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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.3.1.56 डॉ. श्री धर्मशीलाजी (सं. 2015 से वर्तमान)
आपका जन्म ‘कान्हूरपठार (महा.) के श्री रामचंदजी शिंगवी व माता कस्तूरीबाई के यहां हुआ। सं. 2015 मृगशिर शु. 11 को आचार्य आनन्दऋषिजी म. सा. के श्रीमुख से अहमदनगर में दीक्षा अंगीकार कर आप श्री उज्जवलकुमारी जी की शिष्या बनीं। आप पूना युनिवर्सिटी से एम. ए. की परीक्षा में 'सर्वोच्च' स्थान प्राप्त कर 'स्वर्ण-पदक' से सम्मानित हुईं। पूना विद्यापीठ से ही आपने 'जैनदर्शन में नवतत्त्व' विषय पर सन् 1977 में पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त की, संपूर्ण जैन समाज में आप सर्वप्रथम पी. एच. डी. डिग्री प्राप्त साध्वी हैं। पूना विश्वविद्यालय में भी आपका मराठी भाषा में लिखित उक्त शोध प्रबन्ध सर्वप्रथम स्थान पर अंकित है। आप हिंदी में साहित्यरत्न, संस्कृत में कोविद हैं, हिंदी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत, पालिप्राकृत आदि भाषाओं पर आपका असाधारण प्रभुत्व है। आपके उपदेश हृदय-स्पर्शी होते हैं, अनेक लोग आपका प्रवचन श्रवण कर व्यसन मुक्त एवं निराडम्बर जीवन जी रहे हैं। आपकी सद्प्रेरणा से बोरीवली का जैन क्लिनिक, एवं घाटकोपर का हिंदू सभा का हॉस्पीटल जो हड़ताल के कारण बंद पड़ा था, वह चालू हुआ। आप अग्रणी साध्वी हैं, प्रत्येक चातुर्मास में महिलाओं, बहुओं व कन्याओं की धर्म जागृति हेतु मंडल, प्रश्नमंच, विविध आरोग्य शिविर आदि का उत्साह पूर्वक आयोजन करती हैं। आपका साहित्य-जैन दर्शन में नवतत्त्व (हिन्दी, मराठी, गुजराती), नवस्मरण, णमो सिद्धाणं पदः समीक्षात्मक परिशीलन, सामायिक-प्रतिक्रमण इंग्लिश सार्थ आदि प्रकाशित हैं। आपकी तीन शिष्याएँ हैं-विवेकशीलाजी, पुण्यशीलाजी, भक्ति शीलाजी। उज्जवल धर्म साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट (मुंबई) की आप संस्थापिका हैं।
6.3.1.57 डॉ. श्री मुक्तिप्रभाजी (सं. 2016 से वर्तमान)
आप आचार्य आनन्दऋषिजी महाराज की प्रज्ञाशील विदुषी साध्वी हैं। आपका जन्म सन् 1941 अक्टूबर 1 को गुजराती प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। संवत् 2016 नवंबर 9 को आपने श्री उज्जवलकुमारीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। जैनधर्म व दर्शन का गहन अध्ययन करते हुए उज्जैन विश्वविद्यालय से 'जैन दर्शन में योग' विषय पर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आपकी मौलिक कृतियां हैं- योग-प्रयोग कल्याणमन्दिर अस्तित्व का मूल्यांकन। आपने अनुयोगप्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' के मार्गदर्शन में 'द्रव्यानुयोग एवं चरणानुयोग' का सुंदर शैली में संपादन किया है। 5 डॉ. दिव्यप्रभाजी, श्री दर्शनप्रभाजी, डॉ. अनुपमाजी, श्री योगसाधनाजी, श्री अपूर्वसाधनाजी, श्री उत्तमसाधनाजी, श्री विरति साधनाजी आदि 14 साध्वियों का आप नेतृत्व कर रही हैं।
6.3.1.58 डॉ. श्री प्रियदर्शनाजी (सं. 2017 से वर्तमान)
आप भारतमाता प्रवर्तिनी श्री प्रमोदसुधाजी की संसारपक्षीया लघु भगिनी हैं, विनयकुंवरजी महासती से धर्म संस्कार प्राप्त होने पर आपके वैराग्य में वृद्धि हुई, फलतः कार्तिक कृष्णा 5 सं. 2017 के शुभ दिन जलगांव में आचार्य आनन्दऋषिजी महाराज के श्रीमुख से दीक्षा ग्रहण की। आपने पाथर्डी बोर्ड से जैन सिद्धान्त शास्त्री की परीक्षा देकर आगम, संस्कृत, प्राकृत, न्याय आदि विषयों में निपुणता प्राप्त की। पूना विश्वविद्यालय द्वारा 'जैन साधना में ध्यान योग' विषय पर सन् 1986 में पी. एच. डी. की डीग्री एवं विक्रमशीला हिन्दी विद्यापीठ से सन् 84. श्री सुप्रियदर्शनाजी से प्राप्त सामग्री के आधार पर 85. साध्वी श्री पुण्यशीलाजी से प्राप्त सामग्री के आधार पर
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