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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास सोमा ने लिपि की, विमलदास ने संवत् 1709 में इसे पूर्ण किया। प्रति 'शेठ आणंदजी कल्याणजी नी पालीताणा नी पेढ़ी' में है 1632
5.8.49 साध्वी श्री पद्मलक्ष्मी ( संवत् 1710 )
तपागच्छ के आचार्य लक्ष्मीरत्नसूरि के शिष्य की 'सुरप्रियऋषि रास' ( 17वीं सदी) की प्रतिलिपि संवत् 1710 में साध्वी पद्मलक्ष्मी ने की। यह प्रति सीमंधर स्वामी भंडार, सूरत (दा. 24 ) में मौजूद है। 633
5.8.50 साध्वी श्री लावण्यलक्ष्मी (संवत् 1712 )
साध्वी लावण्यलक्ष्मी ने अज्ञातकविकर्तृक 'षडावश्यक बालावबोध' को संवत् 1712 भाद्रपद कृ. 2 मंगलवार को दीसा ग्राम (गु.) में लिखा 1634 इन्हीं की 1723 की एक प्रतिलिपि 'नवतत्त्व प्रकरण सस्तबक' प्रेमबाई पठनार्थ लिखी हुई मिलती है। 635 दोनों प्रतियां प्रवर्तक श्री कांतिविजय भंडार, नरसिंहजी ने पोल वड़ोदरा में है।
5. 8.51 साध्वी श्री जयंत श्री ( संवत् 1721 )
संवत् 1721 फाल्गुन शु. 2 मंगलवार को खम्भात में 'श्री प्रत्याख्यान आगार' साध्वी जयंतश्री के वाचनार्थ लिखा गया। प्रति कांतिविजय संग्रह छाणी में सुरक्षित है। 636
5.8.52 साध्वी श्री माणिक्य श्री (संवत् 1727 )
साध्वी माणिक्यश्री के कहने से पं. नित्यविजय गणि ने सिरोही निवासी रूपा से संवत् 1727 द्वि. वैशाख कृ. 2 मंगलवार को 'नवस्मरण स्तबक' की प्रतिलिपि श्राविका कल्याणबाई के पठनार्थ करवाई। प्रति नित्यविजय लायब्रेरी चाणस्मा में है। 637
5.8.53 आर्या श्री लीलाजी (संवत् 1733 )
नागोरगच्छीय त्रिक्रममुनि रचित 'बंकचूल नो रास' (संवत् 1706) पं. शांतिविजयगणि ने संवत् 1733 फाल्गुन शु. पूर्णमासी को उदयपुर में आर्या लाछां जी की शिष्या आर्या लीलाजी के पठनार्थ प्रतिलिपि किया। प्रति अनंतनाथजी नु मंदिर मांडवी मुंबई' के भंडार में है। 638
632. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 247
633. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 245 (ख) प्रशस्ति संग्रह, पृ. 240, 896
634. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 37
635. प्रशस्ति संग्रह, पृ. 234, प्र. 873
636. प्रशस्ति संग्रह, पृ. 231, प्र. 859
637. (क) जै. गु. क. भाग 5, पृ. 378, 638. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 340
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