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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास व्याख्यात्री, मधुर गायिका एवं कवियत्री के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आपश्री का विहार क्षेत्र हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान व दिल्ली रहा है। 51 आपकी शिष्याओं का परिचय तालिका में दिया गया है। 6.3.2.56 श्री सीताजी (सं. 1994 से वर्तमान ) मधुरभाषिणी, कवयित्री महासती श्री सीताजी का जन्म गुजरांवाला ( पाकिस्तान) में संवत् 1973 की कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन हुआ। आपके जन्म से पूर्व ही भयंकर वेदना से ग्रस्त आपकी माता रामप्यारी जी ने मन ही मन निश्चय किया कि यदि सुख पूर्वक संतान पैदा हो गई और मैं जीवित रही, तो अपनी संतान को जिनशासन में दीक्षित कर दूंगी। माता की शुभ भावना फलीभूत हुई और पिता कर्मचंदजी की मोहासक्ति को दूर कर माता ने अपनी पूर्वकृत प्रतिज्ञानुसार इन्हें मात्र साढे सात वर्ष की अवस्था में लाहौर में विराजित महासती श्री सौभाग्यवतीजी के चरणों में समर्पित कर दी। लगभग साढ़े चार वर्ष विरक्तावस्था में रहकर 11 वर्ष की आयु में वैशाख शुक्ला 13 सन् 1937 के दिन आप ने संयमी जीवन में प्रवेश किया। आप शास्त्र - मर्मज्ञा, कुशल अनुशासिका व आशु कवयित्री हैं। कंठ में मानों साक्षात् सरस्वती का वास है। साथ आपकी गीत रचना भी अनुपम है। आप जैन- संस्कृति का प्रचार प्रसार करती हुई अद्यतन जन-जन को धर्म मार्ग की ओर अग्रसर कर रही हैं। श्री सीताजी की दो शिष्याएँ हैं- श्री महेन्द्राजी व श्री शिमला जी। महेन्द्राजी की जनकजी एवं उनकी श्री मंजुजी, रंजनाजी, श्री समीक्षाजी, श्री दीपमालाजी एवं प्रगतिजी है। शिमलाजी की सुमित्राजी, संतोषजी, श्री निर्मलाजी, श्री पुष्पाजी, श्री दर्शनाजी एवं श्री आशाजी हैं। श्री सुमित्राजी की तीन शिष्याएँ हैं- श्री उषाजी, डॉ. श्रीसुनीताजी एवं डॉ. सुरभिजी। सुनीताजी की श्री साक्षीजी, डॉ. सुप्रियाजी श्री समृद्धिजी और श्री स्वातिजी श्री सुनिधिजी, श्री सुप्रतिभाजी, श्री सुदीप्ति जी हैं। श्री पुष्पाजी की 5 शिष्याएँ हैं - श्री ममताजी, श्री विजयजी, श्री सुषमाजी, श्री सुधाजी, श्री दिव्याजी । इस प्रकार श्री उप प्रवर्तिनी श्री सीताजी का 31 शिष्या - प्रशिष्या का परिवार है। 152 6.3.2.57 उपप्रवर्तिनी श्री मगनश्रीजी (सं. 1994-2054 ) श्री मगन श्रीजी महाराज का जन्म वि. सं. 1973 की फाल्गुन कृष्णा अमावस्या के दिन हरियाणा प्रान्त के 'राजपुर' ग्राम में हुआ। आपके पिता श्रीमान् चौधरी जीतराम राठी और माता धर्मशीला रजवण कौर थीं। 21 वर्ष की अवस्था में आपने महार्या श्री मथुरादेवीजी ( खद्दरवाले) के पास सं. 1994 वैशाख शुक्ला 3 को स्यालकोट शहर में प्रव्रज्या अंगीकार की। आपने हरियाणा, पंजाब, यू. पी. दिल्ली आदि में परिभ्रमण कर धर्म का खूब प्रचार किया, आपका जीवन अत्यंत सरल एवं यशस्वी था। आपका आचार, उच्चार व विचार एकरूपता लिये हुए था। वाणी ओजस्वी और सूत्रानुसारी थी। पुस्तक, पात्र आदि का अनावश्यक संग्रह आप नहीं करती थीं। नियमित स्वाध्याय आपका व्यसन रहा । साठ वर्ष का संयम पर्याय पालकर सन् 1997 त्रिनगर दिल्ली में आपका स्वर्गवास हुआ । इनके शिष्या परिवार का परिचय तालिका में दिया गया है। 153 151. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 413 152. वही. पृ. 396 153. वही. पृ. 394 Jain Education International 586 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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