षा अंगीकार की। आप जैन सिद्धान्त शास्त्री, साहित्यरत्न व एम.ए., पी.एच.डी. हैं। आप हंसमुख प्रकृति की निर्भीक एवं स्पष्टवादी साध्वी हैं आपने 'बनारसीदास व्यक्तित्व व कृतित्व' पर बम्बई वि. वि. से ई0 1989 में पी. एच. डी. की डीग्री प्राप्त की। आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं-वास्तविक भाव अनुप्रेक्षा, महावीर दर्शन, नमू अनंत चौबीसी, सन्मति स्वर, प्राज्ञमणियाँ, आप्तमणियाँ, सम्यक्मणियाँ, समाधान के मोती, जननायक महावीर आदि। आपकी दो शिष्याएँ हैं-श्री यशाजी व श्री कौमुदीश्रीजी।180 6.3.2.84 श्री भागवन्तीजी (सं. 2014 से वर्तमान) आप श्री शांतिदेवीजी की ज्येष्ठ भगिनी हैं, आपका विवाह रोहतक निवासी श्री केसरीलालजी से हुआ। पतिवियोग के पश्चात् आपने 27 वर्ष की उम्र में व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री सुन्दरीजी महाराज का शिष्यत्व ग्रहण किया। आप अत्यंत सेवाभावी एवं मधुर स्वभावी साध्वी हैं। आपकी तीन शिष्याएँ हैं - श्री शिक्षा जी, श्री संयमप्रभाजी 'कमल' एवं श्री वंदनाजी।।8] 178-180. परिचय पत्र के आधार पर 181. संयम-सुरभि, पृ. 147 595 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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