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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास काव्य, छंद की ज्ञाता पंडिता साध्वीजी थीं। शेठ देवचंद लालचंद पुस्तकोद्धार लायब्रेरी नं. 1125 सूरत में यह प्रति संग्रहित है 1009 5.8.25 साध्वी पल्हणश्रीजी ( संवत् 1587 के लगभग ) आप हुमायु बादशाह के काल में हुई थी, एवं मेघचन्द्र श्री की शिष्या थीं। आप अपने समय की एक प्रभावशालीनि साध्वी थीं, जिनके सान्निध्य में अनेक श्राविकाओं ने दीक्षा ग्रहण कर धर्म साधना की। गृहस्थ शिष्याओं की यह नई परम्परा कफी समय तक चलती रही। आप द्वारा स्थापित इन गृहस्थ परम्परा की शिष्याओं में प्यारीबाई, गौरीबाई, सविरीबाई सुरसरीबाई आदि उल्लेखनीय हैं। इसी परम्परा की एक शिष्या तंबोलीबाई ने 'चौबीस ठाणे की संचिका' लिखवाई। आर्यिका पल्हणश्री द्वारा स्थापित यह नई परम्परा काफी समय तक चलती रही। इन सब शिष्याओं का उल्लेख सोनीपत में लिखे गये एक गुटके में है 1 610 5. 8.26 चंद श्री महत्तरा साध्वी ( 16वीं सदी) आपके वैदुष्य का उल्लेख श्री लावण्यभद्रगणी के शिष्य ने 'सित्तरि बालावबोध' की प्रशस्ति में किया है, उन्होंने लिखा है- “ चंद महत्तरा ..... महासती ने सित्तरी गाथा कही, उस पर नियुक्तिकार ने स्वमति से 19 गाथा और बनाकर 89 गाथा कही, मैंने सित्तरी गाथा का बालावबोध स्वपरोपकार हेतु संक्षेप में लिखा है । " 'सित्तरि प्रकरण' मूल प्राकृत में चंद महत्तरा की श्रेष्ठ कृति कही जा सकती है, जिस पर पश्चाद्वर्ती आचार्यों ने नियुक्ति व बालावबोध लिखा। मूल कृति प्राकृत में है। इसकी हस्तप्रति संवत् 16 वर्षे फाल्गुन कृ. 8 रवि की 'इंडिया ऑफिस लायब्रेरी, संख्या 1032 में है | 1 | 5.8.27 श्री दूला आर्या (16वीं सदी) भव विरक्त, तपस्विनी, निरासक्त, सुविनीत, श्रुतदेवी सदृश इस साध्वी की प्रार्थना से कवि 'धाहिल' ने प्राकृत अपभ्रंश मिश्रित भाषा में 'पउमसिरि (पद्मश्री) चरित्र रचा है। उसकी प्रति पाटन जैन भंडार में है 1 0 1 2 5.8.28 श्रीमदनसुंदरी, भावसुंदरी ( 16वीं सदी) श्रेष्ठी आहड़ की चन्द्र नामक पत्नी से आसराज, श्रीपाल, धांधक, पद्मसिंह, ललिता एवं वास्तुदेवी ये 6 संतान पैदा हुई । वास्तुदेवी की पुत्री मदनसुंदरी और पद्मसिंह की पुत्री भावसुंदरी का साध्वी कीर्तिगणिनी के पास प्रव्रज्या अंगीकार करने का उल्लेख प्राप्त होता है । 13 609. (क) जै. गु. क. भाग 1 पृ. 160 610. डॉ. ही. बोरदीया, जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं, पृ. 200 611. जै. गु. क., भाग 3, पृ. 560 612. ऐति. लेख संग्रह, पृ. 338 613. जिनशासन नां श्रमणीरत्नों, पृ. 14 Jain Education International 492 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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