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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
(2) पुष्प-पराग (3) सती का शाप (4) प्रभावती शतक (5) साधना-सौरभ (6) फूल और भंवरा (7) कंचन
और कसौटी (8) खोलों मन के द्वार (9) प्रभा प्रवचन (10) कल्पतरू (11) पुरूषार्थ का फल (12) साहस का सम्बल (13) सुधा सिन्धु (14) प्रभा पीयूष घट (15) जीवन की चमकती प्रभा आदि हैं। आपकी 50वीं दीक्षा जयंति के अवसर पर एक अभिनंदन ग्रंथ समर्पित किया गया। जो किसी श्रमणी रत्न को समर्पित किये गये अभिनंदन ग्रंथ की सर्वप्रथम कड़ी है। आपकी छह शिष्याएँ हैं। सभी शिष्याओं को तथा संघस्थ मुनिवृंदों को अध्ययन करवाकर उच्चकोटि की धार्मिक परीक्षाएँ भी दिलवाई हैं। आपश्री ने अपने आदर्श जीवन व्यवहार और धर्म देशना के माध्यम से समाज को बहुत कुछ दिया है और दे रही हैं, साथ ही आत्मोत्थान की साधना में सदा सजग रहकर विचर रही हैं।
6.2.1.34 श्री चन्द्रकुंवरजी (सं. 2004-41)
आपका जन्म कानोड़ ग्राम में भाणावत के यहां एवं विवाह उदयपुर के श्री पन्नालालजी मेहता के यहां हुआ। आपके 4 पुत्र एवं दो पुत्रियां हुई। पति के स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 2004 नाई (उदयपुर) में अपनी लघुपुत्री चन्द्रावती जी के साथ दीक्षा अंगीकार कर श्री प्रभावतीजी की शिष्या बनीं। आप मिलनसार, व्यवहार कुशल मृदु एवं मधुरभाषिणी थीं। आपके तीनों सुपुत्र श्री देवीलालजी, श्री आनन्दीलालजी व श्री फूलचन्दजी भी अध्यात्म के रसिक और उच्चकोटि के विद्वान् हैं। आपके परिवार से आठ मुमुक्षु आत्माएं दीक्षित हुई हैं। लेखिका की वे संसार 'दादी मां' थीं।
6.2.1.35 श्री चन्द्रावतीजी (संवत् 2004-56)
आपका जन्म संवत् 1993 उदयपुर निवासी श्री पन्नालालजी मेहता की धर्मपत्नी श्री लहेरकुंवरजी की कुक्षि से हुआ। नौ वर्ष की वय में ही अपनी मातुश्री के साथ 'नाई' (उदयपुर) में संवत् 2004 माघ शुक्ला 3 को दीक्षा अंगीकार कर आपश्री पुष्पवतीजी की शिष्या बनीं। आप जैन सिद्धान्ताचार्य एवं संस्कृत प्राकृत न्याय, व्याकरण, आगम आदि की ज्ञाता थी। मगध का राजकुमार मेघ और दिव्य पुरूष ये दो आप द्वारा रचित उच्चकोटि के खंडकाव्य एवं उपन्यास हैं। आप साहित्यकर्जी के साथ ही तात्त्विक शैली में प्रभावशाली प्रवचनकर्ती भी थीं।
6.2.1.36 श्री कौशल्याजी (सं. 2005 से वर्तमान)
आप नांदेशमा निवासी लाडुजी पालिवाल की पुत्री एवं उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी महाराज की सांसारिक भानजी हैं। आपकी गुरणी श्रीसज्जनकंवरजी थीं। संवत् 2005 देवास में आप दीक्षित हुईं। आप जैन सिद्धान्ताचार्य, मधुर गायिका कवियित्री तथा लेखिका भी हैं। भक्ति के स्वर, विनय, वंदन, कमल प्रभात, मंगल के मोती, सत्य शिवं सुंदरम् आदि पुस्तकें आप द्वारा प्रकाशित हुई हैं। आपकी 7 शिष्याएँ हैं। 6.2.1.37 श्री सत्यप्रभाजी (सं. 2025 से वर्तमान)
आपका जन्म राजस्थान के बाडमेर जिला के खण्डप ग्राम में हुआ। पिता श्री मिश्रीमलजी सुराणा थे। श्री सुकनकंवरजी के पास 22 वर्ष की उम्र में आपने दीक्षा ली। आप राष्ट्रभाषा कोविद व जैन सिद्धान्त प्रभाकर हैं, आगमज्ञाता विदुषी सरल स्वभावी हैं। आपकी 5 शिष्याएँ हैं। 21. महासती पुष्पवती अभिनंदन ग्रंथ, संपादक-श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री, श्री तारक गुरू ग्रंथालय, उदयपुर, 1987
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