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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
सांकलचंदजी चौधरी से हुआ था, पतिवियोग के पश्चात् महासती रत्नांजी की शिष्या महातपस्विनी गुलाबकुंवर जी के पास संवत् 1928 में दीक्षा ग्रहण करली। आप प्रकृति से भद्र, विनीत, सरल मानसवाली प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं। वि. सं. 1956 ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या के दिन 67 दिन के संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ।
6.2.1.5 श्री रंभाजी, श्री नवलांजी (सं. 1928 के लगभग )
आप भी महासती रत्नाजी की शिष्या थीं, रंभाजी प्रतिभा की धनी थीं। आपकी शिष्या नवलांजी हुईं, जो परम विदुषी साध्वी थीं, उनकी प्रवचनशैली अत्यन्त प्रभावक थी। इनकी अनेक शिष्याएँ हुईं- श्री कंसुबाजी, इनकी शिष्या सिरेकंवरजी थीं, सिरेकंवरजी की साकरकंवरजी और नजरकंवरजी दो शिष्याएँ हुईं। साकरकंवरजी की शिष्याओं की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
6.2.1.6 श्री नजरकंवरजी (सं. 1930 के लगभग )
आप एक विदुषी साध्वी थीं, आपका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था, आगम- साहित्य की आप अच्छी ज्ञाता थीं। आप की 5 शिष्याएँ थीं- श्री रूपकंवरजी- ये उदयपुर के निकट देलवाड़ा ग्राम की निवासिनी थीं। श्री प्रतापकुंवरजी- ये उदयपुर राज्य के वीरपुर ग्राम की थीं। श्री पाटूजी- समदड़ी की थीं, पति का नाम गोडाजी लुंकड था, दीक्षा संवत् 1978 में हुई। श्री चौथाजी- ये उदयपुर के बंबोरा ग्राम की थीं, वाटी ग्राम में ससुराल था। श्री एजाजी - ये उदयपुर जिले के शिशोदा ग्राम के निवासी श्री भेरूलालजी की पुत्री थीं। विवाह 'वारी' ग्राम हुआ तथा दीक्षा भी वहीं हुई ।
में
6.2.1.7 श्री फूलकुंवरजी (सं.
1938-)
आपका जन्म उदयपुर राज्य अन्तर्गत दुलावतों के गुड़े में श्री भागचंदजी की पत्नी चुन्नीबाई की कुक्षि से वि. सं. 1921 में हुआ । तिरपाल ग्राम में आपका विवाह हुआ। पति के देहान्त के पश्चात् 17 वर्ष की आयु में श्री छगनकंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपकी बुद्धि तीक्ष्ण थीं अनेक शास्त्र आपको कंठस्थ थे, प्रवचनशैली भी मधुर थी। आपकी सात शिष्याएँ थीं। अंतिम समय में आपको बारह दिन का संथारा आया था।
6.2.1.8 श्री छगनकुंवरजी (-1965 )
श्री नवलाजी की तृतीय शिष्या श्री केसरकुंवरजी की आप शिष्या थीं। कुशलगढ़ के निकट केलवाड़े ग्राम की निवासिनी थीं, पतिवियोग के पश्चात् नाबालिग वय में श्री गुलाबकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। संवत् 1965 में संथारे के साथ उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ।
6.2.1.9 श्री अभयकंवरजी (सं. 1950-2033 )
आप श्री नवलांजी की द्वितीय शिष्या गुमानांजी की शिष्या श्री आनन्दकंवरजी की शिष्या थीं। आपका जन्म संवत् 1952 फाल्गुन कृष्णा 12 मंगलवार को राजवी के बाटेला गांव (मेवाड़) में हुआ। आपने अपनी मातुश्री हेमकुंवरजी के साथ संवत् 1950 मृगशिर शुक्ला 13 को पाली में दीक्षा ग्रहण की। आपकी प्रवचनशैली अत्यंत आकर्षक थी, भीम में कई वर्ष स्थिरवासिनी रहीं, संवत् 2033 माघ मास में संथारे सहित आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी दो शिष्याएँ - श्री बदामकुंवरजी तथा श्री जसकुंवरजी हुईं।
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