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श्वेताम्बर - परम्परा की श्रमणियाँ
5.8.54 साध्वी श्री प्रेमलक्ष्मी ( संवत् 1735 )
तपागच्छीय देवीदास (द्विज) के 'महावीर स्तोत्र' (संवत् 1611) को पं. भावसागर ने साध्वी प्रेमलक्ष्मी के वाचनार्थ लिपि किया। प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर (नं. 2169) में है 1 539
5.8.55 साध्वी श्री लाला ( संवत् 1744 )
पार्श्वचन्द्रगच्छ के ब्रह्ममुनि रचित 'अढार पाप स्थान परिहार भास' ( भाषा) की प्रतिलिपि संवत् 1744 वैशाख शु. 13 बुधवार को साध्वी लाला के पठनार्थ इलमपुर में तैयार की। यह जिनचारित्रसूरि संग्रह (पो. 83, नं. 2154) में है। 640
5.8.56 साध्वी श्री प्रेमश्री (संवत् 1745 )
अंचलगच्छ के श्री ज्ञानसागर कृत 'इलायचीकुमार चौपाई (संवत् 1719 ) की प्रतिलिपि नित्यविजयगणि ने साध्वी माणिक्यश्री की शिष्या साध्वी प्रेमश्री के वचनों से संवत् 1745 वैशाख शु. 2 शुक्रवार को सूरत में श्राविका माणिकबाई के पठनार्थ की। यह प्रति मुक्तिकमल जैन मोहन ज्ञान मंदिर बड़ोदरा (नं. 2370 ) में है 1641
5.8.57 आर्या श्री रत्नाजी, हीराजी (संवत् 1747 )
तपागच्छीय रूचिविमल रचित 'मत्स्योदर रास' (संवत् 1736 ) की प्रतिलिपि रतलाम में मुनि कृष्णविमल ने संवत् 1747 द्वि. वैशाख कृ. 8 रविवार को आर्या श्री रत्नाजी, हीराजी के वाचनार्थ तैयार की। प्रति विजयनेमीश्वर ग्रंथ भंडार खंभात (नं. 4490) में है 1642
5.8.58 साध्वी श्री वीरां जी ( संवत् 1751 )
ये साध्वी सौभाग्यमाला की शिष्या सौख्यमाला की शिष्या थीं। वाचक दयासागर गणि ने इनके वाचनार्थ 'जीवविचार' संवत् 1751 वैशाख कृ. 11 के दिन बीकानेर में लिखा। इसकी प्रति श्री विजयदानसूरि शास्त्र संग्रह छाणी' में मौजूद है 1643
5.8.59 साध्वी श्री जीऊजी ( संवत् 1766 )
ऋषि डुंगरसी के शिष्य लालचंदजी ने साध्वी जीऊजी के पठनार्थ विजयदेवसूरि रचित "शीलप्रकाश रास" ( रचना संवत् 1602) की प्रतिलिपि लूणकरणसर में संवत् 1766 में की। प्रति ला. द. भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर अमदाबाद में है 1644
639. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 49 640. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 326 641. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 42 642. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 376 643. प्रशस्ति-संग्रह, पृ. 260, प्र. 990 644. जै. गु. क., भाग 1, पृ. 315
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