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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.5.15 श्रमणी नाथी (संवत् 520-58) ये महान युगप्रवर्तक उपकेशगच्छ के 35वें आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर जी (षष्टम) की मातेश्वरी थीं। तथा वीरप्रसूता मेदपाटभूषण चित्रकोट नगर के विरहट गोत्री दिवाकर शाह उमाजी की धर्मपत्नी थी। आचार्य देवगुप्तसूरि का उपदेश एवं पुत्र सारंग का उत्कट वैराग्य देख इन्होंने अपने पति एवं पुत्र के साथ दीक्षा ग्रहण की, इनके साथ 37 दीक्षाएँ और हुई।549 5.5.16 श्रमणी विमल भार्या (संवत् 558-601) ये आचार्य श्री कक्कसूरि जी (सप्तम) जो उपकेशगच्छ के 36वें आचार्य थे, उनकी धर्मपत्नी थीं एवं मरूधर प्रांत के मेदिनीपुर नगर के सुप्रतिष्ठ व्यापारी श्रेष्टि गोत्रीय शाह करमण की पुत्रवधु थीं। आपकी विशेष प्रेरणा व सहयोग से पति विमल के संघपतित्व में छ'री पालक संघ शत्रुजय की तीर्थ यात्रा हेतु निकला पश्चात् वैराग्य भाव से आपने अपने 8 पुत्र 3 पुत्रियों का विशाल परिवार एवं वैभव त्याग कर आचार्य सिद्धसूरि (षष्टम) के श्रीचरणों में भागवती दीक्षा अंगीकार की।50 5.5.17 श्रमणी नानी (संवत् 558-601) आप उपकेशपुर में चरड़ गोत्रीय कांकरिया शाखा के शाह घेरू के पुत्र लिंबा की धर्मपत्नी थी। असमय में ही पति का वियोग हो गया। आ. कक्कसूरि (सप्तम) के वैरोग्योत्पादक प्रवचन श्रवण कर असार संसार से अरूचि हो गई, तो इन्होंने चार अग्रगण्य व्यक्तियों को करीब एक करोड़ रूपयों की संपत्ति ज्ञानभंडार एवं आगम लेखन हेतु सुपूर्द कर 8 बहिनों के साथ आचार्यश्री के पास दीक्षा ग्रहण की।5। 5.5.18 श्रमणी रामा (संवत् 601-631) आप उपकेशगच्छ के 37 वें युगप्रधान आचार्य देवगुप्तसूरि (सप्तम) की मातेश्वरी थी, एवं अर्बुदाचल तीर्थ की तलहटी में बसी कोटीश्वर श्रेष्ठीवर्यों से विभूषित चंद्रावती नगरी के प्राग्वाटवंशीय शाह यशोवीर की भार्या थीं। शा. यशोवीर चंद्रावती के अधीश राव सज्जनसेनजी के अमात्य (मंत्री) पद पर विभूषित प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। श्रेष्ठनी रामा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र मंडन जो राष्ट्रीय राजकीय नीतिविद्या में परम निष्णात थे, उनके एवं पति यशोवीर के साथ आचार्य कक्कसूरि (सप्तम) के पास दीक्षा अंगीकार की। मंडन, देवगुप्तसूरि के नाम से षट्दर्शन के प्रकाण्ड पंडित एवं तेजस्वी आचार्य हुए, कई प्रतिवादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। ये उपकेशगच्छ के 37 वें आचार्य थे।552 5.5.19 श्रमणी सरजू (संवत् 660-80) आप उपकेशगच्छीय 39वें पट्टधर आचार्य श्री कक्कसूरि (अष्टम) की माता थीं। एवं अर्बुदाचलतीर्थ की तलहटी में स्थित पद्मावती नगरी के तप्तभट्ट गोत्रीय शा. सलखण नाम के लोकमान्य प्रतिष्ठित व्यापारी की 549. विशेष देखें-वही, पृ. 895-899 550. वही, पृ. 1009-13 551. वही, पृ. 1019 552. वही, पृ. 1031 476 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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