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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
रामकुंवरजी को शिक्षित बनाने का श्रेय इनको ही था। सं. 1951 में अपने भावी लक्षण देखकर आपने स्वयं संथारा कर लिया, आपका संथारा 60 दिन तम तिविहारी और अंत के 5 दिन चौविहारी-इस प्रकार 65 दिन के संथारे के साथ भाद्रपद शु. 3 को घोड़नदी में स्वर्गवास हुआ। आपकी दो शिष्याएँ हुईं- श्री छोटाजी और श्री जमुनाजी।45
6.3.1.21 श्री रामकुंवरजी (सं. 1936-89)
पूना जिले के घोड़नदी गांव में श्रीमान् गंभीरमलजी लोढ़ा की धर्मपत्नी चंपाबाई से आपका जन्म हुआ। खाराकर्जुना निवासी श्री गुलाबचंदजी बोरा के साथ अठारह मास परिणय-संबंध रहा, पश्चात् विधवा हो गईं। सं. 1936 आसाढ़ शुक्ला 9 को श्री हीराजी म. के पास माता-पुत्री एक साथ प्रवर्जित हुईं। इन्हीं के साथ श्री रत्नऋषिजी की भी दीक्षा हुई। रामकुंवरजी स्वभाव से अत्यंत नम्र व सरल थीं, वे अपना अधिकांश समय नाम-स्मरण और शास्त्रीय चिंतन में ही व्यतीत करती थीं। अंतिम समय एकातर तप और तत्पश्चात बेले-बेले पारणा करते 389 कार्तिक क. 2 के दिन मध्यरात्रि को आप अनशन पूर्वक स्वर्ग सिधारी आपकी 23 विदषी शिष्याएँ हई- श्री रंगजी. बडे सन्दरजी. श्री हलासाजी श्री सरजकंवरजी. श्री बडे राजकवरजी. श्री बडे केशरजी, श्री कस्तूराजी, श्री छोटे सुन्दरकुंवरजी, श्री शांतिकुंवरजी, श्री सदाकुंवरजी, श्री छोटे राजकुंवरजी, श्री प्रेमकुंवरजी, श्री श्रेयकुंवरजी, श्री चन्द्रकुंवरजी, श्री जड़ावकुंवरजी, श्री सुव्रताजी, श्री चांदकुंवरजी, श्री पानकुंवरजी, श्री जसकुंवरजी, श्री सरसकुंवरजी, श्री रम्भाजी, श्री केसरजी, श्री सोनाजी। रामकुंवरजी की शिष्या श्री राजकुंवरजी प्रवर्तिनी बनी थी। इनकी शिष्या रंभाकुंवरजी सेवाभाविनी, समयसूचक, दक्ष विदुषी साध्वी थीं, श्री सुमतिकुंवरजी की शैक्षणिक अभिलाषा में इन्होंने पूर्ण सहयोग दिया था।
6.3.1.22 श्री भूराजी (सं. 1937-79)
आपने श्री पूज्यपाद तिलोकऋषि जी महाराज के सदुपदेश से वैराग्य प्राप्त कर सं. 1937 को श्री हीराजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। आपका स्वभाव सरल शांत और कोमल था, विनय के साथ विद्वत्ता का अपूर्व संगम था, व्याख्यान प्रभावशाली, मधुर और रोचक था। मालवा, नगर, पूना, नाशिक आपकी प्रधान विहारभूमि रही। आपकी नेश्राय में चार दीक्षाएं हुईं, जिनमें बा. ब्र, प्रवर्तिनी श्री राजकुंवरजी अतीव प्रभावशालिनी और शासन प्रभाविका हुई हैं। पोष कृष्णा 13 सं. 1979 में आपका स्वर्गवास हो गया। 6.3.1.23 श्री सिरेकंवरजी (सं. 1939-58)
सिरेकवरजी का जन्म नागपुर के श्री नवलमलजी की धर्मपत्नी श्री विनयकुंवरबाई की कुक्षि से हुआ, सं. 1939 में इन्होंने उग्र तपस्विनी श्री गुमानांजी के पास संयम अंगीकार किया। बत्तीस सूत्र, 100 स्तोक, स्तवन, लावणी के 351 पद्य एवं करीब 300 अन्य श्लोक और सवैये आपको कंठस्थ थे। आपकी प्रकृति अत्यंत सरल
और निश्छल थी। स्वर मधुर और हृदय भक्ति से भरपूर था। गुरूणीजी के सम्मुख अविनय से एक अक्षर का भी उच्चारण हो जाने पर तत्काल बेला कर लेती थीं, ये अल्पाहारी एवं विगय-त्यागी थीं। मासखमण अर्द्धमास के 45. ऋ. सं. इ., पृ. 305 46. ऋ. सं. इ., पृ. 307 47. ऋ. सं. इ., पृ. 346
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