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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
1998 में नवकारमंत्र पर डी. लिट् की उपाधि प्राप्त की। अग्रणी के रूप में विचरण करते हुए आपने स्थान-स्थान पर बहुमंडल कन्यामंडल आदि की स्थापना की है, आपकी विद्वत्ता एवं प्रतिभा से प्रभावित होकर पार्श्वनाथ विद्यापीठ शोधसंस्थान बनारस ने आपको 'महाप्रज्ञा' पद से अलंकृत किया है।86
6.3.1.59 श्री प्रीतिसुधाजी (सं. 2018 से वर्तमान) __जन जागरण, जन कल्याण और जीवदया के कार्यों में सतत संलग्न श्री प्रीतिसुधाजी जैन-अजैन समाज में वाणी भूषण और संस्कार भारती के नाम से प्रख्यात विदुषी साध्वी रत्न है। इनका जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से ग्राम पिंपलगांव (बसवंत) में संवत् 2000 अगस्त 1 के दिन श्री भिकमचंदजी रायसोनी के यहां हुआ। संवत् 2018 मार्च 7 को ये अपनी माता शांतादेवी के साथ पिंपलगांव में ही दीक्षित हुईं। इनकी गुरूणी श्री उज्जवल कुमारीजी थीं। दीक्षा के पश्चात् इन्होंने साहित्यरत्न, जैन शास्त्री तथा संस्कृत शास्त्री की परीक्षाएँ दी, साथ ही सभी धर्मग्रंथों का विशिष्ट अध्ययन किया। आत्मधर्म के साथ मानवधर्म का महत्त्व प्रतिस्थापित करना इनका मूल ध्येय रहा। इनके प्रवचन भी सरस, सर्वग्राही और हृदयस्पर्शी होते हैं। प्रांतीय भाषाओं के सम्मिश्रण के साथ ऊर्दू, अंग्रेजी आदि शब्दों व मुहावरों का पुट देकर जब ये अपनी मधुर और सधी हुई वाणी से प्रवचन देती हैं, तो लोगों की अपार भीड़ आतुरता पूर्वक सुनने के लिये इकट्ठी हो जाती है। इनकी प्रभावोत्पादक गिरा का आदर करते हुए राहता, धूलिया व जलगांव में इंग्लिश मीडियम स्कूल, नासिक में 'प्रीतिसुधाजी शिक्षण फंड' आदि चालु हुए। मुंबई के देवनार कत्लखाने में जहाँ प्रतिदिन हजारों जानवर मौत के घाट उतारे जाते थे, वह संख्या घटकर सैंकड़ों तक रह गई। इनकी ओजस्वी वाणी के प्रभाव से रायपुर में 4500 जानवरों को कसाई के हाथों से मुक्त करवा कर गोशाला में लाया गया। नागपुर, चन्द्रपुर, अकोला, वणी आदि 12 स्थानों पर गोरक्षण संस्थाएँ स्थापित हुईं। नारी जागृति के क्षेत्र में कई महिला सम्मेलन इनके सान्निध्य में आयोजित हुए और लगभग 75 स्थानों पर 'सुशील बहु मंडल' बनें। अनेक स्थानक भवनों का निर्माण कार्य हुआ। अहिंसा, शाकाहार, व्यसन मुक्ति एवं विश्व कल्याण के संदर्भ में समकालीन लगभग सभी देशसेवकों (राजनेताओं) के साथ इनकी चर्चा-वार्ताएँ हुई हैं। इनके प्रवचनों का संग्रह 'संस्कारपुष्प' में तथा भजनों का संग्रह 'प्रीतिपुष्प' के नाम से प्रकाशित हैं। अनेक विशेषताओं की संगम प्रीतिसुधाजी वर्तमान में जयस्मिताजी, विजयस्मिताजी, मधुस्मिताजी, मंगलप्रभाजी, प्रीतिदर्शनाजी आदि 14 शिष्याओं के साथ विचरण कर रही हैं। 6.3.1.60 डॉ. श्री दिव्यप्रभाजी (सं. 2023 से वर्तमान)
आप डॉ. श्री मुक्तिप्रभाजी की लघुभगिनी हैं, आपने भी सन् 1982 में उज्जैन विश्वविद्यालय से 'अरिहंत' विषय पर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप की अन्य भी मौलिक कृतियां - "दिव्यदृष्टा महावीर, भक्तामर स्तोत्र: एक दिव्य दृष्टि, 'लोगस्स सूत्र' आदि प्रकाशित है। आप प्रखर व्याख्यात्री है, किसी भी विषय की सूक्ष्मता में पहुंचकर उसके समस्त रहस्यों को उद्घाटित करने एवं उनको अभिव्यक्ति देने में आप कुशल हैं।88 6.3.1.61 डॉ. श्री अरूणप्रभाजी (सं. 2025 )
आप मालेगांव (महा.) निवासी श्रीमान् सुरजमलजी सुराणा एवं श्रीमती बदामबाई सुराणा की सुपुत्री हैं। आपकी दीक्षा 28 अप्रेल 1968 अक्षय तृतीया के शुभ दिन 'मिरी' (अहमदनगर) में आचार्य सम्राट् श्री आनन्द 85-90. परिचय-पत्र के आधार पर
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