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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ ऋषि जी महाराज के श्रीमुख से श्री उज्जवलकुमारीजी के पास हुई। आप विदुषी साध्वी हैं, पंडित, विशारद आदि के साथ एम. ए., पी. एच. डी. तक निपुणता प्राप्त की है। आपने 'श्री तिलोकऋषिजी म. सा. के साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन' पर शोध प्रबन्ध लिखा है, जो सन् 1999 में मुंबई युनिवर्सिटी एस. एन. डी. टी. कॉलेज द्वारा मान्य हुआ है। 89 6.3.1.62 श्री स्नेहप्रभा 'सुमन' (सं. 2027 ) आपका जन्म राजस्थान के भंडारी परिवार में हुआ । वैशाख शु. 2 सं. 2027 में बेंडर सुरापुर (कर्नाटक) में महास्थविरा श्री चन्द्रकंवरजी महाराज की शिष्या श्री इन्द्रकंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपने जैन आगमों के साथ इतर धर्मों का भी गहन अध्ययन किया। हिंदी में साहित्यरत्न व संस्कृत में कोविद की परीक्षाएँ भी दीं। जिनशासन की प्रभावना के साथ-साथ भूतर (हिमाचल) जैसे दुर्गम प्रांत में आपने 'जैन साधना केन्द्र' स्थापित किया। आपके परिवार से 5 दीक्षाएं हो चुकी हैं- मातुश्री स्व. प्रीतिसुधाजी, बहन विमलप्रभाजी एवं दो भानजी - श्री नूतनप्रभाजी और शीतलप्रभाजी । 6.3.1.63 साध्वी मधुस्मिता, जयस्मिता (सं. 2032 से वर्तमान) महाराष्ट्र की धरती पर जन्मी, पली, दीक्षित हुई साध्वी मधुस्मिता एवं जयस्मिता भारत कोकिला साध्वी प्रीतिसुधाजी की सांसारिक लघुभगिनी एवं भानजी हैं। भारत के अध्यात्म ज्ञान को पाश्चिमात्य देशों में पहुंचाने की तीव्र ललक ने इन्हें विदेश जाने को प्रेरित किया। सन् 1989 का चातुर्मास अमेरिका के 'ह्युस्टन' शहर में तथा 1990 का चातुर्मास कनाडा 'टोरेन्टो' शहर में किया । इतिहास के पृष्ठों पर स्थानकवासी जैन श्रमणियों का विदेश की धरती पर यह प्रथम कदम था। साध्वीजी ने विदेश में रहकर भी मात्र यान विहार को छोड़कर शेष संपूर्ण मर्यादाओं का पालन किया, किंतु श्रमण संघ की समाचारी के विरूद्ध कार्य होने से आपको इस क्रांतिकारी कदम के लिये बहुत बड़ा विरोध सहन करना पड़ा, श्रमणसंघ से आपको निष्कासित होना पड़ा। अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिये साध्वीजी ने वहाँ तप, जप, प्रार्थना, प्रवचन, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक जागरण के अनेकविध कार्य किये। विदेश में आपने मुख्य रूप से ह्यूस्टन, कनेडा, न्यूजर्सी वाशिंगटन, रिचमंड, कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को, पिट्सबर्ग, लंदन, बैंकांक, हांगकांग आदि क्षेत्रों में जाकर धर्म प्रचार किया । वाशिंगटन में 'जैन सैंटर प्रतिष्ठा महोत्सव' पर आप आचार्य सुशीलमुनिजी आदि जैनधर्म के चारों प्रतिनिधि संतों के साथ उपस्थित थीं। विदेश में जैन साध्वियों का धर्म प्रचार हेतु जाना इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इसका उल्लेख 'यात्रा' पुस्तक में मधुस्मिताजी ने किया है।" 6.3.1.64 श्री नूतनप्रभाजी (सं. 2033 से वर्तमान) 14 वर्ष की संपूर्ण मौन साधना का आदर्श कीर्तिमान स्थापित कर श्री नूतनप्रभाजी ने नाम के अनुरूप ही समाज के सामने एक नूतन आदर्श उपस्थित किया। इनका जन्म अहमदनगर जिले में श्रीगोंदा तहसील में सन् 1955 में हुआ। 6 फरवरी 1976 को घोड़नदी में श्री इन्द्रकंवरजी महाराज के पास संयमी जीवन अंगीकार किया। 91. यात्रा, प्रकाशन - 5 ए विंग, लोकमत भवन, पं. नेहरू मार्ग, नागपुर सन् 1995 Jain Education International 565 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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