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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कराने के सराहनीय कार्य किये हैं, यह समिति पशु चिकित्सा शिविर आदि प्राणीदया के कार्य कर रही है। आपने सैंकड़ों लोगों को व्यसन त्याग, दहेज की मांग, हिंसा जनित सौन्दर्य प्रसाधन, भ्रुण हत्या, बर्क युक्त मिठाइयां, होली खेलने, फटाके फोड़ने आदि का त्याग कराया है। आपकी सरस सुबोध चिन्तनपरक प्रवचनशैली से श्रोता आचरण की ओर उन्मुख होते हैं। अध्ययन एवं अध्यापन की रूचि के कारण आप प्रतिवर्ष स्वाध्याय-शिविरों के द्वारा जैनधर्म का तत्त्वज्ञान बांटने का कार्य करती हैं। आप तीनों का सम्मिलित प्रकाशित साहित्य इस प्रकार है - महाप्राज्ञ की जीवनयात्रा, बोध-संबोध (मुक्तक), पर्वत की पगडंडी पर (चरित्र) अनुभूति का आलोक (काव्य) दिशायें साक्षी हैं (संस्मरण) मंजिल की ओर, ममता के आंगन में, त्रिवेणी की पावन धारा (प्रवचन-संग्रह), कुछ हीरे कुछ मोती ( सुभाषित)। वर्तमान में अभयदेव सूरि की उपासकदशांग व प्रश्नव्याकरण सूत्र की टीका का भाषानुवाद प्रकाशनाधीन है। साध्वी ज्ञानलताजी साध्वी प्रमुखा श्री जयवन्तकंवरजी म. सा. की शिष्या हैं। आपके सदुपदेश का संबल प्राप्त कर छह आत्मार्थी बहनें संयम मार्ग में प्रविष्ट हुईं- डॉ. श्री दर्शनलताजी, डॉ. श्री चारित्रलताजी, श्री कीर्तिलताजी, श्री कल्पलताजी, श्री संयमलताजी, श्री सौम्यलताजी | 22 6.2.2.2 डॉ. श्री कमलप्रभाजी (सं. 2031 ) ज्योतिषाचार्य पू. प्रवर्तक श्री कुन्दनमलजी की आज्ञानुवर्तिनी श्री जयवन्तकंवरजी की सुशिष्या डॉ. कमलप्रभाजी परम विदुषी साध्वी हैं, इन्होंने सत्यवादी हरिश्चन्द्र के जीवन चरित्र पर एकादश किरणों में प्रबन्ध काव्य की सर्जना की। काव्य ग्रंथ का नाम है 'धरती का ध्रुवतारा'। इसके अतिरिक्त आपकी अन्य कृतियां भी हैं- आंगन उतरी भोर, मन उपवन के सुमन, नानकवंश परिचय, परिशिष्ट पर्व (अनुवाद), भगवती सूत्र (अनुवाद) आदि। 'तीर्थंकर महावीर - प्रबंध काव्य पर सन् 1992 राजस्थान विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की 123 6.2.3 आचार्य श्री शीतलदासजी की परम्परा का श्रमणी समुदाय : 6.2.3.1 श्री चाहुकुमारीजी (संवत् 1763 से 1837 के मध्य ) आपके विषय में इतना ही उल्लेख मिलता है कि आप श्री शीतलदासजी के समय में हुई थी, उस समय इस समुदाय में 300 श्रमणियाँ थी, उनमें आपका उल्लेखनीय स्थान था । 6.2.3.2 प्रवर्तिनी श्री यशकंवरजी (सं. 1994 ) श्री चाहुकुमारीजी की परम्परा में उनके पश्चात् साध्वी श्री यशकंवरजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । वि. सं. 1974 में मंदसौर जिले के जाटनगर में पिता काशीरामजी की धर्मपत्नी श्रीमति घीसाबाई की कुक्षि से आपने जन्म ग्रहण किया, श्री अजबकुंवरजी की विदुषी शिष्या श्री हुलासकंवरजी के चरणों में संवत् 1994 में दीक्षा अंगीकार की। आप विनम्र, क्रियानिष्ठ और प्रभावक व्यक्तित्व की धनी विदुषी साध्वी हैं। 22. पत्राचार द्वारा प्राप्त सामग्री के आधार पर 23. डॉ. सुभाष जैन, एडवोकेट जालना द्वारा प्राप्त Jain Education International 544 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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