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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.3.2.67 श्री राजेश्वरीजी (सं. 2003-51) आपका जन्म सं. 1975 में जम्मू निवासी श्री अमरचंदजी नाहर एवं माता लद्धादेवीजी के यहां हुआ। 28 वर्ष की अवस्था में पंजाब केसरी श्री प्रेमचन्दजी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर अंबाला में संयम अंगीकार किया। आप श्री मोहनदेवीजी महाराज की शिष्या बनीं। आप अतीव पुरूषार्थी, आगम विज्ञाता व दृढ़ संयमी थीं। 21-21 आयंबिल, कई अठाइयाँ, ओलीतप, आदि साधना में सदा संलग्न रहती थीं। आपकी प्रेरणा से अनेक स्थानकों का निर्माण हुआ, सिलाई शिक्षा केन्द्र, महिला मंडल, कन्या मंडल आदि की स्थापना हुई, अनेक युवकों को व्यसन मुक्त करवाकर सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया। महिलाओं में कुप्रथाओं का अंत करवाया, कई श्री संघों में आपसी विरोध को मिटाकर प्रेमभाव स्थापित करवाया। आपको वचनसिद्धि भी प्राप्त थी। संवत् 2051 जनवरी 6 को जालंधर शहर में आपका समाधिमरण हुआ। आपकी दो शिष्याएँ हैं-श्री सुलक्षणा जी, श्री प्रमोदजी163 6.3.2.68 महाश्रमणी श्री कौशल्यादेवीजी (सं. 2003-60) पूज्या गुरूवर्या श्री कौशल्यादेवी जी महाराज का जन्म आषाढ़ वदी अष्टमी, संवत् 1975 को 'लाहौर' (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता लाला खैरातीलालजी जैन एवं माता श्रीमती तारादेवीजी थीं। पूर्वभव के सुसंस्कारों से इस कन्या को पंजाब प्रवर्तक श्री शुक्लचंदजी म. द्वारा अध्यात्म बोध हुआ और माता-पिता के जटिल मोह बंधनों को अपने अनासक्त त्याग भाव से तोड़कर पंजाब सिंहनी केसरदेवी जी के पास सं. 2003 चैत्र कृ. 5 को पटियाला में दीक्षा अंगीकार की। आप संपूर्ण जैन समाज में एक शांत स्वभावी आत्मार्थिनी साध्वी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त थीं। आपने श्वेताम्बर परम्परा मान्य 32 आगमों का एवं दिगम्बर परम्परा मान्य विभिन्न शास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। स्वाध्याय और ध्यान के आलम्बन से अपनी आत्मा के सहज शांत स्वभाव को प्रकट करने का भी निरंतर उद्यम किया। अतः आप 'अध्यात्मयोगिनी महाश्रमणी' के नाम से वि,यात हुईं। अपनी 57 वर्ष की दीक्षा पर्याय में आपने अपनी गुरूणी श्री केसरदेवीजी के साथ पंजाब से लेकर सुदूर मद्रास तक हजारों कि. मी. की पद-यात्रा करके लाखों भारतवासियों को अहिंसात्मक ढंग से जीवन जीने की कला सिखाई। आपश्री के व्यक्तित्व की झांकी 'अध्यात्मयोगिनी महाश्रमणी' ग्रंथ में अंकित है। 64 दिल्ली वीरनगर में उत्कृष्ट वेदनीय कर्म को उत्कृष्ट समता के साथ भोगकर आप 26 नवम्बर सन् 2003 को स्वर्गप्रयाण कर गई। आपके स्वर्गवास पर अ. भा. जैन कांन्फ्रेंस की मुखपत्रिका 'जैनप्रकाश' ने 'महासती कौशल्यादेवी विशेषांक' प्रकाशित किया जो किसी श्रमणी के लिये निकला सर्वप्रथम विशेषांक था।65 आपकी 5 शिष्याएँ हैं-श्री विमलाश्रीजी, डॉ. सरोजश्रीजी, डॉ. श्री मंजुश्रीजी, श्री विजयश्रीजी, श्री भारतीश्रीजी। 6.3.2.69 श्री सरलादेवीजी (सं. 2004 से वर्तमान) वर्तमान में अर्हत् संघ की उपाचार्या साध्वी सरलादेवीजी श्री पन्नादेवीजी के परिवार की विदुषी साध्वी हैं। इनका जन्म आगरा में श्री पुष्पचंदजी जैन व माता कमलादेवीजी के यहां हुआ, बचपन में ही माता-पिता के 163. वही, पृ. 380 164. लेखिका-साध्वी विजयश्री 'आर्या', प्रका. पार्श्व ऑफसेट प्रैस, दिल्ली-7, ई. 1994 165. जैन प्रकाश, 2003 दिसम्बर अंक 590 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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