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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ शास्त्रीय ज्ञान साधारण होने पर भी एषणा समिति के अनुसार गोचरी लाने में विशेष दक्ष थीं, अतः आप 'गोच वाले महाराज' के नाम से प्रसिद्ध थीं। आपका स्वर्गवास सं. 1975 में अहमदनगर में हुआ । 2 6.3.1.27 महार्या श्री कासाजी ( -1975 ) मंदसौर में मां जोताबाई की कुक्षि से श्री तिलोकचंदजी के घर आपका जन्म हुआ। महासती सोनांजी की शिष्या बनीं। अपनी विनयशीलता से अल्पकाल में ही शास्त्रज्ञान अर्जित कर ये पंडिता बन गई। आपका आचार उच्चकोटि का था, संवर और निर्जरा के साधनों में सदैव तन्मय रहती थीं। अल्प से अल्प उपधि से संयम - यात्रा का सम्यक् निर्वाह करती थीं। अपनी चित्तवृत्ति का संतुलन रखने की आपमें अद्भुत क्षमता थी। उस समय विचरण करने वाली 40 सतियाँ आपके साथ एक ही मांडले पर आहार- पानी करती थी, यह आपकी वाणी की मिठास और सब पर समान प्रीति का प्रभाव था। संवत् 1975 में अपनी जन्मभूमि मन्दसौर में आपने संथारा कर स्वर्गगमन किया। आपकी शिष्याओं में श्री मथुराजी घोर तपस्विनी थीं। श्री सरसाजी सेवाभाविनी थीं, प्रवर्तिनी श्री कस्तूरांजी सरल स्वभावी थीं, प्रवर्तिनी श्री हगामकुंवरजी विदुषी साध्वी थीं।” 6.3.1.28 प्रवर्तिनी श्री सिरेकंवरजी (सं. 1954-2001 ) आप शांत एवं सरल प्रकृति की थीं। हिंदी और प्राकृत भाषा की ज्ञाता थीं, सं. 1991 चैत्र कृ. 7 को पूना में आयोजित ऋषि संप्रदायी सती सम्मेलन में इन्हें प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया गया था। आपका स्वर्गवास घोड़नदी में सं. 2001 में हुआ। आपकी एक शिष्या थीं- श्री हुलासकुंवर जी । 54 6.3.1.29 प्रवर्तिनी श्री शांतिकुंवरजी (सं. 1957-2005 ) आप घोड़नदी निवासी श्री गुलाबचंदजी दुगड़ की पुत्री थीं। नौ वर्ष की उम्र में सं. 1957 पोष कृ. 11 को श्री रामकुंवरजी के पास आपने दीक्षा ग्रहण की। धारणा शक्ति प्रबल होने से कुछ ही समय में 5 शास्त्र, लघुकौमुदी सिद्धान्तकौमुदी, तर्कसंग्रह, हितोपदेश, पंचतत्र आदि कंठस्थ किये। आपका व्याख्यान प्रभावशाली व रोचक तथा विद्वत्तापूर्ण होता था, आपके उपदेश से कुकाना के जयराम बांबी व मुसलमान भाई ने यावज्जीवन मांस मदिरा का त्याग किया, अन्य भी अनेक लोगों को आपने सन्मार्ग पर लगाया, पूना में दक्षिण प्रांतीय ऋषि सम्प्रदाय सती सम्मेलन में सं. 1991 चैत्र कृ. 7 को आप प्रवर्तिनी पद पर विभूषित हुईं। 47 वर्ष संयम पालकर अंत में संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी 6 शिष्याएँ हुईं- श्री रतनकुंवरजी, श्री सज्जनकुंवरजी, श्री अमृतकुंवरजी, श्री सूरजकुंवरजी, श्री मदनकुंवरजी, विदुषी श्री सुमतिकुंवरजी ।” 6.3.1.30 श्री गुलाबकुंवरजी (सं. 1957 स्वर्गस्थ ) आपका जन्म संवत् 1948 में श्री अमरचंदजी माली निनोर ( मालवा ) निवासी के यहां हुआ। नौ वर्ष की 53. ऋ. स. इ., पृ. 314 54. ऋ. सं. इ., पृ. 392 55. ऋ. सं. इ., पृ. 298 Jain Education International - 553 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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