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श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ
उसमें गणिनी अपराश्री का उल्लेख किया गया है। इसकी एक ताड़पत्र प्रति (संख्या 112) संघवी पाटण जैन ज्ञान भंडार में सुरक्षित है।592
5.8.9 श्री अजितसुंदरी गणिनी (संवत् 1258) _आप हर्षपुरी गच्छ के मलधारी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी थीं। आपने संवत् 1258 श्रावण शुक्ला 7 सोमवार को पाटन में 'श्री सित्तरी-भाष्य' लिखवाया। पाटण जैन ज्ञान भंडार में इसकी ताड़पत्रीय प्रति (140) अवस्थित है।593
5.8.10 श्री जगसुन्दरगणिनी (संवत् 1265)
संवत् 1265 ज्येष्ठ शुक्ला 5 रविवार को श्रीमालवंशीय धांधापुत्र देवकुमार ने अपनी मातुश्री धनदेवी के श्रेयार्थ 'श्री दशवैकालिकसूत्रम्' ताड़पत्र पर लिखवाकर अपनी भगिनी साध्वी जगसुन्दरगणिनी को पठनार्थ अर्पित की। यह उल्लेख सूत्र की प्रशस्ति में है। प्रति (श्री उ. फो. जै. ध.) अमदाबाद में (संख्या 4683) है।594
5.8.11 गणिनी श्री निर्मलमति (संवत् 1292)
आप धर्कटवंश के श्रेष्ठि 'गणिया' और श्रेष्ठिनी 'गुणश्री' की सुपुत्री थीं। आपने आचार्य प्रद्युम्नसूरि के मुखारविन्द से 'महत्तरा प्रभावती' के पास पंच महाव्रत ग्रहण किये थे। संवत् 1292 कार्तिक शुक्ला 8 रविवार धनिष्ठा नक्षत्र में आपने आचार्य हेमचन्द्रसूरि की सटीक 'योगशास्त्र' की दो प्रतियाँ लिखकर मानतुंगसूरि के पट्टधर पद्मदेवसूरि को अर्पित की थी।595 आचार्य प्रद्युम्नसूरि के समुदाय में महत्तरा साध्वी प्रभावती महत्तरा जगश्री, महत्तरा उदयश्री, महत्तरा चारित्रश्री आदि अन्य भी प्रभावशालिनी विदुषी महाश्रमणियाँ थीं। यह उल्लेख पाटण के जैन ज्ञान भंडार की ताड़पत्रीय प्रति 9 में भी किया गया है।96
5.8.12 रत्नश्री गणिनी (वि. संवत् 1300)
आप 'याकिनी महत्तरा' के समान ही एक बहुश्रुती प्रभावशालिनी विदुषी साध्वी थीं। चन्द्रगच्छ के श्री हरिभद्रसूरि के शिष्य सिद्धसारस्वत आचार्य बालचन्द्रसूरि ने 'वसन्तविलास' महाकाव्य; जो संवत् 1300 में रचित है; उसमें अपने को इस महान श्रमणी का 'धर्मपुत्र' कहा है। आचार्य बालचन्द्र उच्चकोटि के विद्वान् थे, उन्होंने विवेकमंजरी, उपदेश कंदली आदि कृत्तियाँ वसंतविलास महाकाव्य (मंत्रीश्वर वस्तुपाल चरित्र) करूणा वज्रायुध जैसे नाटक भी लिखे हैं।97
592. अ. म. शाह., प्रशस्ति संग्रह, पृ. 72 593. अ. म. शाह., श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ. 84 594. अ. म. शाह, प्रशस्ति-संग्रह, पृ. 6, ता. प्र. 10 595. 'श्रमणीरत्नो', पृ. 13 596. अ. म. शाह, प्रशस्ति संग्रह, पृ. 5 597. (क) ऐति. लेख संग्रह, पृ. 338, (ख) ही. र. कापड़िया, जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास भाग 2, पृ. 126
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