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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ समय 'स्यापा' का बड़ा बुरा रिवाज था। इसके विरूद्ध ऐसी सिंह गर्जना की, कि स्थान-स्थान से यह प्रथा भी समाप्त होती चली गई। आज इस प्रथा का पंजाब में नामोनिशां भी नहीं रहा, इसका अधिकांश श्रेय द्रौपदांजी महाराज का है। स्वर्गवास से एक दिन पूर्व भी आपने अंबाला समाज के आपसी वैमनस्य को दूर करने की प्रेरणा दी। आपकी प्रेरणा के फलस्वरूप विमान उठाने से पूर्व सभी ने अपने अहं भरे आग्रहों का त्याग कर क्षमायाचना की, उसके पश्चात् विमान उठाया गया। भाद्रपद सुदी 8 संवत् 1992 में जहाँ आप जन्मी वहीं से अंतिम विदाई ली। आपके स्वर्गवास पर जालंधर, अम्बाला, जम्मू, हांसी, रोहतक आदि कई स्थानों पर बिरादरी ने बाजार बंद रखा। जैनशासन की गरिमा बढ़ाने वाला महासती द्रौपदांजी का अनूठा अवदान सदा चिरस्मरणीय रहेगा। आपकी 5 शिष्याएँ थीं- धनदेवीजी, मोहनदेवीजी, धर्मवतीजी, हंसादेवीजी सोमादेवीजी।122 6.3.2.27 श्री पन्नादेवीजी (1958-2037) महासती पन्नादेवीजी महाराज का जन्म आज से एक शताब्दी पूर्व वि. सं. 1948 में सोजत नगर (राज.) के एक सम्भ्रान्त क्षत्रिय परिवार के श्री किशनचंदजी चौहान और श्रीमती जानकीदेवी के यहां हुआ। मात्र 9 वर्ष की वय में श्रमणी श्रेष्ठा प्रवर्तनी पार्वतीजी तथा लब्धिधारी मुनि जी मायारामजी महाराज के दर्शन करते ही पूर्व संस्कारों से प्रेरित होकर आप वि. सं. 1958 में जयपुर वर्षावास कर रही प्रवर्तिनी पार्वतीजी महाराज के चरणों में प्रवर्जित हो गई। आप प्रवर्तनी श्री राजमतीजी महाराज की शिष्या बनीं। आपने स्वल्प समय में ही आगमों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त कर लिया। आपकी वाग्धारा इतनी सहज और सरल थी कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। कांधला चातुर्मास में आपने अपनी विद्या व प्रवचन-पटुता से लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। आपके स्वच्छ आचार एवं स्वच्छ विचारों ने आपको उत्कर्षता प्रदान की। लगभग 8 दशक तक संयम पर्याय का पालन कर 27 मई 1980 को स्वर्गस्थ हो गईं। आपकी 4 शिष्याएँ थीं-श्री जयंतिजी, गुणवंतीजी, रायकलीजी, हर्षावतीजी।123 6.3.2.28 श्री लाजवन्तीजी (सं. 1960-2006) आपका जन्म रावलपिंडी व दीक्षा यौवनवय में भाद्रपद मास सं. 1960 में श्री गंगादेवीजी के सान्निध्य में हुईं। आप जाति से ओसवाल व स्वामी श्री खजानचंद्रजी महाराज की बहिन थीं, वर्षों तक बरवाला में स्थिरवास रहीं। आपकी शिष्या परंपरा नहीं चली।।24 6.3.2.29 श्री मथुरादेवीजी (सं. 1960-2002) आपका जन्म हरियाणा प्रांत पुर खास में राठी वंश के चौधरी श्री मोखरामजी की धर्मपत्नी जैकोर की कुक्षि से संवत् 1937 की भादों वदि दूज को हुआ। कुछ बड़े होने पर बुआना ग्राम के चौधरी के यहां शादी कर दी। शादी के 6 मास पश्चात् ही इनके पति की मृत्यु हो गई। ससुराल पक्ष वालों ने देवर से; जो उम्र में काफी छोटा था, शादी करने का आग्रह किया तो आपको गृहस्थ जीवन से ही नफरत हो गई। आप गंगीजी महाराज की सेवा 122. लेखिका-श्री मोहनदेवीजी, श्री द्रौपदांजी महाराज का जीवन चरित्र, चांदनीचौंक दिल्ली, ई. 1956 (द्वि. सं.) 123. साध्वी सरला, साधना पथ की अमर साधिका, जैन महिला समिति, सदर बाजार, देहली-6 ई. 1970 124. पंजाब श्रमणसंघ गौरव, पृ. 207 577 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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