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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास आप साहित्यरत्न, बहुभाषाविद्, प्रभावी वक्तृत्व, मधुरकंठी व आकर्षक व्यक्तित्व की धनी हैं। दीक्षा के 14 वें वर्ष में 27 मई 1989 से आप 2003 तक आत्मसाधना एवं आत्मा की खोज हेतु मौन साधना में संलग्न रहीं। इस अवधि में दूध व किशमिश के अतिरिक्त सभी वस्तुओं का त्याग कर दिया। आपने आठ उपवास 21 उपवास, एकांतर उपवास, व 91 दिन के आयंबिल भी किये हैं। आपके भजन 'नूतन ज्योति' व 'कविताकुंज' में संग्रहित
6.3.1.65 आदर्शज्योतिजी 'अमृता' (सं. 2035 से वर्तमान)
श्री आदर्शज्योतिजी का जन्म संवत् 2017 नागदा (म. प्र.) में श्रीमान् केशरीमलजी सुराना के यहां हुआ, तथा दीक्षा माघ शुक्ला 11 संवत् 2035 को सैलाना में प्रवर्तिनी श्री रतनकुंवरजी के पास हुई। ये प्रज्ञावंत विदुषी साध्वी हैं, इन्होंने एम. ए., भाषारत्न, साहित्यरत्न जैन सिद्धान्तशास्त्री, जैन विद्यारत्न आदि परीक्षाए उत्तीर्ण की हैं। इनकी वाणी में संप्रेषणीयता, मधुरता, तार्किकता का सम्मीश्रण है। अपनी वाणी के प्रभाव से अनेक स्थानों पर संघीय एवं पारिवारिक विघटन को मिटाकर सौहार्द का वातावरण निर्मित किया। दक्षिण भारत में सैंकड़ों लोगों को निर्व्यसन जीवन की दीक्षा दी। जैन कॉलेजों में इनके प्रवचनों का आयोजन हुआ। बैंगलोर, आश्वी, अरिहंतनगर (दिल्ली) अहिंसाविहार में आदर्श नवयुवक मंडल, महिला मंडल, युवा क्लब, बाल मंडल आदि की स्थापना की। मद्रास में महावीर सेवा केन्द्र, मुंबई में आनंद शिक्षण फंड प्रारंभ करवाया। इनके विचार नई सदी की नई नारी, "विचार वातायन' तथा समय-2 पर जैन पत्रिकाओं में लेख, निबंध आदि के माध्यम से प्रसारित हुए हैं। श्री शीतल ज्योति (माताजी) श्री अमितज्योतिजी, श्री आत्मज्योतिजी, श्री रजतज्योति जी श्री अंतरज्योतिजी इनकी सहवर्तिनी शिष्याएँ हैं।
6.3.1.66 डॉ. श्री पुण्यशीलाजी (सं. 2037 से वर्तमान)
आप इगतपुरी (महा.) निवासी सौ. जयकंवरबाई किशनलाल जी लुणावत की सुपुत्री है। आपने 14 फरवरी 1981 को मुंबई अंधेरी (वेस्ट) में डॉ. श्री धर्मशीलाजी के पास दीक्षा अंगीकार की। आपके पिताश्री भी आचार्य उमेशमुनिजी के पास श्री किशनमुनिजी के नाम से दीक्षित हैं। आप आगम, स्तोक, स्तोत्र आदि की ज्ञाता तथा हिंदी में पंडित व प्राकृत में एम. ए. हैं। पूना विद्यापीठ से आपने 'जैन दर्शनातील भावना संकल्पना आशय आणि अभिव्यक्ति' विषय पर सन् 2004 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप मधुरगायिका एवं आशु कवियित्री भी हैं, आपकी पुस्तक 'धर्म पुण्य गीत गुंजन' भाग 1-4 प्रकाशित हैं।
6.3.1.67 श्री प्रियदर्शनाजी (सं. 2038 से वर्तमान)
ऋषि संप्रदाय की विदुषी साध्वी प्रियदर्शना जी ने संवत् 2006 भेरूलालजी चोरड़िया के यहां जन्म लिया। शाजापुर में संवत् 2038 जनवरी 29 को श्री वल्लभकुंवरजी के पास इनकी दीक्षा हुई। ये सेवाभाविनी तपस्विनी व धर्मप्रभाविका साध्वी हैं। दीक्षा के बाद 11 उपवास, 5 अठाई तथा 11 वर्ष आयंबिल एकांतर की साधनाकी, 5 वर्ष से निरंतर एकासन तप और हर पाक्षिक पर्व को उपवास कर तप की ज्योति आत्मा में प्रज्वलित कर रही
92-95. पत्राचार से प्राप्त सामग्री के आधार पर
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