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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास विचरण कर धर्म की अतिशय प्रभावना की । हिंदी साहित्य की प्रथम जैन साध्वी लेखिका के रूप में भी आप विख्यात है। आपने ज्ञान- दीपिका, सम्यक्त्व - सूर्योदय, सम्यक् चन्द्रोदय, वृत्तमंडली, अजितसेन कुमार ढाल, सुमतिचरित्र, अरिदमन चौपाई आदि लगभग 40 ग्रंथों की रचना की। इनकी हस्तलिखित प्रतियां बीकानेर में श्री पूज्य जिन चारित्र सूरिजी के संग्रह में है। नई दिल्ली आचार्य सुशीलमुनि आश्रम, शंकर रोड में आप द्वारा कई हस्तलिखित प्रतियां देखने को मिली। संवत् 1951 में रचित 'राजुल नेम बारहमासा', संवत् 1979 की 'सेठ जिनदत्त की ढाल', संवत् 1961 जयपुर में रचित 'सुमति चरित्र', (होश्यारपुर में उसकी प्रतिलिपि श्री लाजवंतीजी ने की), एवं जयपुर में ही संवत् 1957 में रचित 'चन्द्रप्रभचरित' (ढाल 24 कुल दोहा 413) आदि की प्रतियां मौजूद हैं। कृति के अंत में साध्वीजी ने अपने को आचार्य श्री अमरसिंहजी महाराज श्री सोहनलालजी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी एवं सती खूबांजी की शिष्या लिखा है । सं. 1952 में आप द्वारा लिखित 'व्यवहारसूत्र' (पत्र सं. 38 ) की सुंदर सुलिपी युक्त हस्तप्रति भी नई दिल्ली में मौजूद है। जीवन के अंतिम 16 वर्ष आप जालंधर में स्थिरवास रहीं, वहीं संवत् 1996 माघ कृ. 9 को आपका स्वर्गवास हुआ। श्री जीवीजी, कर्मोजी, भगवानदेवीजी और राजमतीजी - ये आपकी 4 शिष्याएँ थीं। जीवीजी की बसंतीजी और निहालीजी तथा कर्मोंजी की शिष्या चंदनबाला हुई 15 6.3.2.20 श्री चम्पाजी (सं. 1928-75 ) आप दिल्ली निवासी लाला रूपचन्दजी जौहरी बाणवाला की सुपुत्री तथा गुलाबचन्दजी जौहरी की पुत्रवधु थीं, संवत् 1928 फाल्गुन कृ. 1 को आपकी दीक्षा हुई। संवत् 1975 दिल्ली चातुर्मास तक आप जीवित थीं। 16 6.3.2.21 श्री आशादेवीजी (सं. 1936 ) आप अमृतसर निवासी व जाति से ओसवाल थीं, मृगसिर शु. 2 को जालंधर छावनी में आपकी दीक्षा हुई, आप खूबांजी की शिष्या बनीं। आपके विषय में शेष कुछ भी ज्ञात नहीं है। 7 6.3.2.22 श्री जमनादेवीजी (सं. 1942-2008 ) 12 वर्ष की अल्पायु में वैधव्य को प्राप्त हुई बालिका जमनादेवी गणावच्छेदिका निहालदेवीजी की शिष्या गंगादेवीजी के पास संवत् 1942 में दीक्षित हुई । अध्ययन के साथ-साथ इन्होंने अनेक फुटकर तपस्याएँ, 8, 9, 15, 11 के स्तोक, कई सालों तक ओली आदि तप की आराधना की। रात्रि में स्वल्प सी निद्रा लेकर अधिकांशतः ये जाप स्वाध्याय में लीन रहती थीं। गंगादेवीजी के साथ ये पंजाब से राजस्थान तक विचरण कर 6 शिष्याओं व अनेक प्रशिष्याओं की गुरूणी बनीं उनमें पन्नादेवीजी, ज्ञानवंतीजी, विद्यावतीजी सुभद्राजी, कौशल्याजी आदि प्रमुख थी। संवत् 2008 में पानीपत शहर से आप स्वर्ग सिधारी । 18 115. साध्वी विजयश्री 'आर्या' महासती केसरदवी गौरव ग्रंथ, पृ. 370 116. वही. पृ. 175-76 117. पंजाब श्रमण संघ गौरव, पृ. 183 118. तिलकधर शास्त्री, संयम गगन की दिव्य ज्योति Jain Education International 574 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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