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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास दो थोक किये। कभी-2 गर्मियों में सूर्य की आतापना लेती थीं, शरीराच्छादन हेतु मोटा लट्ठा ही पहनती। इस प्रकार । 18 वर्षों तक शुद्ध संयम का पालन किया। जावरा में असाध्य रोग हो जाने पर भी औषधोपचार त्याग कर बेले-बेले पारणा किया। सं. 1958 में जब जावरा में आप स्वर्गवासिनी हुईं तो दाह-संस्कार में मुखवस्त्रिका पर आंच भी नहीं आई। यह आपके तप-संयम का प्रभाव था। आपकी नौ शिष्याएँ हुईं, इनमें श्री चूनाजी, गुलाबांजी, गंगाजी, चंपाजी, घीसाजी तथा प्रवर्तिनी रतनकुंवरजी का ही नामोल्लेख प्राप्त होता है।48 6.3.1.24 प्रवर्तिनी श्री कस्तूरांजी (सं. 1949-2008) आप मालवा के श्री लक्ष्मीचंदजी पोरवाड़ एवं माता श्रीमती चंदनबाई की सुपुत्री थीं। संवत् 1923 में आपका विवाह हुआ। संवत् 1949 आसाढ़ शु. 12 के दिन शाजापुर में श्री कासाजी म. के समीप आपने दीक्षा ग्रहण की। आप अत्यन्त ही सरल एवं करूणावान साध्वी थीं। भद्रता, भव्यता, शिष्टता और शालीनता आपके प्रत्येक व्यवहार से टपकती थी। मालवा. मेवाड. मध्यप्रदेश. वागड आदि प्रान्तों में आपने खब धर्म प्रभावना की थी। संवत 1989 को प्रतापगढ़ सम्मेलन में आप प्रवर्तिनी पद पर विभूषित की गई। संवत् 2008 को प्रतापगढ़ में ही दो दिन के संथारे के साथ आपने स्वर्ग प्रयाण किया। आपकी तीन शिष्याएँ हुईं-श्री जड़ावकुंवरजी, श्री इन्द्रकुंवरजी, श्री नजरकुंवरजी। 6.3.1.25 श्री बड़े सुन्दरजी (सं. 1950 से पूर्व 1977 आप और आपकी छोटी बहिन हुलासकंवरजी की एक साथ ही शांतमूर्ति रामकुंवरजी के पास आलेगांव (पूना) में दीक्षा हुई। प्रवर्तिनी रामकुंवरजी के ग्रुप का संचालन आपने कुशलता पूर्वक किया। आपकी गुरू भक्ति, दूरदर्शिता, समय-सूचकता और दाक्षिण्यता सभी को मुग्ध करती थी, नेतृत्वशक्ति अनूठी होने से ये 'प्रधानजी महाराज' के नाम से विख्यात थीं। आपकी आवाज बुलन्द व गायनकला उत्कृष्ट थी। आपके प्रति आचार्य आनन्दऋषिजी महाराज अत्यंत आदर व सम्मान के साथ यह कहते थे कि "बांबोरी में मैंने श्री सुन्दरजी महासतीजी से 'पुच्छिस्सुणं' का अभ्यास किया, महासती जी ने बड़े ही विवेक व प्रसन्नता से मुझे इस प्रकार वह अभ्यास करवाया कि मेरे लिये वह नीति का ज्ञान कराने जैसा सिद्ध हुआ, महावीर स्तुति के साथ-साथ दूसरे ज्ञान की भी जानकारी मिली, जिससे मैं शास्त्रों के अन्तर्रहस्य को समझने लगा।"50 अंतिम समय नौ दिन के अनशन एवं संथारे पर आचार्य रत्नऋषिजी महाराज के साथ आनंदऋषिजी महाराज उनको दर्शन देने अष्टी निजाम स्टेट से विहार कर अहमदनगर पधारे। सं. 1977 आसाढ़ मास में आपका स्वर्गवास हुआ। आचार्य आनंदऋषिजी महाराज जैसी महान हस्ती में आगम ज्ञान के प्रति रूचि जागत कराने वाली ये महासती नि:संदेह महान थीं। 6.3.1.26 बड़े राजकुंवरजी (सं. 1951-75) अहमदनगर निवासी श्री दौलतराम जी बोरा पिता एवं चिचोंडी निवासी श्री कोंडीराम जी गांधी आपके पति थे। सं. 1951 में सती श्री रामकुंवरजी से चिचोंडी (पटेल) में दीक्षा ली। आप बड़ी सरल और सेवाभाविनी थीं। 48. ऋ. सं. इ., पृ. 284 49. वही, पृ. 401 50. आ. आनंदऋषि अभि. ग्रंथ में आचार्य आनन्दऋषिजी का लेख 'मेरे गुरूदेव' पृ. 39 नानापेठ, पूना, ई. 1975 51. ऋ. सं. इ., पृ. 312 552 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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