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6.1.6 आर्या केशरजी (सं. 1764)
ये लोंकागच्छीय भीमजी के शिष्य तेजमुनि की आज्ञानुवर्तिनी आर्या फूलांजी की शिष्या आर्या नांनबाई की शिष्या थीं। 'जितारी राजा रास' की हस्तलिखित प्रति में आपका उल्लेख है, यह प्रति सूरत में ऋषि ठाकुर ने इनके पठनार्थ लिखी थी, जो 'डेहला नां अपासरा नो भंडार, अमदाबाद' (दा. 71, नं. 31 ) में संग्रहित है | 10
6.1.7 आर्या गोरजां, आर्या भागु (सं. 1771 के लगभग )
इनका नामोल्लेख स्थविर ऋषि श्री भाऊजी द्वारा लिखित हस्तप्रति 'चंदनमलयगिरि चौपई' जो संवत् 1771 की है, उसमें हुआ है। यह प्रति आपके वाचनार्थ लिखी गई थी, जो अनंतनाथ जी नुं मंदिर मांडवी, मुंबई नो भंडार में है । "
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.1.8 आर्या रत्ना ( 18वीं सदी)
इनका उल्लेख राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर (क्र. 782, ग्रं. 12320 ) में संग्रहित प्रतिलिपि 'दसारणभद्र चौढालियो ' में हुआ है, यह कृति 18वीं सदी की है, जो 'आर्या रत्ना पठनार्थ' लिखी गई थी, आर्या जी लुकागच्छी है। 12
6.1.9 आर्या लद्धाजी (सं. 1809 )
इन्होंने 'आर्य वसुधा धारणी स्तोत्र' की प्रतिलिपि संवत् 1809 को सरसा नगर में पं. प्रेमविजयजी के पढ़ने के लिये की, ये लुकागण की साध्वी जी थीं। अक्षर अत्यंत सुंदर हैं। 3
6.1.10 आर्या पानोश्री (सं. 1816 )
ये गुजराती लोकागच्छीय धर्मसिंहजी की परंपरा के दीपचंदजी की साध्वी थीं, इनकी 'पुण्यसेन चौपाई' की हस्तलिखित प्रति मुनि पुण्यविजयजी के गुजराती हस्तलिखित भंडार में है। प्रति में संवत् 16 ठारस लिखा है। 4 6.1.11 साध्वी मूलीबाई (सं. 1865-90 )
ये दशा श्रीमाली वणिक रतनशा की पत्नी अमृताबाई की कुक्षि से पैदा हुई थीं, और विवाह नानजी कोठारी
10. वही भाग 4, पृ. 152
11. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 281
12. ओं. मेनारिया, संपादक-राज. हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 3, पृ. 94
13. बी. एल. आई. इन्स्टी. दिल्ली की हस्तलिखित सूची (अप्रकाशितु ) परिग्रहण संख्या 1074, 8890
14. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 415
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