SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 611
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ की आय में वैधव्य ने इन्हें संसार के सत्य स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन करा दिया, श्री हमीराजी महाराज के पास आपने दीक्षा अंगीकार की। आपने मालवा. बागड. गजरात महाराष्ट खानदेश में अनेक परीषह झेलकर भी विहार किया। संवत् 1991 को पूना में आप प्रवर्तिनी पद से अलंकृत हुई, वृद्धावस्था के कारण लगभग 15 वर्ष आप पना में स्थिरवासिनी रहीं। शारीरिक स्थिति गिरती हई देखकर आपने प्रथम नौ दिन के उपवास किये, पश्चात संथारा ग्रहण किया, 36 दिन के संथारे के साथ कुल 45 दिन की तपस्या में संवत् 2002 ज्येष्ठ शु. 15 को समाधि में लीन होकर देहोत्सर्ग किया। आपने 75 वर्ष संयम पाला, 90 वर्ष की उम्र में स्वर्गवासिनी हुईं। आपके सदुपदेश से 18 शिष्याएँ हुईं, जिनमें श्री पानकुंवरजी, श्री राजकुंवरजी, श्री रामकुंवरजी, श्री केसरजी, श्री गुलाबकुंवरजी, श्री जतनकुंवरजी, श्री सुन्दरकुंवरजी, श्री जसकुंवरजी, श्री सूरजकुंवरजी, श्री विजयकुंवरजी, श्री जयकुंवरजी, श्री जड़ावकुंवरजी, श्री रतनकुंवरजी, श्री प्रेमकुंवरजी, श्री फूलकुंवरजी, श्री बसन्तकुंवरजी, श्री चन्द्रकुंवरजी, श्री आनन्दकुंवरजी थीं। 6.3.1.14 श्री सुन्दरकुंवरजी ( -1973) आप चोपड़ा (खानदेश) की थीं, श्री रंभाजी के पास दीक्षित हुई। स्वभाव की कोमलता और अंत:करण की भद्रता प्रशंसनीय थी। आपको कई ढाल, स्तवन, थोकड़े आदि कंठस्थ थे, वि. सं. 1973 में आप स्वर्गवासिनी हुई। 6.3.1.15 श्री छोटे हमीराजी ( - 1989) आप श्री सोनाजी की शिष्या थीं। आपका स्वभाव अत्यंत सरल और विनम्र था, श्रुत-चारित्र धर्म की ओर आपका पूर्ण लक्ष्य था। शारीरिक क्षीणता के कारण 18 वर्ष तक आप प्रतापगढ़ में विराजमान रहीं, किंतु आपके आचार-विचार और व्यवहार के प्रति सभी को अन्तर हृदय से श्रद्धा भक्ति थी। संवत् 1989 पोष शु. 4 को तेले के पारणे पर यावज्जीवन संथारा पचख कर आप समाधिपूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। अंतिम क्रिया के समय आपकी मुखवस्त्रिाका पर आंच भी नहीं आई, ऐसा प्रत्यक्षदर्शियों का कथन है। आपके संथारे के शुभ अवसर पर श्री अमोलकऋषिजी म., श्री आनन्दऋषिजी आदि 16 संत एवं प्रवर्तिनी श्री कस्तूरांजी, प्र. श्री रतन कुंवर जी आदि 40 सतियाँ उपस्थित थीं। आपने अपनी नेश्राय में शिष्या बनाने का त्याग कर दिया था।40 6.3.1.16 श्री पानकुंवरजी ( -1991) आप सुकिना निवासी श्रीमान् किशनदासजी की पुत्री थीं, नौ वर्ष की वय में विवाह और 10 वर्ष की वय में वैधव्य को प्राप्त हुई। 19 वर्ष की उम्र में श्री रंभाजी म. के पास दीक्षित हुईं। आपकी भाषा में अनूठा माधुर्य था, हृदय को हिला देने वाली शक्ति थी, गंभीरता, समयसूचकता आदि गुणों से विभूषित थीं। श्री रंभाजी म. की दाहिनीभुजा समझी जाती थी, महाराष्ट्र में आपने खूब धर्म प्रचार किया। संवत् 1991 भाद्रपद शु. 5 की रात्रि को समाधिपूर्वक देहोत्सर्ग किया। 38. ऋ. सं. इ., पृ. 371 39. ऋ. सं. इ., पृ. 370 40. ऋ. सं. इ., पृ. 390-92 41. ऋ. सं., इ., पृ. 372 549 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy