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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.3.1.9 श्री बड़े हमीराजी (बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध) ___ आपने श्री लछमाजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आप व्याख्यानपटु सरल और गंभीर प्रकृति की थीं। आपने मालवा और बागड़ आदि प्रान्तों में जैनधर्म का खूब प्रचार किया। आप बड़ी तेजस्विनी और प्रभावशालिनी सती थीं, साध्वीवृंद पर आपका अच्छा प्रभाव था अतः उस समय विचरण करने वाली लगभग 30 साध्वियाँ आपकी आज्ञा का पालन करती थीं। आपकी 5 शिष्याएँ हुईं- श्री छोटाजी, श्री जमनाजी, श्री हुलासकुंवरजी, श्री मानकुंवरजी, श्री रंभाजी। 6.3.1.10 श्री गंगाजी (बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध) ये दक्षिण प्रान्त की निवासिनी थीं, महासती झमकूजी से दीक्षा लेकर इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सेवा में बिताया। स्वभाव से ये शांत व सरल प्रकृति की थी। श्री आनंदऋषिजी म. सा. सं. 2006 में इन्हें रतलाम में दर्शन देने पधारे थे। इनका स्वर्गवास रतलाम में ही हुआ। इनकी दो शिष्याएँ हुईं-श्री राजकुंवरजी, श्री सुमतिकंवरजी।'' 6.3.1.11 आर्या गुमानाजी (बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध) प्रतापगढ़ (राज.) कोटड़ी गांव के पिता नाहरमलजी व माता झूमाबाई की ये पुत्री थीं, 21 वर्ष की आयु में जावरा शहर में महासती दयाकुंवरजी से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। ये उग्र तपस्विनी साध्वी थीं, इन्होंने 36 वर्ष तक एकांतर तप किया, जिसमें 12 वर्ष तक पारणे में कभी आयंबिल और कभी एकासन करती रहीं, उसके बाद भी कभी एकलठाणा या बियासणा करती रहीं। आपने मासखमण, अर्द्धमास आदि तप भी किया, विगय का प्रायः उपयोग नहीं करती थीं। स्वभाव से सरल व भेदभाव से दूर थीं। सदा खादी के वस्त्र धारण करतीं। मालवा, मेवाड़ और बरार में विचरते हुए इन्होंने अपने व अन्य संत-सतियों की खूब सेवा की। आपका स्वर्गवास संवत् 1939 के लगभग मालव प्रांत में हुआ।36 6.3.1.12 श्री सोनाजी (सं. 1925-56) आपका जन्म ‘जावद' (मालवा) में सं. 1900 में श्री ओंकारजी की धर्मपत्नी रोडीबाई से हुआ। श्री लछमाजी म. की वैराग्यमयी वाणी श्रवण कर पीपलोदा में संवत् 1925 में आपने उत्कृष्ट वैराग्य से दीक्षा ग्रहण की। आप शांत, गंभीर और विदुषी पंडिता महासती थीं। छोटे-2 ग्रामों में विचरण कर आपने लोगों को दृढ़ धर्मी बनाया। संवत् 1956 में प्रतापगढ़ चातुर्मास में आप संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी 11 शिष्याएँ हुईं, जिनमें से पांच के नाम उपलब्ध हैं-श्री कासाजी, श्री चम्पाजी, श्री बड़े हमीराजी, श्री प्याराजी, श्री छोटे हमीराजी।" 6.3.1.13 प्रवर्तिनी श्री रंभाजी (सं. 1927-2002) आप प्रतापगढ़ निवासी वैष्णवधर्मी श्री घासीलालजी पोरवाड़ की पुत्री थीं, नौ वर्ष में विवाह और तेरह वर्ष 34. ऋ. सं. इ., पृ. 368 35. ऋ. सं. इ., पृ. 279 36. ऋ. सं. इ., पृ. 283 37. ऋ. सं. इ., पृ. 389 548 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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