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________________ श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.3.21.6 श्री मगनश्रीजी (सं. 1971 - ) इनका जन्म भीनमाल में संवत् 1946 भाद्रपद कृष्णा 13 को हुआ। 1961 में विवाह और 1969 में वैधव्य आ जाने पर संवत् 1971 में श्री मानश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की।484 5.3.21.7 श्री हेतश्रीजी (सं. 1972- ) इनका जन्म संवत् 1955- आश्विन शुक्ला 10 को आहोर में हुआ 1968 में विवाह और 1969 में पतिवियोग हो जाने के पश्चात् संवत् 1972 में श्री मानश्रीजी के पास दीक्षा हुई। ये बहुश्रुती, व्यवहार कुशल, अध्ययन-अध्यापन में दक्ष और आज्ञांकित साध्वी के रूप में प्रख्यात हुईं।485 5.3.21.8 श्री लावण्यश्रीजी (संवत् 1996-2047) श्री लावण्यश्रीजी का जन्म संवत् 1968 सूरत शहर में पिता धन्नालालजी और माता मोतीबाई के यहाँ हुआ, आलासण निवासी श्री छोगालालजी के साथ विवाह संबंध मात्र दो मास रहा, उनके स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 1996 मृगशिर शुक्ला 12 को आकोली गाँव में दीक्षा हुई गुरूणी श्री कंचनश्रीजी के सान्निध्य में इनका बहुमुखी विकास हुआ, विशेषतः व्याख्यान शैली रोचक और अत्यंत प्रभावशाली थी, कइयों को धर्म में स्थिर कर, अनेकों को दीक्षा प्रदान कर, समाज व शासन प्रभावना के अनेकविध कार्यों में अपना योगदान देकर भीनमाल में संवत् 2047 वैशाख शुक्ला 11 को समाधिपूर्वक परलोक की ओर प्रयाण किया।486 5.3.21.9 डॉ. श्री प्रियदर्शनाश्रीजी (संवत् 2020 से वर्तमान) विदुषी साध्वी प्रियदर्शनाश्रीजी का जन्म संवत् 2004 मृगशिर शुक्ला 3 को राजगढ़ (म. प्र.) में तथा दीक्षा संवत् 2020 फाल्गुन शुक्ला 3 को मोहनखेडा तीर्थ में हुई, ये साध्वी श्री हेतश्रीजी की शिष्या बनीं। इन्होंने डॉ. सागरमलजी जैन के निर्देशन में "आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन" विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखा है जो पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से सन् 1995 में प्रकाशित हुआ है।487 5.3.21.10 डॉ. श्री सुदर्शनाश्रीजी (संवत् 2025 से वर्तमान) इनका जन्म राजगढ़ (म. प्र.) में 2007 श्रावण कृष्णा 5 को हुआ। संवत् 2025 काल्गुन शुक्ला 7 के दिन श्री हेतश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की, दीक्षा आहोर में हुई। इन्होंने भी डॉ. सागरमलजी जैन के निर्देशन में 'आनंदघन का रहस्यवाद' विषय लेकर महानिबंध लिखा है। वाराणसी से इन्होंने पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। श्री प्रियदर्शनाश्रीजी एवं सुदर्शनाश्रीजी ने सम्मिलित रूप से जैन साहित्य भंडार को कई पुस्तकों का अनुदान दिया है, साध्वीद्वय ने अभिधान राजेन्द्रकोष महाग्रन्थ से 2667 सूक्तियों को संकलित कर 'सूक्ति सुधारस' 7 खण्डों में हिंदी भाषा में तैयार किया है। इसके अतिरिक्त इनके निम्न ग्रंथ भी प्रकाशित हैं488 - 484. वही, पृ. 767 485. वही, पृ. 767. 486. वही, पृ. 768 487. वही, पृ. 770 488. प्राप्ति स्थान-आधुनिक वस्त्र विक्रेता, सदर बाजार, भीनमाला, जि. जालोर (राज.) 453 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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