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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
6.3.2.64 उपप्रवर्तिनी श्री आज्ञावतीजी (सं. 2002 से वर्तमान)
आप हरियाणा के ग्राम सिंघाना जिला जींद में श्री अर्जुनदास जी जैन की सुपुत्री हैं, 12 वर्ष की लघुवय में ही पट्टी ग्राम अमृतसर (पंजाब) में संवत् 2002 माघ कृष्णा दूज के दिन श्री लाजवन्तीजी के पास दीक्षा ग्रहण की, उससे पूर्व ही गुरूणी का स्वर्गवास हो गया तो आपको राजमतीजी की शिष्या बना दिया। आप प्रखर बुद्धि संपन्न व अनेक भाषाओं की ज्ञाता हैं। आप सहज कवियित्री व लेखिका भी हैं, आपके भजनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हुई तथा उपन्यास भी प्रकाशित हैं। आप कुशल वक्ता एवं समर्थ लेखिका हैं। आपकी सद्प्रेरणा से करनाल में श्री चिन्तामणि जैन स्वाध्याय सदन का निर्माण हुआ है।160 6.3.2.65 उपप्रवर्तिनी श्री कैलाशवतीजी (सं. 2002 से 2061)
श्री कैलाशवतीजी महाराज का जन्म हरियाणा प्रान्त की हरी-भरी धरती 'हिसार' में वि. सं. 1947 की ज्येष्ठ शुक्ला नवमी को हुआ। आपके पिता श्रीमान् माडूमलजी जैन तुषाम निवासी' थे। माता का नाम श्रीमती भुल्लाबाई था। बाल्यावस्था में ही आपने भाई के देहावसान का निमित्त पाकर संयम मार्ग पर बढ़ने का निश्चय कर लिया। उस समय परिजनों ने आपको ताले में बन्द कर दिया, अनेक कठोर परीक्षाओं में विजय प्राप्त कर अंत में परिवारीजनों की आज्ञा प्राप्त कर महासती श्री धनदेवीजी महाराज के चरणों में वि. सं. 2002 की वैशाख कष्णा दूज को 'भिवानी' शहर में दीक्षा अंगीकार की। आप आगम-मर्मज्ञा एवं संस्कृत, प्राकृत हिंदी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती आदि अनेक भाषाओं की जानकार थीं। आपका जीवन त्याग का सागर व गुणों का आकार था। आपके द्वारा संग्रहित 'कैलाश स्वाध्याय जान गटका. जैनधर्म का अनमोल खजाना. तप की महकती कलियाँ, कैलाश की गूंज, महिमा मंडित मथरा, संयम-सरभि आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं। "श्रीकैलाश कल्पद्रम" नाम से एक अभिनन्दन ग्रन्थ श्रद्धालु भक्तों द्वारा आपको समर्पित हुआ है। 61 संवत् 2061 फाल्गुन कृष्णा 3 पानीपत में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी 38 शिष्या-प्रशिष्याएँ हैं उनका परिचय तालिका में देखें। 6.3.2.66 उपप्रवर्तिनी श्री सुभाषवतीजी (सं. 2002-स्वर्गस्थ)
श्री सुभाषवतीजी महाराज का जन्म रोहतक जिले के एक छोटे से ग्राम कलावाली गढ़ी में सन् 1915 में एक सम्पन्न वैश्य परिवार में हुआ था। पिता का नाम श्री चेतारामजी जैन एवं माता का नाम श्रीमती पालीदेवी था। बचपन में ही आपकी शादी पानीपत जिले के अन्तर्गत इसराना गांव में श्रीमान मोहनलालजी अग्रवाल के साथ हई। उनसे आपको एक कन्या रत्न की प्राप्ति हई। बालिका जब लगभग अढाई वर्ष की थी. तभी मोहनलालजी का स्वर्गवास हो गया, उसके पश्चात् आपने वैशाख कृष्णा द्वितीया संवत् 2002 को जालन्धर में प्रवर्तिनी श्री राजमतीजी की शिष्या श्री रतनदेवी जी के पास दीक्षा अंगीकार की। आपकी सुपुत्री भी श्री प्रवेशकुमारीजी के नाम से विख्यातनामा साध्वी हुई। हैं। पंजाब की सम्माननीया साध्वी वृन्द में आपका आदरणीय स्थान था। संयम-साधना में तल्लीन रहना आपका लक्ष्य रहा। श्री प्रवेशकमारीजी और श्री प्रभाज्योतिजी ये दो आपकी शिष्याएँ हैं। प्रवेशकुमारीजी की शिष्याएँ घोरतपस्विनी श्री मोहनमालाजी, श्री शांतिजी, पवित्रज्योतिजी श्री मंजुज्योतिजी श्री पूजाज्योतिजी हैं। पूजाज्योतिजी की श्री दीप्तिजी और श्री कीर्तिजी दो शिष्याएँ हैं। 62 160. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 404 161. प्रमुख संपा.-डॉ. हरीशकुमार वर्मा, सुश्रुत प्रकाशन दिल्ली-92, ई. 2004 162. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 405
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