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________________ श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ 5.5.4 कुल्लीदेवी (वि. सं. 115) कुल्ली देवी ओंकार नगर के तप्तभट्ट गोत्रीय शाह पेथा की भार्या थीं। उनके पुत्र राजसी ने 16 वर्ष की उम्र में जंबूकुमार की तरह अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ दीक्षा ली तो शाह पेथा भी एक-एक कोटि धन अपनी सात पुत्रियों को देकर, तथा शेष द्रव्य सात क्षेत्रों में व्यय कर भार्या कुल्ला एवं अन्य 23 नर- नारियों के साथ अत्यंत समारोह पूर्वक आचार्य श्री सिद्धसूरिजी के चरणों में दीक्षित हुए। राजसी ही आगे जाकर महाप्रभावशाली रत्नप्रभसूरि (तृतीय) के नाम से प्रसिद्ध आचार्य बने। ये उपकेशगच्छ के 26 वें आचार्य थे।536 तत्पश्चात् भगवान पार्श्वनाथ के 27 वें पट्ट पर आचार्य यक्षदेव सूरि (तृतीय) के उपदेश से प्रभावित होकर भी अनेक मुमुक्षु आत्माएँ दीक्षित हुईं। यथा - (1) मुग्धपुर के तप्तभट गोत्रीय शाह राजा ने सपत्नीक दीक्षा ली। (2) नागपुर के आदित्यनाग गोत्रीय लाखण ने 18 लोगों के साथ दीक्षा ली, उसमें महिलाएं भी थीं। (3) चन्द्रावती के राव सांगण ने 18 नर-नारियों के साथ दीक्षा ली। उपकेशगच्छ में इस समय 3000 साधु-साध्वी विहरण कर रहे थे।37 5.5.5 ललितादेवी (संवत् 157 के लगभग) ये पार्श्वनाथ परंपरा के 18 में पट्टधर आचार्य कक्कसूरि की माता थीं। इन्होंने अपने पुत्र त्रिभुवनपाल, पति (कोरंटपुर नगर के प्राग्वाट्वंशीय) शाह लाला एवं अन्य 52 व्यक्तियों के साथ आचार्य यक्षदेवसूरि (तृतीय) के पास संयम ग्रहण किया।538 5.5.6 कमलादेवी (संवत् 177-199) पार्श्वनाथ परंपरा के 20वें पट्टधर सिद्धसूरि (तृतीय) की मातेश्वरी कमलादेवी मांडव्यपुर नगर के राजा सुरजन के मुख्य मंत्री श्रेष्ठी गोत्रीय नागदेव की तीसरी पत्नी थी और उपकेशपुर के चिंचट गोत्रीय शाह रामा की सुपुत्री थीं। आचार्य कक्कसूरि के सदुपदेश एवं प्रबल प्रेरणा से कमलादेवी, पुत्र देवसी, पति नागदेव एवं नागदेव की अन्य दो पत्नियाँ-रंभा और देवला एवं सात पुत्र, इस प्रकार एक ही परिवार से 12 व्यक्तियों ने दीक्षा ली।39 5.5.7 अज्ञातनामा साध्वियाँ संवत् 199-218 के मध्य ) ___ आचार्य रत्नप्रभसूरि (चतुर्थ) ने धर्म प्रभावना के अनेक कार्यों में उज्जैन चातुर्मास के पश्चात् बाप्पनाग गोत्रीय शाह मेघा द्वारा निर्मित पार्श्वनाथ भ. के मंदिर की प्रतिष्ठा के अवसर पर 8 पुरूष और 13 बहिनों को दीक्षा दी। उनके नाम, गोत्र आदि का उल्लेख प्राप्त नहीं है।540 536. भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा की इतिहास, भाग 1 खंड 1, पृ. 469-82 537. वही, पृ. 509 538. वही, पृ. 558 539. वही, पृ. 598 540. वही, पृ. 623 473 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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