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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास प्रकाशित करवाना यह सब आपके साहित्यिक प्रेम को दर्शाता है। इतना ही नहीं, आपने जैन आगम साहित्य पर शोधरत विद्वानों को प्रोत्साहित करने के लिये 'इंटरनेशनल पार्वती जैन अवार्ड' की स्थापना कराई, शाकाहार व अहिंसा के प्रचार हेतु सेठ नाथूराम कुनेरा की स्मृति में 'इंटरनेशनल महावीर जैन शाकाहार अवार्ड' की प्रेरणा दी। आप पच्चीसौवीं महावीर निर्वाण महोत्सव समिति की संयोजिका एवं अनेक संस्थाओं की प्रेरिका रही हैं 1 168 आपकी शिष्याओं का परिचय तालिका में दिया गया है। 6.3.2.72 श्री शकुंतलाजी (सं. 2006 से वर्तमान) आपका जन्म 'कलैथ' नामक क्षेत्र में पिता श्री भगतरामजी के यहां हुआ । होश्यारपुर में सं. 2006 में आपने दीक्षा ली। आप अहर्निश स्वाध्याय सेवा आदि में संलग्न रहती हैं। 169 6.3.2.73 श्री राजकुमारीजी (सं. 2006 से वर्तमान) आपका जन्म गुजरांवाला (पाकिस्तान) में लाला खैरायती रामजी जैन के यहां हुआ। 19 वर्ष की उम्र में प्रवर्तिनी श्री राजमतीजी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर आप श्री स्वर्णकान्ता जी की ज्येष्ठ शिष्या बनीं। आप सरल, नम्र एवं तपस्वीनि साध्वी हैं। 170 6.3.2.74 श्री स्वर्णकुमारीजी (सं. 2006 से वर्तमान ) आप लाहौर धर्मनिष्ठ श्रावक लाला लद्धामल जी ( साबुन वाले) की पौत्री व लाला टेकचंदजी की सुपुत्री हैं, आपकी माता का नाम सरस्वतीदेवी था। 18 वर्ष की उम्र में श्री भागमलजी महाराज से दीक्षा अंगीकार कर श्री हुकमदेवीजी की शिष्या बनीं, आप की दीक्षा दिल्ली सदरबाजार में हुई थी, आपकी दीक्षा पर लाला टेकचंद जी ने एक दिन में सामूहिक 1500 आयंबिल करवाये थे। आप विनयवान शास्त्रज्ञ विदुषी साध्वी हैं। आपकी दो शिष्याएँ हैं - श्री प्रवीणजी, श्री निर्मलजी | 171 6.3.2.75 श्री विजेन्द्रकुमारीजी (सं. 2008-54 ) आपका जन्म सं. 1994 ग्राम रिंढाणा (हरियाणा) में श्री परमेश्वरीदासजी जैन के यहां हुआ। आपने सं. 2008 माघ शु. 13 को तीतरवाड़ा (यू.पी.) में श्री प्रियावतीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। आप दृढ़ संयमी, अत्यंत सरलमना व अनुशासिता साध्वी थीं। हिंदी, अंग्रेजी, प्राकृत, संस्कृत, पंजाबी, ऊर्दू आदि कई भाषाओं की ज्ञाता थीं। आपके उपदेशों से अनेक लोगों ने उन्मार्ग का त्याग किया। समाज के गरीब वर्ग के प्रति करूणा से प्रेरित होकर निःशुल्क सिलाई कढ़ाई केन्द्र सुलतानपुरी दिल्ली में प्रारंभ करवाया, जैन साध्वी प्रियावती चिकित्सा केन्द्र ( सुलतानपुरी) की भी स्थापना करवाई। अंत में पूर्ण समाधि के साथ न्यू मुलतान नगर दिल्ली में 23 अगस्त 168. प्रमुख संपादिका - साध्वी स्मृति महाश्रमणी अभिनंदन ग्रंथ, खंड -2, पृ. 53-83 169. संयम सुरभि, पृ. 130 170. महाश्रमणी अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 53 171. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 381 Jain Education International 592 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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