SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 650
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास थी। आपने दृढ़ संयमी, खद्दरधारी श्री मथुरादेवीजी महाराज के पावन सान्निध्य में वैराग्य प्राप्त वि. सं. 1996 में सुनाम नगर में महान समाज सुधारक कवि श्री अमरमुनिजी महाराज से दीक्षा का पाठ पढ़ा। आप 'हरियाणा सिंहनी' के नाम से उत्तर भारत में एक ख्यातनामा साध्वी थीं। सामाजिक रूढ़ियों की समाप्ति पर आप सदा जोर देती रहती थीं। पीड़ित, असहाय, संकटापन्न व्यक्तियों को धैर्य बंधाने में आपकी कतृत्व - कला बड़ी अपूर्व थी । अनेक राजपूत, मुसलमानों को पंच परमेष्ठी का शरणा देकर आपने सप्त कुव्यसनों से मुक्ति दिलाई हैं। साहस, तितिक्षा, बलिदान आपके जीवन के विशिष्ट गुण थे। 'अध्यात्म साधिका सुंदरी अभिनंदन ग्रंथ में आपकी विस्तृत जीवन रेखाएं अंकित हैं। 157 6.3.2.62 उपप्रवर्तिनी श्री कौशल्याजी (सं. 1999 से वर्तमान ) आगम गगनचन्द्रिका, महासती श्री कौशल्याजी का जन्म दिल्ली चांदनी चौंक में वि. सं. 1975 आसोज बदि अष्टमी के दिन हुआ | आपके पिता सेठ कपूरचंदजी मालू दिल्ली के प्रसिद्ध जौहरी थे। माता धर्मपरायणा श्रीमती मेमवतीजी थीं। आपने वि. सं. 1999 आसोज सुदि सप्तमी के दिन गणि श्री उदयचंदजी महाराज से दिल्ली चांदनी चौंक में दीक्षा का पाठ पढ़ा और तपस्विनी महासती श्री सौभाग्यवतीजी की चरण-शरण में संयमी जीवन की शिक्षा प्राप्त की । दीक्षा अंगीकार करने के बाद आपने हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, ऊर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत व प्राकृत आदि भाषा - ज्ञान के साथ-साथ आचार्य सम्राट् श्री आत्मारामजी महाराज से जैनधर्म का गहन अध्ययन किया। सम्यक्त्व के सोपान, कुसुमाञ्जलि, मुक्ति साधन अमृतवाणी, आगमदीप, नित्य-नियम आदि पुस्तकें आप द्वारा प्रकाश में आई हैं। प्रज्ञा की तेजस्विता, प्रखर प्रतिभा, ज्ञान निर्जरित वाणी, प्रभावशाली उद्बोधन, सरल सुमधुर वाग्मिता, व्यवहार पटुता, कार्यक्षमता, क्रियानिष्ठता, सहिष्णुता, सेवाभाव आपकी निजी विशेषताएं हैं। 158 आपकी शिष्याओं का परिचय तालिका में देखें। 6.3.2.63 तपसूर्या महासाध्वी श्री हेमकंवरजी (सं. 2000 से वर्तमान ) आपका जन्म पंजाब के भटिण्डा जिला रामामण्डी कस्बे में सन् 1924 को अरोड़ावंशीय गुरूमुखमलजी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जयकौर के यहां हुआ। श्री पन्नालालजी म. एवं कवि श्री चन्दनमुनिजी के उपदेशों से प्रभावित होकर आपने 20 वर्ष की यौवनावस्था में महासती श्री मोहनकुंवरजी के सान्निध्य में नगर ' सिरसा ' में संयम अंगीकार किया। दीक्षा के पश्चात् ज्ञानोपासना एवं सेवा-भाव में अग्रणी रहकर वर्तमान में आप तपोसाधना में विश्वकीर्तिमान स्थापित करने वाली महासतीजी हैं। अपने जीवनकाल में अनगिनत अठाईयां, मासखमण तथा 61, 73, 75, 108, 131, 151 और 251 दिन के उपवास कर चुकी हैं। सन् 1998 त्रिनगर दिल्ली में 54 दिन के चौविहारी उपवास के साथ 204 दिन के उपवास तप का कीर्तिमान स्थापित किया है। आचार्यश्री, प्रवर्तक श्री आदि के द्वारा आप समय - समय पर तपोवारिधि, तपमुकुटमणि, तपसूर्या इत्यादि विरूदों से अलंकृत हुई | 159 157. अध्यात्म साधिका सुंदरी अभिनन्दन ग्रन्थः प्राप्ति स्थल- श्री सुरेशकुमार जैन, प्रशांत विहार, दिल्ली, 2003 ई. 158. उ. प्र. कौशल्यादेवी जीवन दर्शन, लेखक - श्री कमलचन्द मालू, जवाहरनगर, दिल्ली, 1996 ई. 159. साध्वी विजयश्री महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 385 Jain Education International 588 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy