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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ धर्मचन्दजी गुप्ता के यहां हुआ था। आप विवाह के कुछ ही समय पश्चात् विधवा हो गईं। बचपन से ही साधु संगति करना, गीता-रामायण, श्रीमद्भागवत का पाठ करना या सुनना आपको अत्यंत प्रिय था। अतः श्री पन्नादेवी जी महाराज के सत्संग से आपका मुमुक्षु मन शीघ्र ही विरक्त हो गया। और तीतरवाड़ा ग्राम में वि. सं. 1992 माघ शुक्ला तृतीया के दिन दीक्षा अंगीकार की। आप प्राकृत, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, गुजराती आदि भाषाओं की ज्ञाता थीं। तथा सतत अप्रमत भाव से स्वाध्याय, जप-तप आदि में संलग्न रहती थीं, फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी, सं. 2051 में आपका स्वर्गवास हुआ।148 आपकी शिष्याओं का परिचय तालिका में देखें। 6.3.2.53 उपप्रवर्तिनी श्री अभयकुमारीजी (वि. सं. 1993-2051) आपने फिरोजपुर जिले के जीरा ग्राम में श्री मुंशीरामजी जैन के घर जन्म लिया। श्री चन्दाजी महाराज के उपदेश से सं. 1993 दिल्ली चांदनीचौंक में दीक्षा अंगीकार कर श्री लज्जावतीजी की शिष्या बनीं। आप अत्यन्त सरल और सादगीपूर्ण विचार वाली थीं। आप एवं उपप्रवर्तिनी श्री सावित्रीजी महाराज दोनों बहिनें थी। श्री शांताजी, पद्माजी, श्री मीनाजी आपकी शिष्याएँ हैं और कांताजी, श्री मुक्ताजी, श्री मंजूषाजी, श्री महकजी श्री मनीषाजी, श्री सुमन जी प्रपौत्र शिष्याएँ हैं। श्री सावित्रीजी की एक शिष्या हैं-श्री उमेशजी, ये बड़ी विदुषी साध्वी हैं, इनकी जीवन विज्ञान भाग 1-4 व प्रश्नों के सीप समाधान के मोती आदि तत्त्वज्ञान से संबंधित पुस्तकें लुधियाना से प्रकाशित हुई हैं उमेशजी की तीन शिष्याएँ हैं-श्री वीणाजी, श्री सुनीताजी, श्री शालूजी।'49 6.3.2.54 श्री श्रीमतीजी (सं. 1993-2020) आपका जन्म 'खेवड़ा' (हरियाणा) में वि. सं. 1974 को श्री जगराम चौधरी मनियारी व्यवसायी के यहां हुआ, एवं शादी रोहतक में हुई। श्री पन्नादेवीजी महाराज के सत्संग से वैराग्य का बीज अंकुरित हुआ तो सं. 1993 ज्येष्ठ कृ. 3 के दिन 16 वर्ष की उम्र में गणी श्री उदयचंद्रजी महाराज से दीक्षा अंगीकार करली एवं हुक्मदेवीजी की शिष्या बनीं। आप बहुभाषविद् थीं, 8 से 11 तक और 15, 21, 23 आदि के थोक व कई अठाइयाँ की। सं. 2020 माघ कृ. 14 को जीन्द में आपका स्वर्गवास हुआ।50 6.3.2.55 उपप्रवर्तिनी श्री प्रेमकुमारीजी (सं. 1994 से वर्तमान) परम विदुषी, महासती श्री प्रेमकुमारीजी का जन्म वि. सं. 1997 कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी के दिन हरियाणा प्रान्त के एक छोटे से ग्राम 'अट्टा चौरासी' में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी एवं पिता का नाम श्री रिशालसिंह चौधरी था। नौं वर्ष की उम्र में ही साध्वी शिरोमणि श्री पन्नादेवी जी महाराज (टुहाना वाले) के सान्निध्य में वैराग्य की प्राप्ति हुई, एवं वि. सं. 1994 में उन्हीं के पास बड़ौत मंडी में दीक्षा अंगीकार की। आप संस्कृत, प्राकृत, हिंदी उर्दू आदि भाषाओं के साथ जैनधर्म आगम-शास्त्र, न्याय-व्याकरण आदि की भी अध्येता हैं। 15 वर्ष की आय से ही प्रवचन करना प्रारंभ कर दिया। आज आप स्थानकवासी: 148. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 240 149. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 393 150. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 242-43 585 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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