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________________ श्वेताम्बर - परम्परा की श्रमणियाँ आसंबिया (बड़ा) गाँव में हुआ। संवत् 2021 में पति के स्वर्गस्थ होने के पश्चात् आपने संयम लिया। आप दृढ़ मनोबली अटूट श्रद्धासंपन्न साध्वी हैं, वर्धमान आयंबिल तप करते हुए आपकी कई कठिन कसौटियाँ हुई। सर्वप्रथम कंठ की स्वरपेटी में कैंसर हो गया 10 वर्ष तक आवाज बंद रही, किंतु आपने सावद्य चिकित्सा न करवाकर आयंबिल ही चालू रखे। बीच में भयंकर हृदय रोग का हमला भी हुआ, हरपीस भी हुई, किंतु आपकी अडिग श्रद्धा के साथ की जाने वाली आयंबिल तपस्या व नवकार मंत्र के जाप से कैंसर कैंसल हो गया। हार्ट अटेक को ही मानों एटेक आ गया, हरपीस भी हारकर दूर हट गया। और आज 84 साल की उम्र में भी 101-102 इसी क्रम से आगे बढ़ते हुए 109 ओलियाँ परिपूर्ण कर ली, और वर्तमान में 500 आयंबिल की तपस्या चालू है। साध्वी विनयप्रभाजी को भी कैंसर हुआ तब 81 आयंबिल और 15 चौविहार अट्टम के साथ महामंत्र का जाप किया, खून की उल्टी के साथ कैंसर के कीटाणु दूर हो गये। आप 300 से भी अधिक अट्ठम कर चुकी हैं साथ ही आजीवन अनेक प्रतिज्ञाओं में किसी को सहज दुःख पहुँच जाए ऐसी वाणी निकलते ही अट्टम पचख लेना, किसी की थोड़ी भी निंदा सुन लें तो आयंबिल करना, इत्यादि कठोर प्रतिज्ञाएँ भी धारण की हुई हैं। आप 24 घंटे में केवल ढाई घंटा आराम करती हैं। 526 5.4.35 श्री जयदर्शिताश्रीजी ( 2036 से वर्तमान) मूल वतन कच्छ, जन्म संवत् 2011 मध्यप्रदेश एवं पली महाराष्ट्र में। पिता श्री वीरचंद वालजी मोमायाना, माता नवलबाई के घर में रहते हुए एम. एस. सी. ( वनस्पतिशास्त्र) प्रथम श्रेणी में पास की, पश्चात् दो वर्ष पार्ट टाईम डेमोस्ट्रेटर एवं चार वर्ष लेक्चरर के रूप में 'सोमैया कालेज विद्याविहार मुंबई' में अध्ययन कार्य किया। इसी बीच वैराग्य भावना का प्रबल उदय हुआ एवं 2036 वैशाख शुक्ला 13 को पालिताणा में श्री जयलक्ष्मीश्रीजी महाराज के पास दीक्षा स्वीकार की। आप पाँच भाषाओं पर प्रभुत्व रखती हैं। भावनगर विश्वविद्यालय से सन् 1988 में “फिलोसोफी ऑफ साधना इन जैनिजम” विषय पर महानिबंध लिखकर पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त की । अचलगच्छ साधु-साध्वी समुदाय में विश्वविद्यालय से उच्च पदवी प्राप्त करने वाली आप सर्वप्रथम साध्वी है। 527 5.4.36 डॉ. साध्वी मोक्षगुणाश्री (21 वीं सदी) आपने 'आचार्य जयशेखरसूरि एवं उनका साहित्य' पर शोध प्रबन्ध लिखकर मुंबई विश्व विद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। यह ग्रंथ दो भागों में प्रकाशित है। 528 आचार्य जयशेखर 15वीं शती के अंचलगच्छ आचार्यों में प्रभावशाली विद्वान आचार्य हुए हैं। 526. बहुरत्ना वसुंधरा, भाग 3, पृ. 564 527. वही, पृ. 796 528. आर्य जय कल्याण केन्द्र, देरासर लेन, घाटकोपर मुंबई - 77 ई. 1991 Jain Education International 467 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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