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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
श्री कीर्तिप्रभाश्रीजी, श्री चन्द्रप्रभाश्रीजी, श्री हेमरत्नाश्रीजी, श्री जयाश्रीजी, श्री अरूणप्रभाश्रीजी, श्री दिव्यदर्शनाश्रीजी, श्री पुष्पा श्रीजी, श्री जिनरत्नाश्रीजी, श्री गौरवपुण्यश्रीजी, श्री हिरण्यलता श्रीजी, श्री विश्वपूर्णाश्रीजी ।
5.3.19 आचार्य विजयअमृतसूरीश्वरजी का श्रमणी - समुदाय :
हालार देशोद्धारक रूप में ख्याति प्राप्त श्रीमद् अमृतसूरिजी के समुदाय में वर्तमान आचार्य श्री विजय जिनेन्द्रसूरिजी हैं, ये प्राचीन साहित्य के उद्धारक विद्वान् संत हैं, इनकी आज्ञा में 23 साध्वियाँ विचरण कर रही हैं उनमें 5 के ही नाम प्राप्त हुए- प्रवर्तिनी श्री सुरेन्द्रप्रभाश्रीजी, श्री मृगेन्द्रप्रभाश्रीजी, श्री अनंतप्रभाश्रीजी, श्री इन्द्रप्रभाश्रीजी, श्री स्वयंप्रभाश्रीजी । 477
5.3.20 विमलगच्छ समुदाय की श्रमणियाँ :
विमलगच्छ समुदाय आचार्य श्री शांतिविमलसूरीश्वरजी के नाम से ख्याति प्राप्त हैं, वर्तमान इस गच्छ के अधिपति आचार्य श्री प्रद्युम्नविमलसूरिजी हैं, इनकी आज्ञा में विचरण कर रहीं 31 साध्वियों में से कुछ प्रमुखाओं के नामोल्लेख मात्र समग्र चातुर्मास सूची से प्राप्त हुए श्री भुवनश्रीजी, श्री मनोरमाश्रीजी, श्री नयप्रज्ञाश्रीजी, श्री गुणसेनाश्रीजी, श्री भव्यकलाश्रीजी, श्री पीयूषपूर्णाश्रीजी, श्री भव्यपूर्णाश्रीजी, श्री महापूर्णाश्रीजी, श्री प्रियदर्शनाश्रीजी, श्री देवसेना श्रीजी, श्री मतिप्रज्ञाश्रीजी, श्री मोक्षलता श्रीजी 1478
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5.3.21 श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक समुदाय की श्रमणियाँ
श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक समुदाय के प्रवर्तक आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी महाराज हैं, जो अभिधान राजेन्द्रकोष के सर्जक आत्मपुरूषार्थी महान साधक हुए। वर्तमान में यह गच्छ चार शाखाओं में विभक्त हो गया है- (1) श्रीमद् विजयजयन्तसेनसूरि ( 2 ) श्रीमद् विजयहेमेन्द्रसूरिजी (3) आचार्य लब्धिचन्द्रसूरिजी (4) मुनि श्री जयानन्दविजयजी। इनमें प्रथम दो शाखाओं में क्रमशः 115 और 63 साध्वियाँ हैं तृतीय और चतुर्थ शाख में साध्वियाँ नहीं हैं। कुल त्रिस्तुतिक गच्छ की वर्तमान में 178 साध्वियाँ हैं। जिनमें विदुषी, तप साधिकाएं, शासनप्रभाविकाएँ कई श्रमणियाँ है । जिन्होंने अपने वैदुष्य से तपागच्छ समुदाय में एक विशिष्ट पहचान कायम की है। उनका उपलब्ध ज्ञातव्य यहाँ अंकित है।
5.3.21.1 श्री अमरश्रीजी ( संवत् 1926-34)
ये सौधर्म बृहत्तपागच्छ की सर्वप्रथम साध्वी हैं, इन्होंने संवत् 1926 फा. कृ. 8 के दिन वरकाणा तीर्थ में श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. से दीक्षा ग्रहण की, इनके साथ ही इनकी एक सखी लक्ष्मीबाई भी दीक्षित हुई। इन्होंने मारवाड़, मालवा आदि अनेक ग्राम, नगरों में विचरकर धर्म की महती प्रभावना की थी। संवत् 1934 माघ शु. 8 को दाहोद में आपका स्वर्गवास हुआ। 179
477. समग्र जैन चातुर्मास सूची, 2004 ई., भाग 19, पृ. 260 478. समग्र जैन चातुर्मास सूची, 2004, 3/20, पृ. 261 479. श्री राजेन्द्र ज्योति, पृ. 71 मोहनखेड़ा तीर्थ, वी. नि. संवत् 2503
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