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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.3.1.41 महार्या श्री आनन्दकुंवरजी (सं. 1979-स्वर्गस्थ) ___ आप जाति से ब्राह्मण श्री लाधूरामजी रत्नपुरी पांडेय की धर्मपत्नी रतनबाई की कुक्षि से पैदा हुई। सं. 1979 को 19 वर्ष की आयु में श्री रंभाजी के पास आप दीक्षित हुईं। आपकी सेवाभावना प्रशंसनीय थी, श्री रायकुंवरजी को उनकी सख्त बीमारी की हालत में 13 कि. मी. तक पुणतांबा से कोपरगांव तक कंधे पर उठाकर लाईं। आप अत्यंत निर्भीक एवं साहसी भी थीं। आपने अनेक परिवारों को स्थानकवासी संप्रदाय की श्रद्धा से जोड़ा था। कोपरगांव में आपको सर्प ने डस लिया, विषापहार छंद और भक्तामर स्तोत्र के 42 वें पद्य का पाठ करने से आपका जहर उतर गया। जैनधर्म का यह प्रत्यक्ष प्रभाव देखकर वहाँ उपस्थित एक कसाई (गुलाबभाई) ने अपना कसाई का धंधा छोड़ दिया, वह भूसे का व्यापार करने लगा। आपने रायचूर, बैंगलोर, महाराष्ट्र आदि में खूब धर्म की प्रभावना की। आपकी पांच शिष्याएँ हुई -श्री सज्जनकुंवरजी, श्री हर्षकुंवरजी, श्री पुष्पकुंवरजी, श्री मदनकुंवरजी, श्री वल्लभकुंवरजी।। 6.3.1.42 श्री विनयकुंवरजी (सं. 1981 स्वर्गस्थ) सिन्दूरणी निवासी श्री चुन्नीलालजी ललवाणी के यहां सं. 1964 को आपने जन्म ग्रहण किया। विवाह के पश्चात् विरक्त होकर माघ कृ. 9 सं. 1981 को जलगांव में 18 वर्ष की उम्र में श्री राजकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपने शास्त्रज्ञान के साथ लघुकौमुदी, हिंदी, गुजराती, मराठी, ऊर्दू भाषाओं का भी अभ्यास किया। गंभीरता, विनम्रता, सरलता एवं समयसूचकता आपकी प्रशंसनीय विशेषता थी। प्रवर्तिनीजी श्री राजकुंवरजी के प्रत्येक कार्य में आपका पूर्ण सहयोग रहता था। आपका प्रवचन मधुर और गंभीर था। महाराष्ट्र में विचरकर आपने धर्म की खूब प्रभावना की। 6.3.1.43 प्रवर्तिनी श्री सायरकंवरजी (सं. 1981-2001 के पश्चात् ) जेतारण (माखाड़) निवासी श्रीमान् कुंदनमलजी बोहरा की धर्मपत्नी श्री श्रेयकुंवरबाई की कुक्षि से सं. 1958 कार्तिक कृ. 13 के दिन आपका जन्म हुआ। सिकन्दराबाद निवासी श्री सुगालचंदजी मकाना के साथ विवाह एवं 3 वर्ष बाद वैधव्य ने इन्हें विरक्ति की ओर मोड़ दिया। पू. अमोलकऋषिजी म. के मुखारविन्द से मिरि (अहमदनगर) में दीक्षा लेकर श्री नंदूजी की शिष्या बनीं। आपने कई सूत्र, स्तोक, चौढालिया व करीब 500 स्तवन, पद्य, सैंकड़ों सवैये आदि कंठस्थ किये। व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि अनेक कुव्यसनी लोगों ने मांस, मदिरा, जूआ आदि का त्याग कर दिया। दक्षिण की भूमि में खूब धर्मप्रचार कर सं. 2001 में प्रवर्तिनी पद से सुशोभित हुए। धार्मिक संस्थाओं के प्रति आपके मन में बहुत सद्भावना थी। आपकी 6 शिष्याएँ हुई-श्री सोनाजी, सुमतिकुंवरजी, पद्मकंवरजी, पारसकुंवरजी, श्री दर्शनकुंवरजी, श्री इन्द्रकुवंरजी। 6.3.1.44 श्री वल्लभकंवरजी (सं. 1983-स्वर्गस्थ) आप शाजापुर निवासी मोतीलालजी कोठारी की पुत्री थीं, सं. 1968 में आपका जन्म हुआ, 11 वर्ष की वय 67. ऋ. सं. इ.. पृ. 407 68. ऋ. सं. इ., पृ. 383 69. ऋ. सं. इ., पृ. 355 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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