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5.5.8 महादेव की भार्या ( संवत् 235 -60)
आचार्य कक्कसूरि चतुर्थ वि. संवत् 235 से 60 के मध्य जब सिंध प्रदेश में विचरण कर रहे थे तब उमरेलपुर के श्रेष्ठी गोत्रीय शाह महादेव जो प्रभूत सम्पति सम्पन्न थे, उन्होंने अपनी पत्नी एवं अन्य 14 नर-नारी के साथ दीक्षा अंगीकार की। ये उपकेशगच्छ के 23 वें पट्टधर थे 1541
5.5.9 पन्नादेवी (संवत् 260 - 82 )
आप आचार्य देवगुप्तसूरि चतुर्थ की मातेश्वरी थी, एवं धनकुबेर कुमट गोत्रीय डाबर नाम के श्रेष्ठी की पत्नी थी। पुत्र कल्याण के दीक्षा ग्रहण करने व उनके आचार्य पद पर प्रतिष्ठत होने के पश्चात् चन्द्रावती नगरी में डाबर एवं पन्नादेवी ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। आचार्य देवगुप्तसूरि ने अनेक राजाओं को जैनधर्म में श्रद्धावान बनाये। ये उपकेशगच्छ के 24वें पट्टधर थे 1542
5.5.10 दुर्लभादेवी (संवत् 282-98 )
दुर्लभादेवी वल्लभी नगरी के राजा शिलादित्य की बहन थी । आचार्य जिनानन्द ने तीन पुत्रों के साथ इन्हें दीक्षा दी। इसमें मल्ल मुनि सब से छोटे एवं प्रतिभासंपन्न थे। गुरू ने उन्हें नयचक्र नामक ग्रंथ जो ज्ञानप्रवाद पूर्व
उद्धृत था, उसे पढ़ने का निषेध साध्वी माता दुर्लभादेवी के समक्ष किया, किंतु बाल- चापल्य और जिज्ञासावश माता की अनुपस्थिति में उन्होंने ग्रन्थ उठाकर पढ़ना शुरू किया, अभी उसका प्रथम पन्ना पढ़ा ही था, कि श्रुतदेवता ने वह पुस्तक खींच ली। इस ग्रंथ को पुनः प्राप्त करने के लिये आपने महान तपस्या की, जिससे प्रथम पंक्ति का श्लोक, जो आपने पढ़ लिया था उससे देवी के वरदान स्वरूप 10 हजार श्लोक प्रमाण वाले नयचक्र ग्रन्थ की रचना की। साहित्य सर्जना के महद् कार्य में माता दुर्लभादेवी का संपूर्ण सहयोग रहा। मल्लमुनि आगे जाकर आचार्य मल्लवादी के रूप में प्रतिष्ठित हुए, जो भगवान महावीर की परंपरा में थे 1543
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5.5.11 साध्वी चम्पादेवी ( संवत् 282-98 )
आप आचार्य सिद्धसूरि (चतुर्थ) की मातेश्वरी तथा उपकेशपुर नगर के महाराजा उत्पलदेव की संतान-परंपरा के श्रेष्ठि गोत्रीय शाह जेता की धर्मपरायणा पत्नी थीं। आचार्य देवगुप्तसूरि (चतुर्थ) के चरणों में आपने अपने पुत्र सारंग (सिद्धसूरि ) के साथ 56 नर-नारियों सहित दीक्षा ली 1544
संवत् 298 से 370 के मध्य और भी अनेक स्त्रियों ने दीक्षा ली, उनका नामोल्लेख एवं विशेष वर्णन उपलब्ध नहीं है केवल संख्या ही उपलब्ध होती है, वह इस प्रकार है- संवत् 310 - 336 में आचार्य यक्षदेवसूर (पंचम) ने आभापुरी नगरी में 31 मुमुक्षुओं को दीक्षा दी, जिसमें 17 श्रमणियाँ बनीं। संवत् 336-358 में आचार्य कक्कसूरि (पंचम) ने उपकेशपुरी में शाह कर्मा के साथ 30 नर-नारियों को दीक्षा प्रदान की । आचार्य देवगुप्तसूरि 541. वही, पृ. 661
542. वही, पृ.682
543. वही, पृ. 712-14, प्रभावक चरिते, श्री मल्लवादी प्रबन्ध, पृ. 123-28
544. वही, पृ. 684-96
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