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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.2.1.42 श्री गरिमाजी (संवत् 2037) आपका जन्म मेरठ (उ. प्र.) निवासी श्रीमान् तालेरामजी उज्जवल के यहां सं. 2020 को हुआ। श्री सुमतिप्रकाश जी म. सा. से कांधला में दीक्षा पाठ पढ़कर सं. 2037 को आप दीक्षित हुईं। आप श्री कुसुमवतीजी की शिष्या हैं, डबल एम. ए. हैं, संस्कृत, प्राकृत हिंदी अंग्रेजी में भी आपने अच्छी योग्यता प्राप्त की है। आपकी रूचि काव्य रचना सुसाहित्य का अध्ययन एवं चित्रकला में विशेष है। 'गीतों की गरिमा' नाम से आपकी एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। 6.2.1.43 डॉ. श्री राजश्रीजी (सं. 2041) आपका जन्म ग्राम बगडुन्दा (उदयपुर) है। श्री गोपीलालजी छाजेड़ की पत्नी अमृताबाई की कुक्षि से सं. 2023 में आपका जन्म हुआ। श्री चारित्रप्रभाजी के पास सं. 2041 मृगशिर शुक्ला 10 को चांदनी चौंक दिल्ली में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपको स्तोक व आगमों का अच्छा ज्ञान है, पाथर्डी से जैन सिद्धान्त शास्त्री तक परीक्षाएँ दीं। आपने आचार्य शीलाडू. की आचाराङ्ग.वृत्ति पर शोधपरक प्रबन्ध लिखकर पी एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। आपने वैराग्यावस्था में ही यह प्रबन्ध पूर्ण कर लिया था। गायन में आपकी विशेष रूचि है। 6.2.2 आचार्य श्री नानकरामजी की परम्परा का श्रमणी-समुदाय : क्रियोद्धारक आचार्य श्री जीवराजजी महाराज के शिष्य श्री लालचंदजी महाराज के शिष्य श्री नानकराम जी महाराज से यह संप्रदाय 'नानकवंश' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में इस परम्परा के आचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज के शिष्य आचार्य श्री सुदर्शनमुनिजी महाराज हैं। आपकी आज्ञानुवर्तिनी साध्वी प्रमुखा श्री उमरावकुंवरजी, श्री बदामकुंवरजी थीं, वर्तमान में साध्वी प्रमुखा श्री जयवंतकुंवरजी की श्री घेवरकुंवरजी आदि 15 शिष्याएँ-प्रशिष्याए हैं। 6.2.2.1 डॉ. श्री ज्ञानलताजी (सं. 2030), डॉ. श्री दर्शनलताजी (सं. 2033) डॉ. श्री चारित्रलताजी (सं. 2039) साध्वी रत्नत्रयी के नाम से विख्यात आप तीनों ही सहोदरा भगिनी हैं, तीनों ही साध्वी एम. ए., पी. एच. डी. हैं, साध्वी ज्ञानलताजी ने 'महाप्राज्ञ प्रवर्तक श्री पन्नालालजी म. सा. : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' पर सन् 1993 में जयपुर विश्व विद्यालय से पी. एच. डी. की, साध्वी दर्शनलताजी ने 'ज्ञानार्णव-एक समीक्षात्मक अध्ययन' विषय पर पी. एच.डी. की, तथा साध्वी चारित्रलताजी ने सन् 1992 में 'जैनागमों में श्रमण' विषय पर शोध प्रबन्ध लिखकर राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप तीनों ही जैन जैनेतर दर्शन की गंभीर अध्येता संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं की ज्ञाता विदुषी साध्वियाँ हैं। आप तीनों के सम्मिलित प्रयास से श्री स्वाध्यायी जैन महिला मंडल गुलाबपुरा की स्थापना हुई, जिसकी विभिन्न प्रदेशों एवं प्रान्तों में 40 से भी अधिक शाखाएं हैं, इस संस्था का उद्देश्य महिलाओं को जैनदर्शन का ज्ञान कराना, प्रवचन-कला का प्रशिक्षण देकर चातुर्मास से वञ्चित क्षेत्रों में महिलाओं को भेजकर धर्म-जागृति करना है। आप रत्नत्रयी द्वारा स्थापित अहिंसा प्रचार समिति-कांवलियास ने देवस्थानों पर होने वाली पशुबली को बंद 543 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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