SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 607
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ __ आपकी प्रेरणा एवं ओजस्वी वाणी से फूलियाकलां में 'आनन्द यश जैन छात्रालय, 'आनन्द यश जैन पाठशाला' 'श्री यश जैन बाल मंदिर' का निर्माण हुआ। इसके अलावा मेवाड़ के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल 'जोगणिया माता' के मंदिर में दशाब्दियों से चली आती अति जघन्य और क्रूरतम 'बलिप्रथा' को बंद करने का एक अभूतपूर्व कार्य भी आपने किया। इसके लिये आपने स्वयं की जान जोखिम में डालकर नंगे पैर उबड़-खाबड़ मार्गों पर निःशंक घूम कर जनमानस को परिवर्तित किया, बलिस्थान को खुदवाकर वहाँ की रक्तरंजित भूमि पर महादेव की स्थापना करवाई। आज वहाँ ऐसा वातावरण बन गया है कि बड़ी से बड़ी विरोधी शक्ति भी वहाँ बलिदान करने का साहस नहीं कर सकती। जोगणिया माता में 'यशभवन' (वर्धमान दया भवन) का निर्माण हुआ, आपका एक चातुर्मास भी वहाँ हुआ, उसमें अनेक जन मंगलकारी आश्चर्यजनक कार्य हुए। 'मेवाड़ सिंहनी' एवं 'भारत कोकिला' के नाम से आज आप श्रमणसंघ में सुविख्यात हैं। आपके प्रभावशाली व्यक्तित्व का ही प्रभाव है कि आपकी जन्मभूमि जाटनगर को लोग 'यशनगर' के नाम से पहचानते हैं। श्री यशकंवरजी का जीवन-ग्रंथ उनकी शिष्याओं द्वारा प्रकाशित किया गया है।24 6.3 क्रियोद्धारक श्री लवजीऋषिजी की परम्परा : श्री जीवराजजी महाराज के पश्चात् क्रियोद्धारकों की श्रृंखला में श्री लवजीऋषिजी का नाम आता है इनके तप त्याग और उपदेशों से जैनधर्म का सर्वतोमुखी प्रचार-प्रसार हुआ। कालूपुर निवासी शाह सोमजी ने लवजी के पास श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की। ऋषि सोमजी के शिष्य परिवार में चार बड़े ही प्रभावक शिष्य हुए। उन चारों के नाम से आचार्य लवजीऋषि की परंपरा की चार यशस्विनी शाखाएं प्रचलित हुई, जिनके नाम इस प्रकार हैं - (1) पूज्य कानजीऋषि की सम्प्रदाय, यह ऋषि सम्प्रदाय की प्रमुख शाखा है इस सम्प्रदाय के साधुओं का प्रमुख विचरणक्षेत्र महाराष्ट्र रहा (2) पूज्य हरिदासजी की सम्प्रदाय, पंजाब-परम्परा इन्हीं से संबंधित हैं। (3) पूज्य ताराऋषिजी की सम्प्रदाय, यह खंभात समुदाय के नाम से गुजरात में प्रसिद्ध है। (4) पूज्य रामरतनजी महाराज की सम्प्रदाय (मालवा)25 6.3.1 श्री कानजीऋषिजी का श्रमणी-समुदाय 6.3.1.1 आद्य साध्वी श्री राधाजी (सं. 1810) प्रतापगढ़ भंडार से प्राप्त एक प्राचीन हस्तलिखित पत्र में वि. सं. 1810 वैशाख शु. 5 मंगलवार को 'पंचेवर ग्राम' में चार सम्प्रदायों के सम्मेलन का वर्णन है, उसमें ऋषि संप्रदाय के पूज्य ताराऋषिजी महाराज एवं उनकी आज्ञानुवर्तिनी महासती राधाजी की उपस्थिति का उल्लेख है, राधाजी महाराज विदुषी, शांत स्वभावी एवं प्रमुखा साध्वी थीं। आपने चतुर्विध संघ के संगठन एवं महिला वर्ग की जागृति में महान योग दिया था। आपकी अनेक शिष्याएँ थीं, जिनमें 'महासती श्री किसनाजी- प्रसिद्ध थीं। इनकी शिष्या जोतांजी व उनकी शिष्या श्री मोताजी हुई। श्री मोतांजी की अनेक शिष्याओं में श्री कुशलकवरजी का नाम विशेष प्रसिद्ध है।26 24. श्री यशकंवरजी म. व्यक्तित्व कृतित्व जीवन ग्रंथ, संपादिका-आर्या श्री प्रेमकंवर, श्री रिद्धकंवर 'मधु' 25. प्रवर्तक मुनि शुक्लचंद्र : भारत श्रमणसंघ गौरवः आचार्य सोहन, पृ. 353 अंबाला ई. 2002 (द्वि. सं.) 26. श्री मोतीऋषिजी : ऋषि संप्रदाय का इतिहास, पृ. 273-74 545 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy