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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
1997 को महाप्रयाण कर गईं। आपकी 5 शिष्याएँ हैं- श्री प्रवीण जी, मंजुलज्योतिजी, निधिज्योतिजी रचिताजी एवं प्रियंकाजी 1 172
6.3.2.76 उपप्रवर्तिनी श्री शशिकांताजी (सं. 2008-2048 )
साध्वी प्रमुखा श्री शशिकांताजी महाराज का जन्म हरियाणा प्रान्त के एक छोटे से ग्राम देहरा में सन् 1936 में हुआ। आपके पिता का नाम श्री माईधनजी जैन और माता का नाम श्रीमती कलावती था। पांच भाई बहनों में आप सबसे छोटी थीं। आपका विवाह झांसी निवासी श्री डिप्टीमलजी जैन के साथ हुआ, किंतु दो वर्ष बाद ही पति का स्वर्गवास हो गया। इस असह्य वज्रपात से आपको गहरी चोट लगी। उन्हीं दिनों महासती श्री श्रीमतिजी महाराज का पधारना हुआ, उनके संपर्क से वैराग्य रस से अनुप्राणित होकर आपने सन् 1952 में कांधला शहर में दीक्षा अंगीकार की। नाम के अनुरूप ही आपने अपनी निर्मल कान्ति का चारों दिशाओं में प्रसार किया। ऐसा कहा जाता है, कि आपके संयमी जीवन में ऐसा समय भी आया, जब अपनी गुरूणीजी के दिवंगत होने पर आप अकेली रह गई थीं, फिर भी आप विचलित नहीं हुई, और अपने दृढ़ मनोबल, त्याग वैराग्यमय जीवन के प्रभाव से विशाल श्रमणी परिवार की प्रमुखा बनीं। अंतिम समय में हृदयरोग से आक्रान्त होक 39 वर्ष की दीक्षा पर्याय के पूर्ण होते-होते दिल्ली अरिहंत नगर में 7 मार्च 1991 बृहस्पतिवार के दिन आप समाधि पूर्वक देहत्याग कर स्वर्गों की ओर प्रयाण कर गई। 173 आपके शिष्या परिवार का परिचय तालिका में दिया गया है।
6.3.2.77 उपप्रवर्तिनी श्री कुसुमलताजी (सं. 2010-62 )
आपका जन्म वि. सं. 1996 बामनोली (उ. प्र.) में श्री विशम्बरदयालजी के यहां हुआ, 12 वर्ष की अल्पायु में व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी महाराज के मुखारविन्द से दीक्षा ग्रहण कर श्री सरलादेवीजी की शिष्या बनीं। आप सदा स्वाध्याय में तल्लीन रहती थीं, सरलता, नम्रता, गंभीरता आपके व्यक्तित्व की अनूठी पहचान थी। 174 संवत् 2062 करनाल रोड पर सड़क दुर्घटना में अकस्मात् ही आप व आपकी पौत्र शिष्या गीतांजलिजी का स्वर्गवास हो गया ।
6.3.2.78 श्री विमलाजी (सं. 2011 )
आप चरणदास भाबू टांडा निवासी की पुत्री हैं, संवत् 2011 चैत्र शु. 13 को श्री कौशल्यादेवीजी म. के पास लुधियाना में आप दीक्षित हुईं, आप बड़ी तपस्विनी साध्वी हैं, 3 एकान्तर वर्षीतप 13 अठाइयाँ, प्रतरतप, मासखमण, दो बार पखवाड़ा आदि तप कर चुकी हैं। आप सौम्य व सरल स्वभावी हैं। 75
172. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 252
173. महासती केसर देवी गौ. ग्रं., पृ. 414
174. श्री कुसुमाभिनन्दनम्, प्रका. - आत्म मनोहर जैन संस्कृति केन्द्र, मालेरकोटला, ई. 2004
175. उपप्रवर्तिनी श्री कौशल्यादेवी जीवन-दर्शन, पृ. 102
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