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________________ 5.4.31 साध्वी अमरेन्द्र श्रीजी ( संवत् 2006 - 48 ) साध्वी रूपश्रीजी की शिष्या साध्वी अमरेन्द्र श्रीजी कच्छ की धरती पर संवत् 1963 में जन्मी और पालीताणा में 2006 मौन एकादशी के दिन दीक्षित हुई। अचलगच्छ के इतिहास में वर्धमान तप की 100 ओली पूर्ण करने वाली ये सर्वप्रथम साध्वी थीं। इसके साथ ही 16,15 उपवास, 25 अठाइयाँ, 2 वर्षीतप बीसस्थानक आदि विविध तपस्याएँ की । सादगी और शांतिप्रिय ये महासतीजी संवत् 2048 कोटड़ा में स्वर्गवासिनी हुईं। 523 5.4.32 श्री गुणोदयश्रीजी ( संवत् 2008-31) जन्म संवत् 1982 भुजपुर (कच्छ), पिता खेतशीभाई, माता खीमईबाई । दीक्षा संवत् 2008 मृगशिर शुक्ला 10 भुजपुर में । गुरूणी श्री जगतश्रीजी । इनकी समता और परहितचिंता की भावना की उल्लेखनीय घटना है- एक वृद्ध साध्वीजी को डोली में बिठाकर ले जाते समय रास्ते में इनके पैर में बिच्छू ने जोर से डंक मारा किंतु इन्होंने यह बात यथास्थान पहुँचने के पूर्व किसी से कही तक भी नहीं, और ऐसी स्थिति में भी 35 कि. मी. का विहार किया। इनकी कष्ट सहिष्णुता और हिम्मत को देखकर सभी आश्चर्यचकित थे। ये आत्मार्थिनी साध्वी थीं, समझाने की शैली भी अद्भुत थी। धर्म और तत्त्व की बातों का शब्दार्थ, भावार्थ गूढार्थ धीर, गंभीर प्रभावक शैली में समझातीं। करूणा और दया से इनका दिल ओतप्रोत था, एक बार आँख में मकोड़ा प्रवेश कर गया, आँखों से अश्रु की धार बहने लगी आँख सूझकर बड़ी हो गई, अपार वेदना को ये सारी रात इसलिये सहन करती रहीं कि आँख को मलने से कहीं मकोड़े को कष्ट न हो, प्रातः वह मकोड़ा स्वयं ही बाहर आ गया । देवपुर चातुर्मास में दुष्काल के कारण निर्धन जनों को छाछ व अनाज के लिये इधर-उधर परिभ्रमण करते देख दया से द्रवित हो इन्होंने छाछ केन्द्र और अनाज की दुकानें खुलवाईं। पालीताणा के जंबूद्वीप मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं के पीछे 33 प्रतिशत प्रेरणा इनकी रही है। जीवन पर्यन्त समता, समाधि, सहनशीलता और स्वदेह के प्रति निरीहता का पाठ पढ़ाकर यह महासाध्वी संवत् 2031 देवपुर में चिरसमाधि में लीन हो गईं। 524 इनकी पूर्णानंद श्रीजी आदि 27 साध्वियाँ थीं। जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 5.4.33 श्री रत्नरेखाश्रीजी ( संवत् 2010 से वर्तमान) जन्म संवत् 1993 मोटा आसंबिया (कच्छ), पिता श्री प्रेमजी वीजपार रांभीया, माता परमाबाई, दीक्षा संवत् 2010 वैशाख शुक्ला 5 मोटा आसंबिया में। गुरूणी श्री हेमलता श्रीजी । 6 कर्मग्रन्थ, 4 प्रकरण, तत्त्वार्थ, व्याकरण, न्याय, काव्य, संस्कृत व धर्मशास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन । साहित्य - अंतर नां अमी, अमीवर्षा, परमेष्ठी गुण सरिता, हृदय वीणा नां तारे तारे आदि पुस्तकों का सम्पादन । शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य । श्री प्रियदर्शनाश्रीजी, आत्मगुणाश्रीजी, हर्षावली श्रीजी आदि शिष्या प्रशिष्या का विशाल परिवार । 525 5.4.34 साध्वी अरूणोदया श्रीजी व विनयप्रभाश्रीजी ( संवत् 2021 ) संयम व तप के उच्चतम प्रतिमानों को प्रतिष्ठापित करने वाली श्रमणियाँ हर युग व हर काल में हुई हैं। वर्तमान में भी साध्वी अरूणोदया श्रीजी एवं साध्वी विनयप्रभा जी ऐसी ही विरल साध्वी रत्न हैं: जिन्होंने तप की शक्ति से असाध्य रोगों को दूर कर दिया। इनमें साध्वी अरूणोदयश्रीजी का जन्म वि. सं. 1972 कच्छ मोटा 523. वही, पृ. 788-89 524. (क) वही, पृ. 792-95, (ख) बहुरत्ना वसुंधरा भाग 3, पृ. 549 525. वही, पृ. 796 Jain Education International 466 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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