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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.2.1.30 श्री शीलकंवरजी (सं. 1982-2056) श्री शीलकंवरजी का जन्म बाघपुरा (मेवाड़) के खाकड़ ग्राम में सं. 1968 को जन्माष्टमी के दिन हुआ। पिताश्री धनराजजी बरोनिया एवं माता रोडीबाई की सुपुत्री थीं आपने महास्थविर श्री ताराचंदजी म. एवं श्री धूलकवर जी के सदुपदेश से 13 वर्ष की उम्र में अपनी माता के साथ खाखड़ में ही दीक्षा ग्रहण की। आपकी प्रवचन शैली वैराग्यरस से ओतप्रोत एवं लुभावनी थी। वर्धमान जैन स्वाध्याय संघ सायरा, महावीर गोशाला, पाठशालाएं, स्थानक भवन आदि अनेक धार्मिक संस्थाओं की आप प्रेरिका रही हैं। राजस्थान और मध्यप्रदेश में आपका काफी प्रभाव है। आपकी 5 शिष्याएँ हैं। 6.2.1.31 श्री कुसुमकंवरजी (संवत् 1993-2058) आपका जन्म मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में संवत् 1982 में श्रीमान गणेशीलालजी एवं माता केलाशबाई की कुक्षि से हुआ। 11 वर्ष की अवस्था में मातुश्री के साथ देलवाड़ा में श्री सोहनकंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण और सिद्धान्त में बहुमुखी प्रतिभा की धनी महासाध्वी स्वभाव से भी मृदु एवं मधुरभाषिणी थीं। ब्यावर श्रीसंघ ने आपको 'प्रवचन भूषण' की उपाधि से विभूषित किया। आपकी सप्रेरणा से तारकगुरू जैन धार्मिक पाठशाला डबोक, श्री सोहनकुंवर मानव सेवा सहायता फण्ड, श्री सोहनकुंवर बालिका मंडल नांदेशमा, चन्दनबाला जैन बालिका मंडल नाथद्वारा, महावीर जैन महिला मंडल नाथ द्वारा, डूंगला, महावीर जैन युवक मंडल डूंगला, श्री सोहनकुंवर प्रवचन हॉल तिरपाल आदि का निर्माण हुआ। संवत् 2058 में आपका स्वर्गवास हुआ।आपश्री का अभिनंदन ग्रंथ आपकी सुयोग्य शिष्या श्री दिव्यप्रभाजी द्वारा संपादित है। आपकी तीन शिष्याएँ एवं कई प्रशिष्याएँ हैं।20 6.2.1.32 श्री प्रभावतीजी (सं. 1994-स्वर्गस्थ) श्रमणसंघ के तृतीय आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी की मातेश्वरी साध्वी प्रभावतीजी प्रारंभ से ही अत्यंत साहसी, दृढ़ मनोबली एवं धर्म में आस्थावान महिला रही। कठिन कसौटियों से गुजरने के बाद आपको संयम मार्ग में प्रवेश मिला। आप सफल कवियत्री थी। आप द्वारा रचित अनेक काव्य प्रकाशित हुए हैं। 'साहस का सम्बल, पुरूषार्थ का फल आदि कई चरित प्रधान काव्य अपनी सरल सुबोध शैली में लिखे हैं। 6.2.1.33 श्री पुष्पवतीजी (सं. 1994 से वर्तमान) परम विदुषी महासती श्री पुष्पवतीजी का जन्म संवत् 1981 में पिता श्री जीवनसिंहजी बरडिया एवं माता प्रेमदेवी की कुक्षि से उदयपुर में हुआ। 13 वर्ष की उम्र में आपने अपनी मातुश्री (द्वितीय) महासतीश्री प्रभावती जी के साथ वि. सं. 1994 माघ शुक्ला 13 को श्री सोहनकंवरजी के पास उदयपुर में दीक्षा ग्रहण की। आपके ही छोटे भ्राता श्री देवेन्द्रमुनिजी हैं, जो श्रमण संघ के तृतीय आचार्य पद पर शोभित हुए। आपकी दीक्षा के पश्चात् 8 अन्य परिवारी जनों ने भी संयम ग्रहण किया। आप सुमधुर प्रवचनकी एवं सुलेखिका हैं। संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण आदि में आपने उच्चकोटि की विद्वत्ता प्राप्त की। आप द्वारा लिखित साहित्य- (1) किनारे-किनारे 20. श्री कुसुम अभिनंदन ग्रंथ, प्रमुख संपादिका-साध्वी दिव्यप्रभा, प्रका. श्री तारक गुरू ग्रंथालय उदयपुर, ई. 1990 540 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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