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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.3.2.79 श्री चन्द्रकलाजी (सं. 2012-36) आपका जन्म सींख पाथरी (हरियाणा) ग्राम में वि. सं. 1989 को लाला कश्मीरीलालजी जैन के यहां हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही आप विधवा हो गई, सं. 2012 चैत्र शु. 13 के दिन जैननगर मेरठ में तपस्वी श्री निहालचंदजी म. के श्रीमुख से दीक्षा अंगीकार कर आपने साध्वी जीवन में प्रवेश किया, और पन्नादेवीजी टोहानावालों की शिष्या बनीं। आप अध्ययनशीला संयमी जपी-तपी तो थी ही, साथ ही आपके अन्त:करण में करूणा का अनंत स्रोत था, सन् 1980 जीन्दशहर में विहार के समय रेल की पटरी पर चलती हुई अबोध गाय और सामने आती हुई गाड़ी को देखकर आपका हृदय करूणा से आप्लावित हो उठा, गाय को रेल की पटरी से बाहर किया, किंतु इतनी ही देर में वेग से आती हुई गाड़ी से टकराकर आप नीचे गिर पड़ी और वहीं समाधिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हो गईं। आपका यह प्राणोत्सर्ग दयाव्रती धर्मरूचि अणगार की स्मृति करवाता है, उन्होंने कीड़ियों की करूणा से प्रेरित होकर अपने प्राणों का त्याग किया आपने गाय की करूणा करके अपने प्राणों को दांव पर लगा दिया। 25 वर्ष की संयम-पर्याय में आपने बहुत वर्ष एकांतर बेले, तेले आदि की तपस्या की एवं उग्र संयम का पालन किया। 6.3.2.80 घोरतपस्विनी महासती श्री मोहनमालाजी (2013 से वर्तमान) तप चक्रेश्वरी महासती श्री मोहनमालाजी आज तप और त्याग के क्षेत्र में भारत भर में ही नहीं विदेशों में भी चर्चित हैं। आपका जन्म पंजाब की औद्योगिक नगरी फगवाड़ा में पिता श्री अमरचंद जैन और माता द्रौपदीदेवी के यहां सन् 1939 में हुआ। संयम के संकल्पित महापथ पर बढ़ने की आज्ञा प्राप्त करने के लिये गर्मी की मौसम में तीन-तीन दिन भूखे प्यासे भूसे की कोठरी में व्यतीत कर तथा अनेक कठोर संघर्षों का शूरवीरता से सामना करने के पश्चात्, सगाई के बंधन को तोड़ने में सफल हुई, अंतत: 4 जून 1957 को फगवाड़ा में ही श्री प्रवेशकुमारीजी के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। वैराग्यावस्था में ही 8, 13 उपवास कर दिखाने वाली महासती ने अब तो प्रतिवर्ष अठाई, दस इत्यादि करने प्रारंभ किये, 250 प्रत्याख्यानों के कोष्ठक कई बार किये, एक मुट्ठी मुरमुरे के आधार पर 35, 71 आयम्बिल एवं बढ़ते हुए 37 उपवास 112 उपवास किये। संवत् 2055 में 211 उपवास एवं संवत् 2052 में 311 उपवास कर आपने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इसके अतिरिक्त 153, 145, 205 उपवास भी किये हैं। करूणा और सेवाभावना से ओतप्रोत आपने 'महासती प्रवेशकुमारी जैन चैरीटेबल फीजियोथेरैपी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, डिस्पैन्सरी होस्पीटल, धर्मार्थ मिशन शिवाजीपार्क, महासती पन्नादेवी जैन हॉस्पीटल शिवविहार आदि अनेक जनोपयोगी संस्थाओं का निर्माण करवाया है। आपकी 5 शिष्याएँ हैं-श्री आदर्शज्योतिजी, श्री वीनाज्योतिजी, श्री पुनीतज्योतिजी, श्री साक्षीज्योतिजी, श्री आरतीजी।।77 6.3.2.81 श्री प्रवीणकुमारीजी (सं. 2013 से वर्तमान) आपका जन्म संवत् 1987 आषाढ़ शुक्ला 12 स्यालकोट (पंजाब) में श्री नगीनचंद व चम्पादेवी के यहां हुआ। संवत् 2013 माघ शुक्ला पंचमी के दिन चांदनी चौंक दिल्ली में पंडितरत्न श्री त्रिलोकचंदजी महाराज के 176. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 261 177. वही, पृ. 386 594 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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